कैलिग्राफर अनिल चौहानः रहमत आलम अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] • 2 Years ago
कैलिग्राफर अनिल चौहानः रहमत आलम अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित
कैलिग्राफर अनिल चौहानः रहमत आलम अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार से सम्मानित

 

शेख मुहम्मद यूनिस / हैदराबाद

हैदराबाद में कैलिग्राफी के लिए मशहूर अनिल कुमार चौहान को ईद मिलाद-उन-नबी के मौके पर रहमत आलम इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड से नवाजा गया.

हैदराबाद में, अनिल चौहान को सांप्रदायिक सद्भाव और हिंदू-मुस्लिम एकता का अग्रदूत माना जाता है. उन्होंने अपनी विभिन्न कलाओं से हैदराबाद की विभिन्न मस्जिदों में एक मिसाल कायम की है.

हैदराबाद के जाने-माने कलाकार अनिल कुमार चौहान विश्व प्रसिद्ध कैलिग्राफर हैं. चौहान ने अपने करियर की शुरुआत एक साधारण चित्रकार के रूप में की थी और अपनी कड़ी मेहनत और खोज के माध्यम से दुनिया के सबसे अच्छे और सबसे कुशल सुलेखकों में से एक के रूप में उभरे. उनका जीवन कला की दृष्टि से एक लंबे और धैर्यवान संघर्ष का व्यावहारिक उदाहरण भी है.

अनिल कुमार चौहान एक गैर-मुस्लिम कैलिग्राफर हैं, जिन्होंने 200 से अधिक मस्जिदों में कुरान की आयतें और पवित्र नाम लिखे हैं. अनिल कुमार चौहान किसी औपचारिक स्कूल या मदरसे में नहीं गए. इसके विपरीत, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और परिश्रम से न केवल उर्दू भाषा में महारत हासिल की, बल्कि सुलेख की कला में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.

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अनिल कुमार चौहान की कला सभी को हैरान करती है. गैर-मुस्लिम होने के बावजूद, उनका उर्दू और अरबी लेखन अद्वितीय है और कोई भी प्रशंसा के बिना नहीं रह सकता.

रहमत आलम अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार

कल हिन्द बज्म रहमत-ए-आलम की ओर से ख्वाजा मानशान मनसाहिब टांक के अवसर पर मिलाद-उन-नबी का आयोजन किया गया था. एक प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान और बंगाल के शेर मौलाना शमीम-उल-जमान कादरी ने अतिथि के रूप में समारोह में भाग लिया. इस मौके पर मौलाना शमीम अलजमान कादरी और अध्यक्ष बज्म एमए मुजीब उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता ने अनिल कुमार चौहान को पुरस्कार प्रदान किया और उनकी सेवाओं की सराहना की.

मस्जिदों में सुलेख के लिए कोई शुल्क नहीं है

अनिल कुमार चौहान ने 100से अधिक मस्जिदों में मुफ्त कुरान की आयतें और आशीर्वाद नाम लिखे हैं. इसके अलावा, अनिल कुमार चौहान ने दरबार और दरगाहों में भी अपनी छाप छोड़ी है. आज वह कैलिग्राफी और उर्दू व अरबी लिपियों की महारत के कारण अपनी प्रसिद्धि की ऊंचाई पर है और पूरे वर्ष व्यस्त रहते हैं.

कैलिग्राफी पैटर्न की प्रदर्शनी

बज्म रहमत आलम ने मिलाद-उन-नबी के अवसर पर अनिल कुमार चौहान द्वारा कैलिग्राफी कार्यों की एक प्रदर्शनी भी आयोजित की. अनिल कुमार चौहान लंबे समय से अपना कलेक्शन दिखाना चाहते थे.

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प्रदर्शनी  


आवाज-द वॉयस के साथ हाल ही में एक साक्षात्कार में, अनिल कुमार चौहान ने अपनी इच्छा व्यक्त की थी. अनिल कुमार चौहान प्रदर्शनी की मेजबानी करके बहुत खुश थे. सैकड़ों प्रतिभागियों ने अनिल कुमार चौहान की कला को देखा और उन्हें स्नेह दिया.

