भाईचारे का पैगाम देने वाले मखदूम साहब का 660 वां सालाना उर्स शुरू

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
प्यार,मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम देने वाले मखदूम साहब का 660 वां सालाना उर्स का शुरू
प्यार,मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम देने वाले मखदूम साहब का 660 वां सालाना उर्स का शुरू

 

सेराज अनवर / पटना 
 
महान सूफी संतों में से एक शेख शरफुद्दीन यहिया मनेरी का 660 वां सालाना उर्स बिहारशरीफ में पारंपरिक उत्साह के साथ मनाया जा रहा है.दस दिनों तक चलने वाले जश्न ए उर्स में शिरकत करने देश-विदेश से अकीदतमंद यहां पहुंचे हैं.

हर साल उर्स मेले का आयोजन बिहारशरीफ के बड़ी दरगाह में किया जाता है जिसे चिरागा मेले के नाम से जाना जाता है.यह जश्न सूफिज्म व उसकी रूहानियत को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश है.
 
इस कारण देश व विदेश से अकीदतमंद मखदूम साहब के दरबार में हाजिरी देने आते हैं.मखदूम साहब मखदूम उल मुल्क और मखदूम जहां से भी मशहूर हैं. मखदूम साहब को ईरान में लोग पर्सियन के दूसरे सबसे बड़े साहित्यकार के रूप में जानते हैं.
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कौन हैं यहिया मनेरी ?

हजरत मखदूम जहां शेख शरफुद्दीन अहमद यहिया मनेरी देश व दुनिया की अजीम शख्सियत में से एक हैं.अहमद यहया नाम,लकब शरफुद्दीन था.आप मखदूम-उल-मुल्क के लकब से ज्यादा मशहूर हैं.
 
उन्होंने पूरी दुनिया को प्यार,मोहब्बत,अमन,इंसानियत एवं भाईचारे का पैगाम दिया. मखदूम साहब की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई. बाद में उन्हें अल्लामा शरफुद्दीन अबू तवामा बुखारी जैसा उस्ताद मिल गया जो एक बड़े आलिम-ए-दीन थे.
 
मखदूम जहां का जन्म 1263 ई. में पटना जिले के मनेर शरीफ में हुआ.इनके पिता का नाम हजरत मखदूम कमालुद्दीन यहिया मनेरी था. वे भी सूफी संत थे. मां का नाम बीबी रजिया था.मखदूम जहां ने अपनी मौलिक शिक्षा प्राप्त कर राजगीर और बिहिया के जंगलों में घोर तपस्या की तथा बिहार शरीफ के खानकाह मोहल्ले में 50 वर्षों तक रहे.
 
इनके पूर्वजों का वंशीय ताल्लुक ईरान की पूर्व राजधानी हमदान से रहा. मखदूम साहब को ईरान में लोग पर्सियन के दूसरे सबसे बड़े साहित्यकार के रूप में जानते हैं.मखदूम जहां की कही गई बातें आज से 700 वर्ष पूर्व फिजिक्स की थ्योरी बनी.
 
उनका संदेश परेशान हाल दुनिया को आज भी अमन, संस्कृति व परंपरा के प्रति लगाव महसूस कराता है.मखदूम जहां ऐसी शख्सियत थी, जिनकी बातें आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं.हर साल उर्स मेले का आयोजन बिहारशरीफ के बड़ी दरगाह में किया जाता है जिसे चिरागा मेले के नाम से जाना जाता है.सुफिज्म व उसकी रूहानियत को लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की.
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जायरीन के लिए दो मुसाफिरखाना 

उर्स के  मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ी दरगाह और खानकाह - ए - मोअज्जम में 4 करोड़ 57 लाख की लागत से निर्मित दो मुसाफिरखाना का उद्घाटन किया.इसके अलावे मखदूम साहब के दूसरे गद्दीनशी के संग्रहित उपदेश पर लिखी गई पुस्तक गंजे - ए - लयफ्फा का भी विमोचन किया .
 
इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि मखदूम साहब की ख्याति पूरे देश दुनिया में है .सालाना उर्स के मौके पर हजारों लोग इबादत करने के लिए यहां आते हैं .लोगों के ठहरने के लिए यहां दो मुसाफिरखाने का निर्माण कराया गया है ताकि जायरीन को किसी तरह की कोई तकलीफ ना हो .
 
इस मौके पर अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री जमा खां, मखदूम-ए-जहां के गद्दीनशीन सय्यद शाह सैफुद्दीन अहमद फिरदौसी ,बिहार राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मोहम्मद इरशाद उल्लाह,नालंदा के डीएम शशांक शुभंकर ,एसपी अशोक मिश्रा के अलावे कई लोग मौजूद थे.
 
मेला नियंत्रण कक्ष भी कार्यरत

इसके आयोजन के अवसर पर विधि व्यवस्था एवं अन्य तरह की व्यवस्था को लेकर स्थानीय खानकाह मुअज्जम में  साफ सफाई के लिए विशेष व्यवस्था, पेयजल,यातायात,बिजली, से संबंधित सभी अधिकारियों एवं विभागों को आवश्यक दिशा निर्देश दिया गया है. मेले में तीन स्थानों पर मेडिकल टीम भी प्रतिनियुक्त  की गई है.
 
साथ ही अग्निशमन वाहन की निरंतर उपलब्धता के लिए जिला अग्निशमन पदाधिकारी को कहा गया है.इस अवसर पर एक मेला नियंत्रण कक्ष भी कार्यरत है.विधि व्यवस्था बनाए रखने के लिए पर्याप्त संख्या में दंडाधिकारी एवं पुरुष-महिला पुलिस बल की प्रतिनियुक्ति की गई है.
 
जिलाधिकारी ने सभी संबंधित अधिकारियों के साथ बड़ी दरगाह परिसर एवं संपूर्ण मेला क्षेत्र का भ्रमण किया तथा मौके पर उपस्थित पदाधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिया.इस अवसर पर उप विकास आयुक्त, अपर समाहर्ता,अनुमंडल पदाधिकारी बिहार शरीफ, अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी बिहार शरीफ, पुलिस उपाधीक्षक यातायात, उप नगर आयुक्त सहित अन्य विभागों के पदाधिकारी तथा बड़ी दरगाह प्रबंधन से जुड़े अन्य लोग तैनात हैं.