कटकः मुस्लिमों की धार्मिक सहिष्णुता और रोजगार की मिसाल है दुर्गा पूजा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 1 Years ago
कटकः मुस्लिमों की धार्मिक सहिष्णुता और रोजगार की मिसाल है दुर्गा पूजा
कटकः मुस्लिमों की धार्मिक सहिष्णुता और रोजगार की मिसाल है दुर्गा पूजा

 

कटक / आवाज-द वॉयस

कटक. ऐसा नहीं है कि देश में केवल नकारात्मक विचार और विचार ही हावी हैं. देश में धार्मिक असहिष्णुता की खबरें सुर्खियों में हैं, लोगों का ध्यान भी ऐसी खबरों की तरफ है. लोग इस तरह की सोच को पसंद करते हैं. अगर आप अपने आस-पास देखेंगे, तो आपको कई ऐसी चीजें नजर आएंगी,  जो देश की एक अलग या सच्ची तस्वीर पेश करेंगी. कुछ ऐसा ही ओडिशा में हो रहा है, जो इस धरती के लिए नया नहीं है, लेकिन मौजूदा हालात में देश के लिए चौंकाने वाला जरूर है. क्योंकि ओडिशा में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल के तौर पर सैकड़ों मुसलमान दुर्गा पूजा मनाने में हिंदुओं की मदद करते हैं.

जीवन के इस तरीके और धार्मिक सहिष्णुता ने कटक के हजार साल पुराने शहर को धर्मों, विश्वासों और संस्कृतियों का एक पिघलने वाला बर्तन बना दिया है. ‘कटाकिया’ की जीवन शैली ही भाईचारे का पर्याय है. कटक में इस सदियों पुरानी एकता का प्रमाण हिंदू त्योहारों में मुस्लिम कारीगरों की सक्रिय भागीदारी है.

कटक शहर में हर दुर्गा पूजा में कई मुस्लिम परिवार आते हैं, जो पंडाल की पृष्ठभूमि में एक कलात्मक प्रदर्शन बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं.

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दुर्गा पूजा की तैयारियों में लगा एक मुस्लिम कारीगर


दुर्गा पूजा के आने से सजावटी वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है. तरह-तरह के सजावटी सामान बनाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में सुला कहा जाता है. अपनी कलात्मक खूबियों के लिए मशहूर इस कृति को स्थानीय तौर पर ‘जरी मेधा’ के नाम से जाना जाता है. अधिकांश मुस्लिम परिवार पीढ़ियों से आभूषण बनाते रहे हैं. इसके साथ ही ये कारीगर मूर्तियों के कपड़े और आभूषण बनाते और सजाते हैं जो या तो चांदी या सोने से बने होते हैं.

कटक के अलग-अलग इलाकों के मुस्लिम परिवार अब ‘जरी मेधा’ बनाने में दिन रात लगे हुए हैं. न केवल दुर्गा पूजा, बल्कि वे कई अन्य हिंदू त्योहारों जैसे गणेश पूजा, काली पूजा, लक्ष्मी पूजा और यहां तक कि प्रसिद्ध रथ यात्रा में भी अपनी रचनाओं का उपयोग करते हैं.

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सजावट सामग्री का निर्माण


अक्षय तृतीया से शुरू होकर कारीगर इस काम में लगे हुए हैं. मेधा की ऊंचाई 5 फीट से 20 फीट तक होती है. इसे कारीगरों द्वारा 50 हजार से 1.5 लाख रुपये की कीमत में बेचा जाता है. वे हिंदू त्योहारों के दौरान अपनी सेवाएं देने में प्रसन्न होते हैं, क्योंकि उनके काम की सराहना की जाती है.

एक शिल्पकार सैयद असलम अली ने कहा कि हम यहां तीन पीढ़ियों से काम कर रहे हैं. यह काम दुर्गा पूजा से दो महीने पहले शुरू हो जाता है. यह काम साल में एक बार किया जाता है, लेकिन इससे हमें खुशी मिलती है. एक अन्य कारीगर एसके रजिक ने कहा कि कटक भाईचारे का शहर है. हम पंडाल भी जाते हैं और हमारे हिंदू भाइयों द्वारा सम्मान के साथ स्वागत किया जाता है, जो हमें अच्छे काम के लिए पुरस्कृत करते हैं. कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से काम ठप होने से यह साल और भी खुशी लेकर आया है.