गोली मसले का हल नहींः कश्मीरियों की जुबां पर है जनरल ढिल्लो का नाम

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 03-02-2022
कश्मीरियों की जुबां पर है लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लो का नाम
कश्मीरियों की जुबां पर है लेफ्टिनेंट जनरल ढिल्लो का नाम

 

आवाज-द वॉयस / नई दिल्ली

लेफ्टिनेंट जनरल केएस ढिल्लो कश्मीर का एक ऐसा नाम है, जो अपने खास ऑपरेशन से न केवल भटके युवाओं को सही रास्ते पर लाए, बल्कि आमजन के कल्याण के लिए भी अनेक कार्य किए. हालांकि ढिल्लो सेवानिवृत्त हो चुके हैं, पर उनके काम आज भी लोगों की जुबान पर हैं.

गुमराह युवाओं का मार्गदर्शन कर की उनकी घर वापसी कराना. फिर मुख्यधारा में लाना बड़ा महत्वपूर्ण काम है. लेफ्टिनेंट जनरल केएस ढिल्लो कश्मीर में इसके लिए खास पहचान रखते हैं. भारतीय सेना में 39 साल की सेवा के बाद सोमवार को सेवानिवृत्त हुए ढिल्लो  को कश्मीर के लोगों से बेहद प्यार है. इसकी वजह भी है, क्योंकि अपनी सर्विस का बड़ा हिस्सा इसी क्षे़ में बिताया है. इसलिए जनरल केएस ढिल्लो का नाम कोई नहीं भूल सकता.

दरअसल, 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद इस रैकेट में शामिल होने वाले आतंकियों की संख्या में इजाफा होने लगा था. तभी लेफ्टिनेंट जनरल केएस ढिल्लो की टीम ने कश्मीर को फिर से जन्नत बनाने के लिए शांति का दीपक जलाने का निर्णय लिया. युवाओं को पाकिस्तान और कश्मीर के हुर्रियत नेताओं द्वारा संचालित आतंकवादी समूहों तथा कट्टरपंथियों से बचाने का निर्णय लिया. इसका असर अब दिखने भी लगा है.

इस एक गैर-कश्मीरी सेना के जनरल ने कश्मीर में अपनी सेवा के लगभग 30 साल बिताए और दक्षिण और उत्तरी कश्मीर दोनों में सेवाएं दीं.

धारा 370 को निरस्त कर दिया गया और हमने देखा कि एक भी गोली नहीं चलाई गई और सौभाग्य से भारत सरकार के इतने बड़े कदम के बाद कोई नागरिक नहीं मारा गया. इसका श्रेय जनरल जेएस ढिल्लो और उनकी टीम को जाता है कि उन्होंने अन्य सुरक्षा बलों और नागरिक प्रशासन के साथ कानून व्यवस्था बनाए रखने और लोगों को आवश्यक चीजें आसानी से उपलब्ध कराने के लिए, दवा की दुकानें खुलवाईं, रोजमर्रा की चीजें जनता को आसानी से उपलब्ध हो इसकी व्यवस्था की.

सेना ने घर-घर जाकर लोगों को फोन किया, ताकि वे अपने प्रियजनों की ‘खैरियत‘ जान सकें, उस समय कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए फोन सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, वह जम्मू-कश्मीर के लोगों से बिना किसी कारण के आतंकवाद और हिंसा को छोड़ने की अपील करने के लिए निकल पड़े. उन्होंने कश्मीरी लोगों की भलाई के लिए कश्मीर में कुछ सफल अभियान चलाए. मिशन कश्मीर के लिए ऑपरेशन एमएए (माँ) का नाम रखा गया, जहां उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कश्मीर की माताओं से अपने बच्चों को उग्रवादियों के रैकेट में शामिल होने से बचाने की अपील की थी. अभियान के दौरान कहा जाता थ, ‘चलिए मुख्यधारा में वापस आते हैं, क्योंकि कलम और किताबों में ही उनका भविष्य है, बंदूक और हथगोले में नहीं हैं.’

कश्मीरी समाज में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि मां, बहनें और बेटियां कश्मीरी परिवारों में पारिवारिक जीवन की जीवनदायिनी हैं. उन्हें प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने कहा, ‘आप भविष्य के परिवार की शिल्पकार हैं. आप अपने व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक जीवन में बहुत कुछ हासिल कर सकती हैं. इसलिए मैं उनका मार्गदर्शन करने के लिए कहता हूँ. अपने बच्चों को सही रास्ते पर ले जाएं. ऑपरेशन का कश्मीर के युवाओं पर अच्छा प्रभाव पड़ा. आखिरकार एक या दो महीने में आतंकवाद का ग्राफ नीचे चला गया. ‘एनकाउंटर‘ के दौरान भी माताओं ने अपने बेटों से बात की और उन्हें वापस आने के लिए मना लिया.’

