अरिफुल इस्लाम/ गुवाहाटी
पूर्वी असम के ऐतिहासिक शिवसागर जिले में एक जुमे मस्जिद का उद्घाटन प्रमुख हिंदू संगठनों और प्रतिष्ठानों के प्रतिनिधियों ने हाल ही में किया है. इस घटना को पूरे असम में साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता की एक और मिसाल के रूप में पेश किया जा रहा है. दुर्गा पूजा समारोहों के ठीक बाद और ईद-ए-मिलाद-उन-नबी से ठीक पहले, जिसे दुनियाभर के मुसलमानों के साथ असम में भी मुबारक तरीके से मंगलवार मनाया गया, 17 अक्तूबर को शिवसागर जिले के बेटबारी के लुथुरी चेतिया गांव के घिलागुरी में विभिन्न समुदायों के लोग पुनर्निर्मित जुमे मस्जिद के उद्घाटन के लिए जमा हुए थे.
श्रीमंत शंकर संघ के प्रतिनिधि, नामघर (नव-वैष्णव सामुदायिक प्रार्थना हॉल) और असम पर छह सौ सालों तक राज करने वाले अहोमों की राजधानी शिवसागर के विभिन्न हिस्सों से सतरा (वैष्णव मठ) के प्रतिनिधि भी इस मौके पर उपस्थित थे.
मण्डली वास्तव में नव-वैष्णव संत सुधारक श्रीमंत शंकरदेव और सूफी संत अजन फकीर के आदर्शों के प्रतीक के रूप में ही पेश आई. संयोग की ही बात है कि मशहूर सूफी संत अजान पीर की दरगाह भी शिवसागर जिले में ही है.
घिलागुरी में जुमे मस्जिद की स्थापना 1935 में हुई थी और इसका हाल ही में पुनर्निर्माण मस्जिद प्रबंधक समिति ने करवाया है. नई मस्जिद दो मंजिला है और इसमें सभी जरूरी सुविधाएं मौजूद हैं.
उद्घाटन के बाद वहां मौजूद मेहमानों ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित किया और वहां उपस्थित एक ग्रामीण ने कहा, “हालांकि यह मस्जिद मुसलमानों के लिए है, लेकिन अलग-अलग नस्लों और आस्थाओं के लोग इसमें शामिल हैं. हर धर्म के लोगों की यहां मौजूदगी ने यह साबित किया है कि शिवसागर के लोग ने हिंदू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को कायम रखा है और सभी लोग प्यार और समरसता के धागे से जुड़े हैं. घिलागुरी जुमे मस्जिद से हमारा मकसद भाईचारे की भावना का प्रसार पूरे असम और देश के बाकी के हिस्सों में करने का है.”