सेराज अनवर / रांची
झारखंड में वेतन की राह देख रहे मौलवियों की आंखें पथरा गई हैं. इसके बावजूद सरकार और संबंधित अधिकारियों का दिल नहीं पसीजा है. 43 महीने से गांवों-कस्बों और शहरों में अवस्थित अराजकीय प्रस्वीकृत 186 मदरसों के शिक्षक एवं शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को पगार नहीं मिला है, जिसके चलते उनके समक्ष भुखमरी के हालात पैदा हो गए हैं. शिक्षकों का आरोप है कि सोरेन सरकार ने मदरसों के सत्यापन के नाम पर वेतन रोका है.
पूरे देश में दो तरह के मदरसे हैं. एक मदरसे तो वो हैं, जो चंदे से चलते हैं और दूसरे वो हैं जिन्हें सरकार की ओर से फंड मिलता है. मदरसे आम सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की तरह ही होते हैं. इन्हें इस्लाम की तालीम देने के लिए बनाया गया था. वक्त के साथ जब मदरसों में छात्रों की संख्या बढ़ी, तो सबको ये महसूस हुआ कि इस्लामी तालीम हासिल करके जिंदगी की रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता है. इसलिए 80 के दशक में कुछ मदरसों में दूसरे स्कूलों की तरह हिंदी, अंग्रेजी और दूसरी भाषाएं भी पढ़ाई जाने लगीं, लेकिन बदली हुई ये व्यवस्था कुछ ही मदरसों तक कायम रही. देश के अधिकांश मदरसों में अब भी सिर्फ इस्लामिक शिक्षा ही दी जाती है. संविधान की धारा 14, 25, 29, 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को धार्मिक एवं भाषाई शिक्षा प्रसार-प्रचार की मुकम्मल आजादी दी गई है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शिक्षण संस्थान की स्थापना का अधिकार दिया गया है.
जिस तरह कोई स्कूल या तो राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त होता है या फिर वो सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड से मान्यता प्राप्त होता है, ठीक उसी तरह से मदरसों को भी अलग-अलग राज्य सरकारों के मदरसा बोर्ड से मान्यता मिली होती है. झारखंड में मदरसे झारखंड एकेडमिक काउंसिल के मातहत हैं.भौतिक सत्यापन के नाम पर राज्य सरकार ने झारखंड के 117 मदरसा के मौलवियों व शिक्षकों का 2017 जुलाई से वेतन बंद कर रखा है. प्रदेश में कुल मदरसों की संख्या 186 है. तनख्वाह को लेकर मदरसा के शिक्षक लगातार विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.
झारखंड में 186 अनुदानित मदरसों के अलावे 590 गैर अनुदानित मदरसे भी हैं. इन्हें सरकार की ओर से कोई अनुदान नहीं मिलता है. 2013-14 में तत्कालीन सरकार ने गैर अनुदानित 110 मदरसों का प्रस्ताव अनुदान देने के लिए दिया था. इसमें से 46 को अनुदान मिला. राज्य में नई सरकार के गठन के बाद बाकी गैर अनुदानित मदरसों की भी जांच की बात कही गई है. झारखंड में नए मदरसों को एफीलिएशन नहीं मिला है. राज्य में जो 186 मदरसे हैं, वह संयुक्त बिहार के समय से ही हैं. गैर विभाजित बिहार में मदरसों की कुल संख्या 1305 थी. बिहार से अलग होने पर राज्य के क्षेत्र में पड़ने वाले सभी मदरसे झारखंड के हो गए.
कई बार अनुदान को लेकर इन मदरसों की जांच की बात कही गई. विभागीय सूत्रों की मानें तो 2011 में मदरसों की जांच की जिम्मेदारी उपायुक्तों को दी गई थी. उपायुक्तों ने एसडीओ को तो एसडीओ ने प्रखंड के पदाधिकारियों से जांच करवा ली. इससे जांच रिपोर्ट पूरी नहीं हुई और वह अधूरी ही आ पाई. इसकी वजह से 117 मदरसों का अनुदान रुक गया, जिसका पिछले साढ़े तीन वर्षों से भुगतान नहीं हो सका है.
इन मदरसों के शिक्षकों को 2017 तक निरंतर वेतन का भुगतान होता रहा. राज्य सरकार के माध्यामिक शिक्षा निदेशक ने 20 अप्रैल 2017 को पत्रांक संख्या 1294 के अंतर्गत सभी जिलों के उपायुक्तों को एक पत्र भेजा. इसमें कहा गया था कि विभागीय मंत्री ने प्रस्वीकृत मदरसों में शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों के वेतन आदि की स्वीकृति के पूर्व सभी 186 मदरसों का भौतिक सत्यापन कराने का आदेश दिया है. पत्र के जरिये इसका भी उल्लेख था कि सत्यापन के दौरान यह देखा जाए कि सभी मदरसे, मानकों का अनुपालन करते हैं या नहीं. साथ ही जांच प्रतिवेदन एक हफ्ते में उपलब्ध कराने को कहा गया. जांच में उलझा कर वेतन रोक दिया गया.
