हर मुसलमान को मस्जिद में नमाज और मृतकों को कब्रिस्तान में दफनाने का हकः हाईकोर्ट

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 16-07-2022
 (प्रतीकात्मक चित्र)
(प्रतीकात्मक चित्र)

 

कोच्चि.

केरल उच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा कि हर मुसलमान को किसी भी मस्जिद में नमाज अदा करने और मृतकों को सार्वजनिक कब्रिस्तान में दफनाने का अधिकार है.

न्यायमूर्ति एसवी भट्टी और न्यायमूर्ति बसंत बालाजी की खंडपीठ ने केरल नदवथुल मुजाहिदीन (केएनएम) द्वारा आयोजित एक धार्मिक प्रवचन में भाग लेने के खिलाफ 40 मुसलमानों को बहिष्कृत करने के एक ‘जमात’ के फैसले के खिलाफ एर्नाकुलम वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेश को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया. 

पलक्कड़ के वेंगोडी में ‘एलाप्पल्ली एरांचेरी जमात पल्ली’ ने ‘जमात’ के सदस्यों पर धार्मिक प्रवचन में शामिल होने वालों के घरों में होने वाली शादी और अन्य समारोहों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था. संप्रदाय के बहिष्कृत लोगों को भी मस्जिद में नमाज अदा करने या मस्जिद के कब्रिस्तान में दफनाने की अनुमति नहीं थी.

उच्च न्यायालय में, जमात ने तर्क दिया कि जमात और केरल नदवथुल मुजाहिदीन की धार्मिक मान्यताएं और प्रथाएं कई मायनों में भिन्न हैं और वक्फ ट्रिब्यूनल का आदेश केएनएम सदस्यों को उसी में प्रार्थना करने और अंतिम संस्कार करने की अनुमति देता है. उनके सदस्य मस्जिद और कब्रिस्तान की सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य को बिगाड़ देंगे. इस प्रकार, यह अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धर्म का पालन करने का अधिकार) का उल्लंघन है.

यह भी तर्क दिया गया कि केएनएम के पास अपने विश्वासियों को समायोजित करने के लिए मस्जिदों और कब्रिस्तान सहित कई धार्मिक संस्थान और वक्फ संपत्तियां हैं और बहिष्कृत लोगों को जमात के कब्रिस्तान में शवों को दफनाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. उनके लिए उपलब्ध उपाय जमात के सदस्यों को परेशान किए बिना एक अलग साइट ढूंढना है.

फैसले में कोर्ट ने कहा, ‘‘मस्जिद इबादत की जगह होती है और हर मुसलमान मस्जिद में नमाज अदा करता है. पहले प्रतिवादी (जमात) को जमात के सदस्य या किसी अन्य मुसलमान को नमाज अदा करने से रोकने का कोई अधिकार नहीं है.

शवों को दफनाना भी एक नागरिक अधिकार है. वादी अनुसूची संपत्ति (मस्जिद और उसके परिसर) में स्थित कब्रिस्तान एक सार्वजनिक कब्रिस्तान है. प्रत्येक मुसलमान नागरिक अधिकारों के अनुसार एक सभ्य दफन पाने का हकदार है और पहले प्रतिवादी (जमात) की देखरेख में कब्रिस्तान एक सार्वजनिक कब्रिस्तान है.

किसी भी मुस्लिम या पहले प्रतिवादी के किसी भी सदस्य को मृतकों को दफनाने का अधिकार है. पहला प्रतिवादी प्लांटिफ (बहिष्कृत) को मस्जिद में नमाज अदा करने से और उनके रिश्तेदारों के शवों को दफनाने से रोक नहीं सकता है, 

यह कहते हुए कि उन्हें 1 प्रतिवादी जमात से बहिष्कृत कर दिया गया है, क्योंकि उन्होंने केरल नाडुवथुल मुजाहिदीन संप्रदाय का पालन किया था.’’