ब्रह्मपुत्र नदी पर बांधों के गंभीर परिणाम होंगेः निर्वासित तिब्बती राष्ट्रपति

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 28-11-2021
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध
ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध

 

धर्मशाला. निर्वासित तिब्बती सरकार के राष्ट्रपति पेन्पा त्सेरिंग ने चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बांध के निर्माण के बारे में चिंता जताई है और उनका मानना है कि मेगा परियोजना भारत और बांग्लादेश जैसे निचले तटवर्ती देशों पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है.

त्सेरिंग ने कहा, ‘चीन तिब्बत से निकलने वाली सभी नदियों पर कई बांध बना रहा है. तीसरे देश में प्रवेश करने से पहले अकेले मेकांग नदी पर कुछ 32 बांध हैं. चीन एक बांध का निर्माण कर रहा है, जो आकार में तीन गुना माना जाता है. थ्री गोरजेस डैम आज दुनिया में सबसे बड़ा है. चीन यारलुंग त्सांगपो नदी पर जलविद्युत परियोजनाओं के साथ जारी है. नदी पर इन परियोजनाओं के प्रभाव के बारे में निचले तटवर्ती देशों में चिंताएं बढ़ रही हैं, जो भारत और बांग्लादेश के लिए मीठे पानी के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है.’

तिब्बती राष्ट्रपति ने कहा, ‘अगर किसी नदी के आकार, बांध को कुछ होता है, तो भारत पर, असम पर और बांग्लादेश में इसके क्या परिणाम हो सकते हैं? ये बहुत गंभीर मुद्दे हैं, जिन पर सभी तटवर्ती देशों को विचार करने की आवश्यकता है.’

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन द्वारा बड़े पैमाने पर चलाई जा रही कई छोटी और बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के कारण वे अब गंभीर खतरे में हैं.

टोरंटो स्थित एक थिंक टैंक इंटरनेशनल फोरम फॉर राइट्स एंड सिक्योरिटी (आईएफएफआरएएस) ने तर्क दिया है कि अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम पारिस्थितिक तंत्र और परिदृश्यों पर विचार किए बिना इन जलविद्युत बांधों के निर्माण का परियोजना के स्थान पर आसपास और दूर-दराज के इलाकों में भी महत्वपूर्ण आर्थिक और पर्यावरणीय असर पड़ता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में अरुणाचल प्रदेश और असम, ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर राज्यों और देश में बांग्लादेश में प्रमुख राजनीतिक और पर्यावरणीय प्रभाव पड़ने की संभावना है.

तिब्बती सीमा पर विकास गतिविधियों के बारे में बोलते हुए, त्सेरिंग ने कहा, ‘हमारे पास सभी घटनाओं की सटीक रिपोर्ट नहीं है, लेकिन कुछ अभी दिखाई दे रही हैं. सीमा पर हो रहे विकास पर खबरें आ रही हैं.’

उन्होंने आगे तिब्बत पर चीन के रुख के बारे में बताया और खुलासा किया कि ‘तिब्बत 2.35 मिलियन वर्ग किलोमीटर है जो चीन का लगभग एक-चौथाई हिस्सा है. तिब्बती उस पठार पर इतनी शताब्दियों से रहते आए हैं. अब चीनी सरकार तिब्बतियों को सीमांत क्षेत्रों पर क्यों ले जाना चाहती है, क्यों न उन्हें शहरों और कस्बों में बसाया जाए, जहां लोग समृद्ध हो रहे हैं. सीमाओं पर तिब्बती का हाशिए पर हैं कि तिब्बती दूसरी ओर से भी तिब्बती सीमा के संरक्षक हैं और भारतीय सेना में तिब्बती हैं, तो झगड़ा तिब्बतियों और तिब्बतियों के बीच हो सकता है.’

त्सेरिंग ने कहा, ‘यही दुष्प्रचार चीनी सरकार भेजने की कोशिश कर रही है, लेकिन मुझे संदेह है, क्योंकि चीनी सरकार को तिब्बती लोगों पर भरोसा करना होगा, जो सेना में शामिल होते हैं. यह एक रणनीतिक मुद्दा है, सामाजिक या आर्थिक मुद्दा नहीं है. चीनी सरकार तिब्बतियों पर भरोसा करती है? मुझे ऐसा संदेह है.’