मौलवियों को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रहे ऑल झारखंड मदरसा टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव हामिद गाजी बताते हैं कि 1980 के पूर्व मदरसों के लिए कोई नियमावली नहीं बनाई गई थी. गांव और समाज द्वारा गठित कमेटी की निगरानी में सभी मदरसे बखूबी संचालित होते थे. अलबत्ता बाद के दिनों में मदरसों को मंजूरी देने के लिए पत्रांक संख्या 1090 के तहत 29 नवंबर 1980 को नियमावली तैयार की गई. कई जिलों में महीनों से जांच चल रही है. जब तमाम हील-हुज्जत के बाद जिलों से जांच रिपोर्ट राज्य मुख्यालय पहुंची, तो उस पर झारखंड एकेडमिक काउंसिल से कहा गया है कि मदरसा के मानकों पर ये रिपोर्ट खरी उतरती है या नहीं, इसे देखा जाए. तब से काउंसिल और विभाग के बीच पत्राचार जारी है.
एसोसिएशन ने कहा कि तीन साल में तीन अलग-अलग स्तर पर मदरसों की जांच कराई गई है. अब वे आगे जांच में कोई सहयोग नहीं करेंगे. सरकार द्वारा गत तीन वर्षों से केवल जांच कराई जा रही है. मदरसा शिक्षकों को पहले बकाया वेतन का भुगतान किया जाए, इसके बाद जांच की बात हो. वेतन नहीं मिलने से आर्थिक तंगी के कारण अब तक नौ मदरसा शिक्षकों की मौत हो चुकी है. एसोसिएशन को यह भी नागवार गुजरता रहा है कि मदरसे की प्रबंध कमेटी के बदले शासी निकाय के नाम जो कमेटियां बनाई गईं, उसमें मुस्लिम समाज के शिक्षाविद, बुद्धिजीवी से ज्यादा अफसरान को तवज्जो दी गई.
गौरतलब है कि झारखंड में तकरीबन 15 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. 186 मदरसों में शिक्षकों के 1400 पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल 700 शिक्षक ही सेवा में बचे हैं. इससे पढ़ाई अलग प्रभावित हो रही है, जबकि इन मदरसों में तालीम लेने वाले बच्चों की संख्या करीब 50हजार होगी. झारखंड में 139 मदरसे में आठवीं तक यानी वस्तानिया की पढ़ाई होती है. जबकि 47 में फोकानिया और मौलवी तक की पढ़ाई होती है.
जांच के लिए कई मानक तय किए गए हैं. वस्तानिया की पढ़ाई करने वाले मदरसों के लिए 5 कट्ठा जमीन, छह कमरे, छह शिक्षक और पर्याप्त कुर्सी-टेबल होने चाहिए. साथ ही दो मदरसों के बीच चार किलोमीटर की दूरी होनी जरूरी है. फोकानिया की पढ़ाई कराने वाले मदरसों के लिए मदरसा के नाम पर 20 कट्ठा जमीन, 10 कमरे, 10 शिक्षक, लेबोरेटरी और लाइब्रेरी की व्यवस्था होनी चाहिये. साथ ही फोकानिया स्तर के दूसरे मदरसे से 8किलोमीटर की दूरी जरूरी है. मौलवी की पढ़ाई वाले मदरसों के लिए मदरसा के नाम पर 20 कट्ठा जमीन, 12 कमरे, 12 शिक्षक, कुर्सी, टेबल, लाइब्रेरी और लैबोरेट्री होनी चाहिए और साथ ही दूसरे मदरसे से 8किलोमीटर की दूरी होनी आवश्यक है.
हामिद गाजी बताते हैं कि मानकों के दायरे में भवन और कमरे की उपलब्धता प्रमुख बिंदु है. तब मदरसा के लोगों के सवाल भी हैं. अगर कोई मदरसा इस मानक पर खरा नहीं उतर रहा, तो सरकार इसके लिए फंड क्यों नहीं मुहैया कराती.
मामला जब काफी तूल पकड़ा, तो इसी साल सितंबर महीने में एक उच्च स्तरीय बैठक में वेतन भुगतान का निर्णय लिया गया. इससे पूर्व मदरसा शिक्षकों के वेतन भुगतान को लेकर राज्य मंत्रिमंडल ने स्वीकृति प्रदान कर दी थी, लेकिन कुछ बिंदुओं को लेकर आ रही अड़चन को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तीन सदस्यीय समिति का गठन कर सभी कठिनाइयों को दूर करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. इस समिति में ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम, मानव संसाधन विकास मंत्री जगरनाथ महतो और झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक सुदीप्त कुमार सोनू शामिल थे.
मदरसा शिक्षकों-शिक्षकेत्तर कर्मियों के तीन वर्ष चार महीने के बकाया भुगतान के लिए 58 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, लेकिनतीन महीने बीत जाने के बाद भी नतीजा सिफर ही है. देखना होगा की आखिर कब सरकार इनके बकाये वेतन को इन्हें देती है. कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक आलमगीर आलम कहते हैं कि सदन से लेकर सड़क तक उन्होंने मदरसा शिक्षकों का वेतन जारी करने को लेकर आवाज उठाई, लेकिन जांच के नाम पर अब तक इसे रोककर रखा गया है. कई पिछड़े जिलों में तालीम पर इसका खासा असर पड़ा है. उन्हें यह कहने से गुरेज नहीं कि सरकार की नीति-नीयत में पारदर्शिता नहीं है.