आवाज द वॉयस गुवहाटी
इस्लामिक कैलेंडर का आखिरी महीना मुस्लिम जगत के लिए बेहद अहम होता है. इस महीने, सक्षम मुसलमान पवित्र हज को पूरा करने के लिए मक्का और मदीना की यात्रा करते हैं.हज के अंत में, तीर्थयात्री आरफा के मैदान में इकट्ठा होते हैं और कुर्बानी करते हैं, जो परित्याग का प्रतीक है.
पशु बलि के माध्यम से कुर्बानी को दुनिया भर मेंहज यात्रियों के साथ मुसलमानों द्वारा त्योहार के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन को बकरीद कहते हैं. यह त्योहार तीन दिनों तक चतला है.
एडवोकेट शेख शाहनवाज मोहम्मद ने हाल में ऐसे समय में सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है, जब असम में मुस्लिम समुदाय कुर्बानी को लेकर उहा-पोह में है.
उधर, असम राज्य जमीयत उलमा के अध्यक्ष मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने इस धार्मिक समारोह से पहले असम के इस्लामिक लोगों से खास अपील की है. शुक्रवार को जारी एक बयान में अजमल ने कहा, सक्षम मुसलमानों के लिए कुर्बानी जरूरी है. इस कुर्बानी के लिए ऊंट, बकरी, गाय, भैंस, भेड़ आदि जानवरों के इस्तेमाल के नियम हैं.
असम के ज्यादातर लोग पारंपरिक धर्मों के अनुयायी हैं.पारंपरिक धर्मों में गाय को पूजनीय जानवर माना जाता हैं. इस लिए कुर्बानी में इससे परहेज रखने की अपील की गई है.उन्होंने कहा, 2006 में, भारत के सबसे बड़े इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने ईद-उल-अधा यानी बकरीद पर गायों के इस्तेमाल के खिलाफ एक याचिका दायर की थी.
चूंकि इसमें अन्य धर्मों की भावनाएं शामिल हैं, इसलिए कुर्बानी में एक वैकल्पिक जानवर का उपयोग करना अच्छा होगा. बदरुद्दीन अजमल ने इस्लामिक रहनुमाओं से अनुरोध किया है कि ईद में इस्तेमाल होने वाले जानवरों और हमारे पवित्र धार्मिक कर्तव्य को पूरा करें. पर किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे, इसका ख्याल रखा जाए.
गौरतलब है कि बकरीद 10 जुलाई को असम के साथ पूरे भारत में मनाई जाएगी. केंद्रीय हिलाल समिति, असम के मौलाना फखरुद्दीन अहमद कासमी और प्रधान संपादक अल्हाज इमदाद हुसैन ने शुक्रवार को यह घोषणा की. केंद्रीय हिलाल कमेटी की ओर से गैर-असमिया लोगों को हमेशा ईद की बधाई दी जाती रही है.