आवाज- द वॉयस/ नई दिल्ली
ईद का त्योहार ऐसा है कि इसमें खुशियां हरेक के दामन में आनी चाहिए और इसी भावना के तहत हिंदुस्तान की गंगा जमुनी तहजीब का प्रतीक वेबसाइट आवाज द वॉयस ने एक खास पहल की. आवाज द वॉयस के प्रधान संपादक आतिर खान समेत इसकी टीम ने शनिवार को ईद की सौगात जरूरतमंद बच्चों में बांटे.
शनिवार को आवाज द वॉयस ने दिल्ली के मुस्लिमबहुल इलाके शाहीन बाग में जरूरतमंद बच्चों के बीच ईद की सौगात बांटी.
इस मौके पर इसके प्रधान संपादक आतिर खान ने बच्चों को संबोधित किया. खान ने कहा, “जिंदगी में हम सबका मकसद दीनी और दुनियावी दोनों तरह की तालीम हासिल करना होना चाहिए. दोनों ही बेहद जरूरी हैं. अपने उस्ताद की बातें हमेशा याद रखें क्योंकि जो वह सिखाते हैं वह तमाम जिंदगी काम आती है और इसके साथ बेहद जरूरी है देश का एक अच्छा नागरिक बनना. अपनाहिंदुस्तान बहुत खूबसूरत मुल्क है और इसकी तरक्की में अपना योगदान देना हम सबका कर्तव्य है”
शाहीन बाग में आवाज द वॉयस ने स्थानीय एनजीओ सोशल प्राइड वेलफेयर सोसायटी के सहयोग से करीब डेढ़ सौ बच्चों को उपहार दिए. इस मौके पर मौलाना मुफ्ती अफरोज आलम कासमी, अब्दुल हई खान,आवाज- द वॉयस उर्दू के संपादक मंसूरुद्दीन फरीदी, सोशल प्राइड वेलफेयर सोसायटी एनजीओ के निदेशक डॉ. कमाल अहमद मौजूद थे.
शाहीन बाग में इस कार्यक्रम के बाद आवाज द वॉयस की टीम मदन पुर खादर पहुंची, जहां एक मदरसे जामिया अबरारुल इस्लामिया में बच्चों को उपहार बांटे गए. इस मौके पर आवाज द वॉयस की टीम के साथ मदरसे के मौलाना राशिद कासमी भी मौजूद थे. दुआ के साथ ही मुफ्ती अफरोज आलम कासमी ने सभी बच्चों को देश में मिलजुलकर रहने का संदेश दिया.
मुफ्ती अफरोज आलम कासमी ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा, “इंसानियत के बारे में इस्लाम में यही कहा गया है कि लोगों की मदद कैसे करें. कुरान में भी यही संदेश है. रमजान यही सिखाता है कि कैसे भूख की अहमियत समझी जाए. लोगों के गमों उनकी मजबूरियों के बारे में समझा जाए. हम उनके दुख में शरीक हों. अलग-अलग तरह के लेकिन एक सोच के लोग जब एक जगह मिलते हैं तो उससे हमारी गंगा-जमुनी तहजीब का ताकत मिलती है. हिंदू, मुस्लिम सिख इसाई सभी एक होते हैं. इसी तालीम से देश तरक्की करता है.”
ईद का मौका बेशक खुशियों का होता है और आवाज द वॉयस ने सौगातों के साथ न सिर्फ खुशियां बांटी बल्कि इसने बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने का काम भी किया. देश की तरक्की ऐसे हीसकारात्मक कामों से होती है, जिसमें हर समुदाय एक दूसरे का हाथ थाम कर चलता है.