दिल्लीः उलेमा की बैठक में आत्मरक्षा के अधिकार पर जोर

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 09-08-2021
दिल्लीः उलेमा की बैठक में आत्मरक्षा के अधिकार पर जोर
दिल्लीः उलेमा की बैठक में आत्मरक्षा के अधिकार पर जोर

 

आवाद द वाॅयस / नई दिल्ली

सामूहिक नेतृत्व को बढ़ावा देने, एकता बनाने और सभी मुसलमानों को साझा मंच पर लाने के लिए सोमवार को दिल्ली में मुस्लिम संगठनों से जुड़े उलेमा और मुस्लिम नेताओं की बैठक हुई. इसे मीडिया से दूर रखा गया.

बैठक में उत्पीड़न के खिलाफ संविधान के तहत सभी नागरिकों को दिए गए रक्षा अधिकारों के प्रयोग की वकालत करते हुए एक पांच पर लाने का एक प्रस्ताव पारित किया गया. इसके अलावा अन्य सुझावों पर भी प्रस्ताव पास किए गए.

बैठक में मुसलमानों को कानून तोड़ने वाले और असामाजिक तत्वों के हमलों से बचाने तथा देश के कानूनों के तहत अपने जीवन, संपत्ति और सम्मान की रक्षा करने आदि जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई. कानून के दायरे में और उसके भीतर दिए गए अधिकारों का उपयोग करने के बारे में बताया गया.

पांच सूत्री प्रस्ताव में एकता और आम सहमति को बढ़ावा देने के लिए हर संभव उपाय अपनाने और किसी भी देश या देश के लोगों को ठेस पहुंचाने वाले किसी भी संवाद से परहेज करने का आह्वान किया गया.

बैठक में मुसलमानों को अपने विश्वास में दृढ़ता लाने पर बल दिया गया. बैठक में उलेमा ने कहा कि भाइयों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने चाहिए. मुस्लिम छात्रों का ध्यान शिक्षा के ऐसे क्षेत्र की ओर आकर्षित करना चाहिए जिससे समाज को लाभ हो. उत्पीड़ितों की मदद करें और देश के विकास का स्रोत बनें.

बैठक में जीवन के सभी क्षेत्रों से प्रमुख और महत्वपूर्ण हस्तियों ने भाग लिया. कार्य योजना तैयार की. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना राबे हसनी नदवी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि आम समस्याओं के समाधान के लिए एक साथ आना और एक साथ बैठना महत्वपूर्ण है. एकता की सभी बाधाओं को दूर किया जाना चाहिए.

 

बैठक में एक कार्य योजना तैयार की गई

 

मौलाना सैयद अरशद मदनी के अध्यक्ष जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि सभी वर्गों, संप्रदायों और विभिन्न समूहों के साथ बैठना आवश्यक है. यह हमने पहले भी किया है.

 

भविष्य में भी करना आवश्यक है. इंटरनेट के सकारात्मक उपयोग पर ध्यान देने और अपने भाइयों और बहनों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. मौलाना खलील-उर-रहमान सज्जाद नोमानी ने कहा कि इस समय भारत समेत पूरी दुनिया में सच और झूठ के बीच संघर्ष है. दुखद स्थिति यह है कि हमारी संपत्तियों पर डर है.

 

आज के सम्मेलन से तीन महत्वपूर्ण संदेश जारी करने की आवश्यकता है. अलग-अलग कबीलों और जातियों से अलग-अलग संबंध स्थापित करने के अलावा मुस्लिम नेताओं द्वारा एकता और सद्भाव का एक आम संदेश जारी किया जाना चाहिए.

 

सभी को एक हिंदू राष्ट्र मानने के बजाय, हमें एक साजिश के तहत सभी के साथ अलग संबंध स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. यहां तक कि सिखों और बौद्धों को भी हिंदू राष्ट्र में शामिल करने की बात कही जा रही है.

 

इसके अलावा, मौलाना नोमानी ने सुझाव दिया कि हमें विभिन्न धर्मों के नेताओं के साथ औपचारिक बैठक करनी चाहिए. अपने विचार साझा करने चाहिए और साथ में भोजन करना चाहिए.

मौलाना आजाद विश्वविद्यालय, जोधपुर के अध्यक्ष प्रो. अख्तर अल-वासे ने कहा कि इत्तेहाद-ए-मिल्लत का यह प्रयास सराहनीय है.

 

उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग किया जाना चाहिए. सोशल मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले युवाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. ऐसे अभियानों में महिलाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए.

 

इससे पहले सम्मेलन के संयोजक डॉ मुहम्मद मंजूर आलम, महासचिव, अखिल भारतीय मिल्ली काउंसिल ने अपने संक्षिप्त भाषण में कहा कि इस आंदोलन और सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य चार चीजें हैं.

नंबर एकः किसी भी क्षेत्र में काम करने वालों के लिए प्रोत्साहन और प्रशंसा आवश्यक है. नंबर दोः काम करने वाले लोगों के साथ समन्वय, जुड़ाव, देश और राष्ट्र के लिए एक मूल्यवान संपत्ति है. नंबर तीनः जो लोग फील्ड में सक्रिय हैं.

हम उनकी मदद करते हैं. उनका समर्थन करते हैं. नंबर चारः आइए लोगों को एक साथ ले जाएं. एक साथ काम करें. आपसी सहयोग को बढ़ावा दें. एक साथ बैठने से समस्याएं हल होती हैं. गलतफहमियां दूर होती हैं.

मौलाना महमूद मदनी के अध्यक्ष जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि सहयोग की प्रक्रिया चीजों को आसान बनाती है. डॉ मुहम्मद मंजूर आलम के इस प्रयास को समय चाहिए और मैं उनके साथ हूं. जमात-ए-इस्लामी इंडिया के अमीर सैयद सदातुल्ला हुसैनी ने कहा कि एकता के अब तक के अधिकांश प्रयास रक्षा पर रहे हैं. अब हमें रक्षात्मक के बजाय एक सक्रिय स्थिति लेने की जरूरत है. इसे बढ़ने की जरूरत है.

इसके अलावा मौलाना फजलुर रहमान मुजद्दीदी, मौलाना अली कोटि मुसालिया, मौलाना खालिद रशीद फरंगी मोहिली, प्रो. सऊद आलम कासमी, मौलाना अनीस-उर-रहमान कासमी, मौलाना डॉ. रजीउल इस्लाम नदवी, मौलाना अब्दुल शकूर कासमी, डॉ. कासिम रसूल इलिया मौलाना काका सईद ने भी अपने विचार रखे.