डेमचोक: सर्दी में नदियां भी पथरा जाती हैं, लेकिन सरकारी पानी नहीं जमता, कैसे?

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
जल जीवन ही है
जल जीवन ही है

 

‘जल जीवन मिशन’ की कुतुबमीनाराना कोशिश

राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-डेमचोक

ष्णकटिबंधीय क्षेत्र और उष्ण जलवायु के कारण मुंबइकर को दिल्ली की सर्दी कंपकंपा देती है. इसलिए गीत लिखा - ‘दिल्ली की सर्दी’. मगर असल सर्दी तो कश्मीर और लद्दाख की होती है - चिल्ला जाड़ा. ऐसा जाड़ा की आदमी चिल्ला पड़े. ऐसी सर्दी कि शरीर गल जाए. बहुत बेरहम. बहुत जालिम. पारा -25 से -40 डिग्री तक गिर जाता है.

खून जमने की जिद करने लगता है. थोड़ी की लापरवाही में हाथ-पैर सुन्न होकर नीले पड़ जाते हैं और हाइपोथर्मिया की नौबत आ जाती है. ऐसे मुश्किल मौसम में जब सिर्फ लोगों के पास कमरे के कौने में बैठकर सिर्फ भगवान का भजन करने के सिवा कोई और काम नहीं रह जाता, तब यह इलाका पूरी तरह शेष भारत से कट जाता है.

सड़क-रास्ते बर्फ के जंगल में गुम हो जाते हैं. अनाज, फल और सब्जियों की आमद बंद हो जाती है. ऐसे में केंद्र सरकार ने सुदूर लद्दाखियों की खैर-खबर ली. लेह के जीरो बॉर्डर गांव डेमचोक में अब ‘जल जीवन मिशन’ पहुंच गया है. जल जीवन मिशन 15 अगस्त, 2019 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया था. अब डेमजोर के गर्वित नागरिकों को झरनों या बर्फ को गलाकर पानी हासिल करने से निजात मिल गई है. उनके घरों के दरवाजे तक स्वच्छ जल वितरण हो रहा है.

अत्यंत कठिन जीवनचर्या

लद्दाख में पर्यटक गर्मियों में जाते हैं, जब चहुंओर हरा-भरा होता है. प्रकृति मनमोहिनी स्वरूप धर हृदय को लुभाती है. मगर यह कड़ाके की ठंड में 6 महीने तक देश से कट जाने वाला इलाका है.

तापमान -25 डिग्री तक गिर जाता है और जो जहां है, वह वहीं ठहर जाता है. आह! निष्ठुर सर्दी. बर्फानी और सर्द हवाएं घरों में दुबकने को मजबूर कर देती हैं. संपर्क मार्ग बंद हो जाने के कारण अनाज, सब्जियां और दूसरी रसद मिलनी बंद हो जाती है.

पूरी सर्दियों में पहले से भंडारित खाद्य पदार्थों  के सहारे ही कंपकंपाती सर्दियां कट ़ती हैं. स्कूल और कॉलेज दिसंबर से फरवरी तक तीन महीनों के लिए बंद हो जाते हैं. लोग प्रार्थना सभाओं, मठों में प्रार्थनाएं करके समय व्यतीत करते हैं. बहुत हुआ, तो लोग इस घर से फुदकर उस घर तक चले जाते हैं, वो भी मौसम कुछ खुला हुआ हो, तो.

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यहां के घरों में चिमनीदार चूल्हे होते हैं, जिन्हें फायर प्लेस या अलाव भी कहा जाता है. जहां भोजन तो पकता ही है, बल्कि वह घरों के मुख्य कक्ष को रह-सह सकने लायक तापमान का स्तर बनाए रखने के लिए ऊष्मा भी देते हैं. चूल्हों और अंगीठी में पहले से इकट्ठे किए हुए सूखे गोबर के उपले-कंडे और जंगली लकड़ियों का ईंधन जलाते हैं.

कुछ घरों में ग्रीन हाउस भी होता है, जिसमें देसी तकनीक का इस्तेमाल करके मोमजामा, पॉलीथिन आच्छादित किया जाता है और ग्राीन हाउस का तापमान को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है, ताकि वहां कुछ गुजारे लायक सब्जियां उगाई जा सकें. कई बार देवयोगवश ये ग्रीन हाउस भी दगा दे जाते हैं और सब्जियां अत्यधिक शीत का शिकार होकर जल-गल जाती हैं.

