16 बिहार रेजीमेंटः वीरता, बलिदान है जिसकी पहचान

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 15-06-2021
16 बिहार रेजीमेंटः वीरता, बलिदान है जिसकी पहचान
16 बिहार रेजीमेंटः वीरता, बलिदान है जिसकी पहचान

 

सेराज अनवर / पटना

पिछले साल गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ संघर्ष में जान गंवाने वाले 20 भारतीय जवानों में कमाडिंग ऑफिसर कर्नल बी संतोष बाबू सहित 12 जवान 16 बिहार रेजिमेंट से थे. सेना की ओर से जारी शहीदों की सूची के मुताबिक इस झड़प में बिहार रेजीमेंट के कमांडिंग अधिकारी कर्नल बी संतोष बाबू, जूनियर कमांडिंग अधिकारी कुंदन कुमार झा के अलावा सिपाही अमन कुमार, चंदन कुमार, दीपक कुमार, गणेश कुंजाम, गणेश राम, केके ओझा, राजेश ओरांव, सीके प्रधान, नायब सूबेदार नंदूराम और हवलदार सुनील कुमार ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. 
 
कर्नल संतोष बाबू चीनी सीमा पर पिछले डेढ़ साल से तैनात थे. गणतंत्र दिवस पर संतोष बाबू को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. संतोष बाबू के पिता बी. उपेंद्र महावीर इस बात को याद कर कहते हैं, मेरा बेटा और उनके साथी निहत्थे लड़े थे. उन्होंने दुश्मन के अधिक सैनिकों को मारकर साबित किया कि भारत चीन से बेहतर और मजबूत है. 
 
तेलंगाना सरकार ने संतोष बाबू के परिवार को पांच करोड़ रुपये की अनुग्रह राशि के अलावा उनकी पत्नी को ग्रुप-1 का पद और आवासीय प्लॉट दिया. संतोष बाबू तेलंगाना के रहने वाले थे.
bihar

बिहार रेजिमेंट की वीर गाथा


भारतीय सेना के बिहार रेजिमेंट का गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. वीरता और बलिदान में इसका कोई सानी नहीं. कारगिल, मुंबई हमले और उरी के बाद बिहार रेजिमेंट के वीर सपूतों ने लद्दाख की गलवान घाटी में भी अपने शौर्य का परिचय दिया. बिहार रेजिमेंट की स्थापना 1941 में हुई थी.जिसका मुख्यालय पटना के पास दानापुर में है.
 
बिहार रेजिमेंट सेंटर दानापुर देश की दूसरी सबसे बड़ी सैनिक छावनी है. वर्तमान में बिहार रेजिमेंट में सिर्फ बिहार ही नहीं, देशभर से सैनिक आते हैं .भारतीय सेना में बिहार रेजिमेंट की शौर्यगाथा गौरव का विषय रही है. वीरता और साहस का यह इतिहास ब्रिटिश काल से शुरू होता है.
 
कारगिल युद्ध के दौरान जुलाई 1999 में बटालिक सेक्टर के पॉइंट 4268 और जुबर रिज पर पाकिस्‍तानी घुसपैठियों ने कब्जा करने की कोशिश की. बिहार रेजीमेंट के योद्धाओं ने उन्‍हें खदेड़ दिया. 
 
 
कारगिल युद्ध में इस रेजिमेंट के कैप्टन गुरजिंदर सिंह सूरी और मेजर मरियप्पन सरावनन ने पाकिस्तानी सैनिकों के पांव उखाड़ दिए थे.इनकी वजह से पाकिस्तानी सेना को बटालिक सेक्टर के जुबर रिज से भागना पड़ा था.  दोनों वीर सपूत इस लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे.कैप्टन गुरजिंदर सिंह को मरणोपरांत महावीर चक्र और मेजर मरियप्पन को मरणोपरांत वीर चक्र प्रदान किया गया था. 
 
इस लड़ाई में बिहार रेजिमेंट के 18 जवान शहीद हुए थे.जिनकी स्मृति में पटना के कारगिल चैक पर एक स्मारक बनाया गया है. 
 
2008 में मुंबई पर आंतकी हमले के समय बिहार रेजिमेंट के मेजर संदीप उन्नीकृष्णनन एनएसजी में प्रतिनियुक्ति पर थे. जब पाकिस्तानी अंतकियों के खिलाफ एनएसजी ने होटल ताज पैलेस में ऑपरेशन लॉन्च किया तो मेजर संदीप वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए. उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था. 
 
2016 में जम्मू कश्मीर के उरी में पाकिस्तानी आतंकियों से लोहा लेते हुए बिहार रेजिमेंट के 15 जवान शहीद हुए थे. बिहार रेजिमेंट के वीर सैनिक प्राणों की आहूति दे कर देश की रक्षा करते रहे हैं. 
 
बिहार रेजिमेंट को अब तक 5 मिलिट्री क्रॉस, 7 अशोक चक्र, 9 महावीर चक्र, 35 परम विशिष्ट सेवा मेडल, 21 कीर्ति चक्र, 49 वीर चक्र और 70 शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया है.
 
bihar regiment

छोटे शहरों से शुरू हुई  बटालियन


बिहार के छोटे शहरों से सैनिकों को पारंपरिक रूप से सेना में शामिल करने का काम लॉर्ड क्लाइव ने 1757 में किया. इन्हें मुख्य रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा के लिए रखा गया था. शुरुआत में इनका रिक्रूटमेंट भोजपुर से किया गया. बाद में बक्सर, रोहतास और कैमूर से भी सैनिकों को चुना गया. इन सैनिकों की खासियत थी किसी भी परिस्थिति में नई तकनीक को कम से कम वक्त में समझना और उसे इस्तेमाल करना. 
 
यही सैनिक बाद में भारत में ब्रिटिश सेना की बंगाल इंफैंट्री का हिस्सा बने.वर्तमान में बिहार रेजिमेंट में 20 बटालियन, चार राष्ट्रीय राइफल और दो टेरिटोरियल आर्मी बटालियन के साथ देश की सेवा में लगा है. 
 
1971 के युद्ध में पाकिस्तान के 96 हजार सैनिकों ने बिहार रेजिमेंट के जांबाजों के सामने ही बांग्लादेश में सरेंडर (आत्‍मसमर्पण) किया था. कहते हैं कि बिहार रेजिमेंट के सैनिकों की लड़ाई के तेवर का पाकिस्तानी सैनिकों में इतना खौफ था कि वह लड़ने को तैयार ही नहीं हुए. यह दुनियाभर के सैनिक इतिहास में एक रिकॉर्ड है, जब इतनी बड़ी सेना ने बिना लड़े ही हथियार डाल दिए थे.