बिलकीस बानो मामला : 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 25-08-2022
बिलकीस बानो मामला : 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस
बिलकीस बानो मामला : 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका पर गुजरात सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

 

आवाज द वॉयस /नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया. यह नोटिस 11 दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली याचिका के आधार पर जारी किया गया है . वे बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के दोषी हैं. यह घटना 2002 गोधरा दंगा के समय की है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ,जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की पीठ ने गुजरात सरकार से जवाब मांगा है. इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह के बाद होगी.सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति रस्तोगी ने कहा कि यहां सवाल यह है कि गुजरात के नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं या नहीं और क्या इस मामले में छूट प्रदान करते समय दिमाग का प्रयोग किया गया ?

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा, नोटिस जारी करें. अपना जवाब दाखिल करें. हम 11 दोषियों के मामले में निर्देश देते हैं.शीर्ष अदालत इस मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और सामाजिक कार्यकर्ता और प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा द्वारा दायर पर सुनवाई कर रही थी .

याचिका में  11 दोषियों को छूट देने के आदेश को रद्द और उनकी तत्काल गिरफ्तारी का निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस मामले में ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात सरकार के सक्षम प्राधिकारी के सदस्य एक राजनीतिक दल के प्रति निष्ठा रखते हैं. इसमें मौजूदा विधायक भी हैं.

इस तरह, ऐसा प्रतीत होता है कि सक्षम प्राधिकारी एक प्राधिकरण नहीं है जो पूरी तरह से है स्वतंत्र, और एक जो स्वतंत्र रूप से अपने दिमाग को तथ्यों पर लागू कर सकता है.तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी बिलकीस बानो मामले में 11दोषियों की जल्द रिहाई के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया है.

तीन महिलाओं द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उन्होंने गुजरात सरकार के सक्षम प्राधिकारी के आदेश को चुनौती दी है जिसके द्वारा गुजरात में किए गए जघन्य अपराधों के एक सेट में आरोपी 11व्यक्तियों को 15 अगस्त, 2022को मुक्त चलने की अनुमति दी गई थी.

11 लोगों को गुजरात में 18 जनवरी, 2008 को बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगों के दौरान, अन्य बातों के साथ, सामूहिक बलात्कार और कई लोगों की हत्या के अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. याचिका में कहा गया है कि ग्रेटर मुंबई और दोषसिद्धि को मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा पारित 4मई, 2017के फैसले के माध्यम से बरकरार रखा गया है.

याचिका में कहा गया है कि जिस मामले में 11 दोषियों को दोषी ठहराया गया है, उसकी जांच सीबीआई ने की थी. तदनुसार, केवल गुजरात सरकार द्वारा केंद्र सरकार के परामर्श के बिना छूट का अनुदान धारा 435 के जनादेश के संदर्भ में अनुमेय है.

इस जघन्य मामले में छूट पूरी तरह से सार्वजनिक हित के खिलाफ है और सामूहिक सार्वजनिक अंतरात्मा को झटका देती है. यह पूरी तरह से पीड़िता के हितों के खिलाफ है.