बदलते मौसम का कोरोना संक्रमण पर फर्क नहीं, कोविड एसओपी पालन जरूरी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 15-05-2021
अध्ययन बतातें हैं कि कोरोना प्रसार पर मौसम का सीधा असर नहीं है
अध्ययन बतातें हैं कि कोरोना प्रसार पर मौसम का सीधा असर नहीं है

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

देशभर में अभी मॉनसून पूर्व बरसात की वजह से अधिकतम तापमान में कमी आई है और न्यूनतम तापमान में भी कमी आई है. आमतौर पर मई का महीना हीट वेव यानी स्थानीय पवन लू के लिए जाना जाता है. पर मॉनसून पूर्व हुई बरसात ने मौसम सुहावना बना रखा है.

लेकिन इन परिस्थितियों में कुछ लोगों का कहना है कि क्या तापमान में इस परिवर्तन से क्या कोविड संक्रमण में तेजी या कमी आएगी?

आपको याद होगा कि कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत में भी लोगों में उम्मीदें थी कि भारत की तेज और सूखी गरमी से वायरस का प्रसार रुक जाएगा. पर इस गरमी ने कोरोना के प्रसार में कोई राहत नहीं दी थी. ऐसे में, विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम और कोविड 19 के प्रसार में मोटे तौर पर कोई बड़ा रिश्ता नहीं है.

विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड 19 और मौसम के बीच का रिश्ता बहुत जटिल है. मौसम का प्रभाव कोरोना वायरस पर पड़ता है जिसे नए होस्ट में जाने से पहले बाहर के वातावरण में जीवित बचा रहना जरूरी है. लेकिन इस पर मानवीय व्यवहार का भी प्रभाव पड़ता है जो वायरस को एक होस्ट से दूसरे होस्ट में पहुंचाता है.

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ने एक अध्ययन किया है जिसमें यह स्पष्ट तौर कहा गया है कि कोविड 19 के संक्रमण के मामले में तापमान और नमी का कोई महत्वपूर्ण किरदार इसके विस्तार में नहीं होता.

इसका अर्थ यह हुआ कि बाहर का मौसम गरम हो या ठंडा, कोविड 19 के एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ट्रांसमिशन पूरी तरह मानवीय व्यवहार पर निर्भर करता है. इस रिसर्च पेपर में विश्वविद्यालत के जैकसन स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज ऐंड कॉकरेल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के प्रो देव नियोगी, जो इस अध्ययन परियोजना के मुखिया भी हैं, ने लिखा है, “(कोविड के प्रसार पर) मौसम का प्रभाव बेहद कम है और इसकी बजाए गतिविधि जैसे कारकों का प्रभाव अधिक है. अगर तुलना के रूप में कहा जाए, तो मौसम का असर सबसे अंतिम ही कारक होगा.”

इस शोध पिछले साल 26 दिसंबर को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंनवायर्नमेंटल रिसर्च ऐंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ था. इस शोध पत्र के सह-लेखक पोर्द्यू यूनिवर्सिटी के रिसर्च असिस्टेंट सज्जाद जमशीदी और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की डॉक्टोरल कैंडिडेट मरियम बनियासाद हैं.

इन वैज्ञानिकों ने पाया कि कोविड के प्रसार पर मौसम का प्रभाव नगण्य है. इस शोध पत्र के मुताबिक, अन्य कारकों की तुलना में मौसम का प्रभाव लगभग 3 फीसद ही है. तिसपर भी, यह स्पष्ट नहीं है कि कोविड का प्रसार किस तरह के मौसम में अधिक होता है या कौन सा मौसम इसके प्रसार को बढ़ाता है.

इसकी बजाए, इस शोध के आंकड़े प्रसार के लिए मानवीय व्यवहार को अधिक जिम्मेदार ठहराते हैं. उस में भी निजी बरताव सबसे अधिक असरदार है. कोविड 19 के प्रसार में घर से बाहर अधिक समय गुजारना और घूमने के लिए निकलने को दो बडे कारक माना गया है. इन दोनों को तुलनात्मक महत्व में 34 फीसद और 26 फीसद अहमियत दी गई है. इसके अलावा दो अगले अन्य महत्वपूर्ण कारक आबादी और शहरी आबादी का घनत्व है. इन दोनों का तुलनात्मक वजन 23 फीसद और 13 फीसद है.

जमशीदी ने अपने शोध पत्र में लिखा है, “हमें कत्तई नहीं सोचना चाहिए कि यह समस्या मौसम या जलवायु से है या हो सकती है. हमें निजी सावधानियां बरतने की जरूरत है और शहरी इलाकों में जिन कारकों का जिक्र किया गया है उनसे खासतौर पर एहतियात रखने की जरूरत है.”

बायोकेमिस्ट और फर्मासिस्ट रिसर्चर बनियासाद लिखती हैं कि मौसम को लेकर कोरोना वायरस किस तरह से बर्ताव करना है, इसकी धारणा मोटे तौर पर उन अध्ययनों के आधार पर हैं जो इससे मिलते जुलते वायरसों पर की गई हैं. (मसलन, जुकाम) और जिनका प्रसार मौसमी बदलाव के यानी तापमान के संक्रमण के दौर में अधिक होता है. लेकिन कोरोना वायरस सामुदायिक प्रसार वाला वायरस है.

इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, ऑस्टिन, नासा और नेशनल साइंस फाउंडेशन ने करवाया था.

इस अध्ययन के नतीजों का समर्थन यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया में वातावरण विज्ञान के प्रोफेसर मार्शल शेफर्ड ने भी किया है. वह कहते हैं, कि यह अध्ययन मौसमी बदलाव और कोरोना के प्रसार पर अहम स्पष्टीकरण देता है.

इसका मतलब है, उत्तरी भारत में प्री-मॉनसून बारिश के मौसम से तापमान में आई गिरावट तब तक संक्रमण नहीं फैला सकती, जब तक कि आप निजी हाइजीन और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करेंगे.