गैर-मुस्लिम प्रतिभागियों ने भी प्रदर्शनी को देखा और अनिल कुमार चौहान की कला की प्रशंसा की. प्रदर्शनी सुबह 10 बजे शुरू हुई और शाम 5बजे तक चली. सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शनी देखी और टग खरीदकर कलाकार का उत्साहवर्धन भी किया. अनिल कुमार चौहान को भी बहुत भक्ति है. वह दूसरों द्वारा रचित नात कलाम का पाठ करते हैं.

अनिल कुमार चौहान बहुत खुश हैं

आवाज-द वॉयस के संवाददाता से बात करते हुए अनिल कुमार चौहान ने पुरस्कार मिलने पर खुशी जाहिर की. उन्होंने कहा कि वह 25से अधिक वर्षों से सेवा कर रहे हैं. आज उनकी सेवाओं के सम्मान में उन्हें पुरस्कार दिया गया है. अनिल कुमार चौहान ने कहा कि एक प्रमुख इस्लामी विश्वविद्यालय जामिया निजामिया से फतवा प्राप्त करने के बाद, वह लगातार मस्जिदों और दरगाहों में कुरान की आयतें और पवित्र नाम लिख रहे हैं. जामिया निजामिया के फतवे के बाद न सिर्फ आपत्तियां खत्म हुईं, बल्कि लोग उनका तहे दिल से सम्मान भी करते हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी कलाकार को प्रोत्साहित करना समाज की जिम्मेदारी है. उन्होंने बज्म रहमत आलम के प्रभारी लोगों को पुरस्कार प्रदान करने और प्रदर्शनी की व्यवस्था करने के लिए धन्यवाद दिया.

उर्दू भाषा से प्यार

अनिल कुमार चौहान ने कहा कि वह एक चित्रकार होने के कारण उर्दू भाषा से परिचित नहीं थे. उर्दू भाषा उनके काम के लिए आवश्यक थी. उन्होंने दिन-रात अभ्यास किया और उर्दू भाषा में महारत हासिल की. उन्होंने कहा कि शुरुआत में वे बिना समझे उर्दू के शब्द लिखते थे. उन्होंने कहा कि उन्हें उर्दू भाषा की मिठास के कारण प्यार हो गया. उन्होंने उर्दू के साथ-साथ अरबी में भी सुलेख की कला में महारत हासिल की. अनिल कुमार चौहान ने कहा कि भाषा को कभी भी किसी राष्ट्र और धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता. उन्होंने कहा, ‘भाषाएं दिलों को जोड़ती हैं.’

कला के माध्यम से सम्मान

अनिल कुमार चौहान ने कहा कि एक कलाकार का कोई धर्म नहीं होता. वह अपनी कला से सभी का दिल जीत रहे हैं. उन्होंने कहा कि कला के कारण ही उन्हें समाज में सम्मान और सम्मान मिला है. अनिल कुमार चौहान ने कहा कि उन्होंने दर्जनों मस्जिदों में अवैतनिक सेवाएं दी हैं. उन्होंने कहा कि कुरान की आयतें लिखने से आध्यात्मिकता का अहसास होता है और यह आध्यात्मिक भावना उन्हें मुआवजा मांगने से रोकती है. उन्होंने कहा कि इस काम के बदले में उन्हें जो भी उपहार दिया जाता है, उसे वह सहर्ष स्वीकार करते हैं. क्योंकि यही उनकी रोजी-रोटी है और उनके पास आय का कोई दूसरा जरिया नहीं है. अनिल कुमार चौहान ने कहा कि शुभचिंतक और धनी लोगों को कला की सराहना करने और कलाकार को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए, ताकि एक कलाकार अपनी प्रतिभा को पूरी तरह से दिखा सके और अपनी कला को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जा सके.

हिंद बज्म रहमत आलम

अखिल भारतीय बज्म रहमत आलम एक गैर-राजनीतिक संगठन है, जिसका मिशन मानवता की सेवा करना और एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण सुनिश्चित करना है.