मंसुरूद्दीन फरीदी /नई दिल्ली
मौजूदा माहौल देश के मुसलमानों के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है. यह कौम परेशान है. जनजीवन प्रभावित हो रहा है. इसका असर सड़क से घर तक देखा जा रहा है. कोई कारोबारी मुद्दों से परेशान है तो कोई मौलिक अधिकारों के कारण. मुसलमानों के प्रमुख संगठनों और संस्थानों को इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलना चाहिए. उन्हें जमीनी स्थिति से परिचित कराना चाहिए.यह तरीका सड़क पर विरोध प्रदर्शन और झड़पों की तुलना में बहुत बेहतर और प्रभावी होगा.
ये विचार हैं प्रसिद्ध मुस्लिम बुद्धिजीवियों के. इस वर्ग का कहना है कि कर्नाटक में हिजाब हटाने की वकालत की गई है. मुसलमानों को हिंदू मेलों में दुकानें लगाने की अनुमति नहीं दी जा रही है. ऐसे में मुसलमानों की इन चिंताओं को बुद्धिमानी से दूर करने की जरूरत है.
दरअसल, कर्नाटक में हिजाब विवाद इतना गर्म है कि अब शिमोगा के ऐतिहासिक कोटा मरिकंबा जात्रा की प्रबंधन समिति ने इस में किसी भी मुस्लिम व्यवसायी को स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं दी है. तय किया गया कि गैर हिंदुओं को मंदिर परिसर में प्रवेश करने से रोक जाए. यह नियम मंदिर प्रबंधन समिति मंे पहले से है पर अब इसे लागू किया गया है.हालांकि, हिजाब के बाद और भी मुद्दे हैं जो मुसलमानों में चिंता पैदा कर रहे हैं.
प्रख्यात इस्लामी विद्वान पद्मश्री प्रोफेसर अख्तर उल-वासे के अनुसार, देश में मौजूदा हालात में जो कुछ हो रहा है, उसमें बहुसंख्यकों का एक छोटा-सा तबका शामिल है. बेशक, बहुसंख्यक इस सोच के खिलाफ हैं, लेकिन यह भी सच्चाई है कि यह धारा खामोश है. वे स्थिति को देख रहे हैं. कहीं होली पर मस्जिदों में जुमे की नमाज बंद की जा रही है और कुछ मुसलमानों को मंदिर उत्सव में दुकानें लगाने की अनुमति नहीं दी जा रही है.
मुस्लिम नेताओं के एक साथ आने का समय आ गया है. उन्हें एक साझा रणनीति के साथ आना होगा. उन्हें प्रधानमंत्री और आंतरिक मामले के मंत्री से बात करनी होगी. उनके राजनीतिक विचार अलग हो सकते हैं, लेकिन वे देश में महत्वपूर्ण पदों पर हैं.
यह सुनिश्चित करना प्रधानमंत्री और गृह मंत्री पर निर्भर है कि कानून-व्यवस्था बनी रहे. किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे. किसी धर्म का अपमान न हो.
प्रो. अख्तर उल-वासे ने कहा कि मुस्लिम नेताओं को प्रधानमंत्री से मिलना चाहिए और इस संबंध में उनकी स्थिति का पता लगाना चाहिए.प्रो. अख्तर उल-वासे ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि एक तरफ धर्म संसद के नाम पर मुसलमानों के नरसंहार की बात करने वालों को जमानत मिल जाती है, दूसरी तरफ युवा छात्र नेता उमर खालिद को जमानत नहीं मिल रहा है.
इसलिए समय आ गया है कि मुस्लिम नेता देश के प्रधानमंत्री से बात करें. जो लोग इस तरह की गतिविधियों में शामिल हैं वे अब संविधान ही नहीं बल्कि तिरंगे के भी खिलाफ हैं. यह देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और भावना के खिलाफ है.
दिल्ली की ऐतिहासिक फतेहपुरी मस्जिद के इमाम और विद्वान डॉ. मौलाना मुफ्ती मुहम्मद मुकर्रम अहमद ने मौजूदा हालात पर कहा कि जो कुछ हो रहा है वह मुसलमानों की नहीं बल्कि देश की समस्या है. यह नफरत और पूर्वाग्रह बहुत खतरनाक है. इसका असर हो रहा है. इसका प्रभाव पूरे देश में महसूस किया जा रहा है.
मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि भारत के सांप्रदायिक सौहार्द की विश्व में मिसाल दी जाती है. इसलिए क्षुद्र राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए. जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे अज्ञानी हैं. ऐसे में बड़े नेताओं को आगे आना होगा.