पचास से अधिक युवाओं ने आतंकवाद छोड़ दिया है और माताओं से प्रशंसा के संदेश उनके लिए अमूल्य उपहार हैं. ऑपरेशन के पीछे मुख्य कारण स्थानीय आतंकवादियों को उनके घरों में लौटने की अनुमति देना था.

कश्मीर में अपने कार्यकाल की सफलता के बाद, लेफ्टिनेंट जनरल धलान ने डीआईए के महानिदेशक के रूप में पदभार संभाला, जो 2002 में मंत्रियों के एक समूह की सिफारिश पर गठित एक खुफिया इकाई है. उन्हें अपने करियर के दौरान कई पदकों से सम्मानित किया गया, जिनमें परमविष्ट सेवा पदक और आत्म योद्धा सेवा पदक शामिल हैं.

दूसरा ऑपरेशन था, ‘लोग और सेना - हम पड़ोसी हैं.‘

ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य स्थानीय लोगों और सेना के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना, क्योंकि इसमें स्थानीय लोगों के लिए ‘पड़ोसी‘ शब्द का इस्तेमाल किया गया था. दरअसल, संबंध और मजबूत होते गए, क्योंकि जनरल केजेएस ढिल्लो और उनकी टीम ने कश्मीर के स्थानीय लोगों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने से कभी पीछे नहीं हटे. उन्हें जल्द से जल्द उनकी शिकायतों का समाधान करने का आश्वासन दिया. उन्होंने ऐसा किया भी. उन्होंने अपनी सुरक्षा और सुरक्षा के बारे में जनता को आश्वस्त करने के लिए सोशल, प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का व्यापक उपयोग किया. उन्होंने कश्मीर के लोगों से मुठभेड़ क्षेत्रों से दूर रहने का एक महत्वपूर्ण अनुरोध भी किया, ताकि किसी भी निर्दोष जीवन को बचाया जा सके.

उन्होंने कश्मीर में ‘हज हाउस‘ का दौरा किया, जहां से लोग हज के लिए प्रस्थान करते हैं. ‘पड़ोसी‘ की प्रतिबद्धता को पूरा करते हुए, कश्मीरी लोगों को पूर्ण समर्थन प्रदान करने के लिए आम आदमी की भलाई के लिए कई छोटी और लंबी अवधि की योजनाएं भारत सरकार को प्रस्तुत की गईं.

स्थानीय लोगों और सेना के बीच संबंध प्रगाढ़ होने के कारण ऑपरेशन बहुत सफल साबित हुआ. हम इन दिनों देखते हैं कि अगर कश्मीरियों को किसी भी आपात स्थिति का सामना करना पड़ता है, तो वे मदद के लिए सीधे सेना से संपर्क करते हैं.

यहां तक कि सेना द्वारा आम लोगों के लिए कुछ हेल्पलाइन नंबर भी स्थापित किए गए है. हम सोशल मीडिया पर देख सकते हैं कि कैसे लोग अपनी शिकायतें पोस्ट करते हैं और भारतीय सेना के आधिकारिक पेजों को टैग करते हैं. कश्मीर में शांति के लिए काम करते हुए, सेना ने कई मौकों पर गर्भवती महिलाओं सहित कई आपातकालीन रोगियों को एयरलिफ्ट किया है.

कश्मीरी युवाओं के भविष्य को नष्ट करने के लिए पाकिस्तानी सेना द्वारा कश्मीर में नशीले पदार्थों के संकट को खत्म करने के लिए भारतीय सेना ने युवाओं के लिए कई सेमिनार और अभियान आयोजित किए हैं, ताकि वे अपने भविष्य और राष्ट्र को पूरी ताकत से बना सकें.

जनरल ढिल्लो द्वारा शुरू किया गया तीसरा सफल अभियान ‘शिक्षा के माध्यम से विकास‘ था. जनरल ढिल्लो का मानना था कि कश्मीर के लोग महान प्रतिभाओं और क्षमताओं से भरे हुए हैं, और जब उन्होंने कुछ करने का फैसला किया, तो उन्होंने कभी पीछे हटने का इरादा नहीं किया.