यहां दूसरी जद्दोजहद पानी को लेकर भी होती है. यहां स्वच्छ जल के लिए महिलाओं को कई किमी दूर से पानी लाना पड़ता है. सर्दियों में ये जलसंपदा भी हाथ से जाती रहती है. जलस्रोत या तो बर्फ से जम जाते हैं या उनके रास्ते बर्फ के कारण अत्यंत खतरनाक हो जाते हैं. जंगली जानवर तो प्यास बुझाने के लिए जलधाराओं से अथक संघर्ष में मर ही जाते हैं, क्योंकि वह जम चुकी होती हैं और उन्हें खुरों से खोदने की कोशिश में वे फिसलकर खाइयों में गिर जाते हैं.

अब केंद्र सरकार ने लद्दाखवासियों को जल जीवन मिशन के तहत घर-घर जल पहुंचाने के लिए योजना लागू की है. लद्दाख के आखिरी गांव डेमचोक में भी पानी पहुंचा दिया है, जो लेह से 325 किमी दूर है. जीरो एनएसी के सीमावर्ती गांव डेमचोक में रहने वाले लोग सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि सरकार उन्हें पानी पहुंचाने के लिए इतनी संजीदा हो सकती है. जल जीवन मिशन (जेजेएम) के माध्यम से उनके दरवाजे पर नल का कनेक्शन पहुंचेगा. डेमचोक में 38 घर हैं. हाल ही में सभी को जेजेएम के तहत कनेक्शन दिए गए हैं. स्थानीय प्रशासन यहां सोलर पंप लगाने के लिए भी बारीकी से काम कर रहा है. 

तकनीक का कमाल

जब बर्फ में सब कुछ जम जाता है नदी, नाले और झीलें तक. तब जलापूर्ति की लाइन में पानी क्यों नहीं जमता है. यह सवाल उठना लाजिमी है. इसके लिए केंद्र सरकार ने जल जीवन मिशन के तहत विशेष तकनीक फ्यूजन किया है. डेमचोक में सप्लाई किया जा रहा पानी जमता नहीं है, क्योंकि इस पाइप के चारों ओर एक विशेष इंसुलेशन जैकेट होती है, जो पानी को जमने से रोकती है.

पहली-पहली बार हुआ

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डेमचोक में पहली बार घरेलू नल कनेक्शन दिए जाने का काम समारोहपूर्वक आयोजित हुआ. लेह के सार्वजनिक स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग विभाग (पीएचई) द्वारा आयोजित एक औपचारिक समारोह के दौरान, अध्यक्ष / सीईसी, एलएएचडीसी लेह ताशी ग्यालसन के साथ सचिव पावर लद्दाख रविंदर कुमार, डीसी लेह श्रीकांत सुसे और जीओसी यूनिफॉर्म फोर्स मेजर जनरल वी हरिहरन ने एफएचटीसी का उद्घाटन किया और उन्हें डेमचोक के निवासियों को सौंपा.

पार्षद न्योमा, इशे स्पालजैंगय डेमचोक में उद्घाटन समारोह में बीडीसी न्योमा, उर्गन चोदोन, एसई हाइड्रोलिक लेह के नेतृत्व में जल जीवन लेह/पीएचई की टीम, एसडीएम न्योमा, एक्सईएन एसएसडी न्योमा, जिलाध्उप-विभागीय अधिकारी और ग्रामीणों ने भाग लिया. सीईसी ग्यालसन ने जेजेएम के तहत घरेलू जल नल कनेक्शन प्राप्त करने के लिए जीरो-बॉर्डर गांव डेमचोक के लोगों को बधाई दी और निर्धारित समय सीमा के भीतर परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए जेजेएम लेह की टीम और संबंधित ठेकेदारों की सराहना की.

उन्होंने डेमचोक में परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान प्रशासन के साथ सहयोग के लिए भारतीय सेना का भी आभार व्यक्त किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि हाल के दिनों में लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में तेजी से विकास सीमावर्ती क्षेत्रों को मजबूत करने और निवासियों को सभी बुनियादी सुविधाओं को सुनिश्चित करने की दिशा में सुशासन का संकेत है, जिसकी आज तक कमी रही है. उन्होंने आश्वासन दिया कि उनके सामने रखी गई अन्य सभी शिकायतों को जल्द से जल्द दूर किया जाएगा.