मुफ्ती मुकर्रम ने कहा कि अगर हम इस संबंध में प्रधानमंत्री से बात करें तो इसमें कोई घृणा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि अगर वह दुनिया में लोकप्रिय हैं तो इसलिए कि वह देश के 140 करोड़ लोगों के प्रधानमंत्री हैं. वह केवल हिंदुओं के प्रधानमंत्री नहीं हैं।
हालांकि प्रधानमंत्री के तौर पर उन्हें सब कुछ पता होगा, लेकिन अगर मुसलमानों के अहम नेता और बड़े संगठनों के नेता ऐसी पहल करें तो इसे एक सकारात्मक कदम माना जाएगा.
प्रख्यात विद्वान डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद ने कहा कि हमें ऐसी घटनाओं पर समझदारी से काम लेना होगा. हमें तत्काल प्रतिक्रिया से बचना होगा. अगर कोई वर्ग या समूह परेशान कर रहा है, तो उसका सामना करने के बजाय, हमें ऐसे लोगों से संपर्क करना होगा जिनके तत्व प्रभावित हों, न कि प्रदर्शन या विरोध किया जाना.
मेरा मानना है कि समस्या का समाधान खोजा जाना चाहिए. इसे लंबा करने में समझदारी नहीं है. सबसे आसान तरीका है बातचीत.
डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार ने कहा कि टकराव से बचना ही बेहतर है.इसके लिए हमें समझना होगा और समझाना होगा कि हम लड़कर नहीं जी सकते. एक बात समझने की है कि अगर एक पक्ष आक्रामक है तो दूसरा संयम में होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि ऐसे मुद्दों पर बातचीत में शामिल होना हमारे लिए फायदेमंद होगा. अगर मुस्लिम नेता इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से मिलते हैं, तो यह एक अच्छी पहल होगी. बातचीत का माध्यम सबसे अच्छा तरीका है.
हिजाब का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमें इस डर से बाहर आना होगा कि हमारी पहचान खतरे में है. ऐसा तब होता है जब हम कमजोर होते हैं.लेकिन हम 25 करोड़ हैं. फिर भी हमारी सभ्यता खतरे में है. मेरा मानना है कि ऐसा होता है जब उस पर विश्वास करनेवाले उससे मुंह फेर लेते हैं, तो उसकी कदर करना छोड़ देते हैं.
हिजाब का मसला एक ऐसी संस्था का था जिसे इस स्तर पर सुलझाना चाहिए था. इसने सांप्रदायिक रंग ले लिया. मैं इसे सामाजिक नजरिए से देखता हूं. हमें हर मुद्दे को लंबा नहीं खींचना चाहिए. बेहतर होगा कि इन स्थितियों के बारे में प्रधानमंत्री से बात करें.
अंतरराष्ट्रीय सूफी कारवां के मुखिया मुफ्ती मंजूर जिया का कहना है कि नफरत की हवा बहुत तेज चल रही है. नफरत बढ़ रही है. ऐसे मामलों में कर्नाटक सरकार को दखल देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस बारे में सोचना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है. इसका इलाज क्या है?‘‘ मुफ्ती जिया का कहना है कि मेरी सलाह है कि मुसलमानों को ऐसी घटनाओं पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिए.उन्होंने कहा कि अगर मुस्लिम नेता ऐसे मुद्दों पर प्रधानमंत्री मोदी से मिले तो यह एक अच्छी पहल होगी. सीधे संवाद प्रभावी हैं.
जमात-ए-इस्लामी इंडिया के इस्लामिक सोसाइटी विभाग के सचिव और प्रख्यात बुद्धिजीवी डॉ मुहम्मद रजी-उल-इस्लाम नदवी ने इस मुद्दे पर कहा कि इस समय मुसलमानों में विश्वास पैदा करना बहुत जरूरी है. हमें इन स्थितियों को एक परीक्षा के रूप में लेना होगा. लेकिन तत्काल प्रतिक्रिया से बचना चाहिए.
उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि अब मुस्लिम संस्थाओं और संगठनों को अलग-अलग मंचों से आवाज उठाने के बजाय एक साथ बैठना होगा. अकेले आवाज उठाने का कोई मतलब नहीं है. उस आवाज को कोई नहीं सुनेगा.
डॉ. रजी-उल-इस्लाम ने आगे कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने खुद को धार्मिक मामलों तक सीमित कर लिया है. मुसलमानों के अन्य मुद्दों पर आवाज उठाने से परहेज किया है. इसलिए, मुस्लिम पार्टियों और संगठनों को एक साझा मंच बनाना होगा. अपनी आवाज उठाओ.
उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा हालात में अगर मुस्लिम नेतृत्व एकजुट होकर सरकार से बात करे और मुस्लिम नेताओं का एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले तो यह एक सकारात्मक पहल होगी.
यह भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी किसी भी बैठक से पहले और बाद में सभी चर्चाएं हो ताकि संदेह की कोई जगह न हो. संवाद से बेहतर कोई रास्ता नहीं है.इसका पालन करना सबसे अच्छा होगा. समस्या का समाधान मेज पर होता है.