राकेश चौरासिया / नई दिल्ली-दरभंगा
यह खबर बात-बात पर हिंदू-मुसलमान करने वालों के गालों यह झन्नाटेदार मोहर है. कोरोना संक्रमित पिता की जब मौत हो गई, तो सगे बेटे ने शव लेने से इनकार कर दिया और वह शव को अस्पताल में ही छोड़कर चला गया. ऐसे में एक मुस्लिम युवक आगे आया और उसने पूरी हिंदू रीति-रिवाज से उस शव का अंतिम संस्कार किया.
कोरोना की आफत में जब मानव संवेदनाएं अपने घुटनों पर आ गई हैं. ऐसे में मानव संवेदनाओं के नए प्रतिमान भी गढ़े जा रहे हैं.
यह घटना बताती है कि जब अपनों ने दुत्कार दिया, तो गैरों ने गले लगा लिया. प्रभु परमात्मा द्वारा सृजित मानवता की यही सबसे बड़ी खूबसूरती है.
दरभंगा के कमतौल क्षेत्र के केवटी प्रखंड गांव पिंडारुच में यह घटना हुई. यहां का एक पूरा परिवार कोरोना संक्रमित चिन्हित किया गया. इस परिवार में एक पूर्व रेलकर्मी, उसकी पत्नी और दो पुत्र शामिल हैं. इन्हें कोरोना के कारण डीएमसीएच में उपचार के लिए भर्ती किया गया था.
उपचार के दौरान वृद्ध रेलकर्मी की इहलीला समाप्त हो गई और वह परलोक सिधार गया.
यह शोक समाचार रेलकर्मी के तीसरे पुत्र को देकर बुलाया गया, लेकिन तीसरे पुत्र ने अस्पताल कर्मियों के सामने हाथ खड़े कर दिए.
पुत्र ने कहा कि उसे संक्रमण हो सकता है. इसलिए वह अपने पिता का शव नहीं ले जाएगा और न ही अंतिम संस्कार करेगा. पुत्र ने लिखित में अस्पताल से कहा कि वह शव स्वीकार नहीं करेगा. लिखित देकर वह अस्पताल से चला गया और अपना मोबाइल फोन भी स्विच ऑफ कर लिया.
अस्पताल कर्मी सगे बेटे का जवाब और व्यवहार देखकर हैरान हो गए. जिसने भी यह सब सुना, वह कलियुग को कोसता नजर आया.
पुत्र को भारतीय संस्कृति में ‘रत्न’ कहा जाता है. पुत्र प्राप्ति पर महिलाएं कांसे की थालियां बजाकर मंगलध्वनि करती हैं और कुआं पूजन होता है. हर आदमी उम्मीद करता है कि उसका बेटा उसके बुढ़ापे का सहारा बनेगा. बुढ़ापे की लाठी बनकर उसे दो रोटी देगा. पूरी उम्र व्यक्ति इस अहसास के साथ जीता है कि जर्जर काया का बोझ वह बेटे की मदद से उठा लेगा. बेटा उसका अंतिम संस्कार करेगा. बेटा उसका और उसके पुरखों और पुरखियों का तर्पण करेगा, लेकिन इसे कोरोना का खौफ कहें या मानवीयता की गरीबी कि एक बेटे ने एक पिता की स्वतःस्फूर्त आस को तोड़ दिया.
तब अस्पताल कर्मियों ने एक मुस्लिम युवक मोहम्मद उमर को अंतिम संस्कार के लिए संपर्क किया, जो कबीर नाम की संस्था से जुड़े हुए हैं. उमर ने अपने तीन साथियों नवीन सिन्हा, सुरेंद्र, और रंजीत के साथ पूरे हिंदू रीति-रिवाजों से बुजुर्ग की चिता सजाई और उस अभागे पिता को मुखाग्नि देकर इंसानियत की बुलंदी को छुआ.
अंतिम संस्कार
हालांकि इन युवाओं ने बुजुर्ग का अंतिम संस्कार करते समय पीपीई किट पहनी हुई थी. फिर भी उन्हें सावधानीवश आईसोलेशन में रखा गया है. उन सभी का कोरोना टैस्ट भी किया गया है. रिपोर्ट की प्रतीक्षा है, तब तक वे आईसोलेशन में रहेंगे.
उमर का कहना है कि उसने अपना फर्ज निभाया है. बुजुर्ग को यह अंतिम सम्मान मिलना ही चाहिए.