न्यूयॉर्क. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की बैठक में सोमवार को विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) कई मूल मुद्दों को संबोधित नहीं करती है. भारत की ओर से उठाई गई चिंता
श्रृंगला ने संधि में भारत की गैर-भागीदारी के पीछे इसे एक प्रमुख कारण बताया. उनकी यह टिप्पणी ‘सामूहिक विनाश के हथियारों का अप्रसाररू व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि’ (सीटीबीटी) पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए आई.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में विदेश सचिव ने कहा, “भारत ने निरस्त्रीकरण सम्मेलन में सीटीबीटी के मसौदे की वार्ता में भाग लिया था. लेकिन, भारत संधि में शामिल नहीं हो सका, क्योंकि संधि में भारत द्वारा उठाए गए कई प्रमुख चिंताओं को संबोधित नहीं किया गया था.”
संबोधन के दौरान, श्रृंगला ने यह भी कहा कि भारत एक परमाणु हथियार मुक्त दुनिया के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है और दुनिया से परमाणु हथियारों को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया.
श्रृंगला ने कहा, “हम मानते हैं कि इस लक्ष्य को एक सार्वभौमिक प्रतिबद्धता और एक सहमत वैश्विक और गैर-भेदभावपूर्ण बहुपक्षीय ढांचे द्वारा लिखित चरण-दर-चरण प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, जैसा कि 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को प्रस्तुत परमाणु निरस्त्रीकरण पर भारत के वर्किंग पेपर में उल्लिखित है.”
संबोधन के दौरान, विदेश सचिव ने यह भी कहा कि भारत परमाणु विस्फोटक परीक्षण पर स्वैच्छिक, एकतरफा रोक लगाता है.
भारत पहला देश था, जिसने 1954 में परमाणु परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने और 1965 में परमाणु हथियारों के अप्रसार पर एक गैर-भेदभावपूर्ण संधि का आह्वान किया था.
अप्रसार संरचना को मजबूत करने के उद्देश्य से, भारत विभिन्न निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं जैसे ऑस्ट्रेलिया समूह, वासेनार व्यवस्था, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था में भी शामिल हो गया है और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह सूची के साथ अपने नियंत्रण का सामंजस्य स्थापित कर लिया है.
इस बीच, विदेश सचिव ने यह भी आग्रह किया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को परमाणु हथियार मुक्त विश्व की सामूहिक आकांक्षा को साकार करने की दिशा में काम करना जारी रखना चाहिए.