बेंगलुरु : दो प्रोफेशनल बाइकर्स क्यों बन गए एंबुलेंस ड्राइवर

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 05-06-2021
बेंगलुरूः दो प्रोफेशनल बाइकर्स क्यों बन गए एंबुलेंस ड्राइवर
बेंगलुरूः दो प्रोफेशनल बाइकर्स क्यों बन गए एंबुलेंस ड्राइवर

 

मंसूरुद्दीन फरीदी / नई दिल्ली / बेंगलुरु 
 
यह कहानी है बेंगलुरु के दो प्रोफेशनल बाइकर्स की. दोनों सगे भाई भी हैं. उनमें दोस्ती भी गहरी है. बाइक का शौकीन हर कोई उन्हें जानता और पहचानता है. दोनों भाइयों के जीवन का अधिकांश हिस्सा सड़कों पर बाइक चलाते बीता है. वे बेंगलुरू शहर से पहाड़ों तक सफर अपनी तरह के दोपहिया चालकांे को प्रतीत करते रहे हैं.
 
उनके लिए, सड़क जीवन की धड़कन है और बाइक इश्क.मगर एक दिन दोनों भाइयों के जीवन में एक ऐसा मोड़ आया कि वे एक नई भूमिका निभाने को आगे आए. दो युवकों ने अपनी मां को कोरोना में खो दिया है. जीवन के सबसे बड़े इस नुकसान के बाद, उन्होंने मन की शांति के लिए जो रास्ता अपनाया, वह मानव सेवा का है.
bengluru
वे लॉकडाउन में बाइक के अपने जुनून को त्यागकर मानवीय मिशन पर निकल पड़े. कोरोना के दौरान दोनों ने एंबुलेंस चालक के रूप में शहर में एक अलग पहचान बनाई है. दिलचस्प बात यह है कि दोनों भाइयों का एक ही शौक है. मुर्तजा जुनैद एक बाइकर और आर्ट ऑफ मोटरसाइकिल वर्कशॉप के मालिक हैं, जबकि मुतैब जोहैब एक मास्टर बाइकर हैं.
 
संकट की घड़ी में उनकी मानवीय सेवा बेंगुरू में मिसाल बनी हुई है. दोनों भाइयों के लिए अपनी मां को याद करने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है ? मुर्तजा जुनैद और मुतैब जोहैब का कहना है कि उन्होंने बचपन से बेंगलुरु शहर को देखा और समझा है.
 
कोरोना महामारी के दौरान शहर के हालातों ने उन्हें झकझोर दिया. उन्होंने सड़कों पर ऐसे दृश्य देखे कि रूह कांप उठी. इस दौरान अपनी मां को खो दिया. इस दुख ने उन्हें और उदास कर दिया. इसके बाद सामान्य जीवन में हवा से बात करने में विश्वास रखने वाले दोनों भाइयों ने मैदान में उतरने का फैसला किया.
 
आज हर कोई उनके काम को सराहा रहा है. सोशल मीडिया पर दोनों की पीठ थपथपाई जा रही है.  गौरतलब ह, कोरोना महामारी के दौरान जब बेंगलुरू सबसे बुरे दौर से गुजर रहा था. दोनों युवक एक हद में सीमित नहीं रहेे. उन्हें सुनसान सड़कों पर बाइक से स्टंट करना पसंद था, लेकिन उसी बेंगलुरू में उन्हांेने लोगों को परेशानहाल देखा.
 
कोई ऑक्सीजन के लिए दौड़ रहा था. कोई एम्बुलेंस की तलाश में था. कोई इंजेक्शन ढूंढ रहा था. किसी को अस्पताल में बिस्तर चाहिए था. तब दोनों भाई नई भूमिका में आए. कोरोना के मरीजों की मदद की. उनके लिए एंबुलेंस चालक बन गए.
 
bengluru 2

कैसे आया विचार ?


मां की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों ने कोरोना में अपनी भूमिका को लेकर मंथन किया. वे बताते हैं कि इस दौरान हमने शहर में लोगों को ऑटो में कोरोना रोगियों को ले जाते देखा. एक व्यक्ति को एम्बुलेंस के लिए व्याकुल देख कर मन में विचार आया कि मां की मौत के बाद वह घर पड़े क्या कर रहे हैं.उन्हें घर से निकलना चाहिए. लोगों की मदद करनी चाहिए. इसके बाद एम्बुलेंस किराए पर लेकर वे सेवा में जुट गए
bengluru 3

कैसे बने ड्राइवर 


जुनैद के मुताबिक, हम दोनों ने कई एनजीओ से संपर्क किया. ड्राइवर के तौर पर अपनी सेवाएं देने की इच्छा जताई. हैरानी की बात है कि हमें कहीं से बहुत उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली.फिर हमने ‘‘मोरसी मिशन‘‘ से संपर्क किया.
 
उनकेे बारे में अखबारों में पढ़ रखा था. संगठन से संपर्क किया, तो हमें तत्काल प्रतिक्रिया मिली. हमें बुलाया गया और फिर मिशन शुरू हुआ. जोहैब ने एक मरीज को बचाने के लिए बेंगलुरु से गुलबर्गा तक का सफर करीब ग्यारह घंटे में पूरा किया. इस दौरान वह कहीं नहीं रुके. उनका कहना है कि यह उनके जीवन का सबसे अलग अनुभव था जिसे बयां नहीं किया जा सकता.