मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजीत डोभाल के बिछाए जाले में टेरर लिंक के 106लोग बड़ी आसानी से धर लिए गए. इस ऑपरेशन की खास बात रही है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के 106 लोगों को गिरफ्तार के लिए 11राज्यों में छापेमारी की गई, पर इस दौरान न गोली चली न ही खून खराबा हुआ .
बताते हैं कि ऑपरेशन को अंजाम देने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने ईडी सहित तमाम सुरक्षा एजेंसियों के साथ लगभग दो महीने तक लंबा एक्सरसाइज किया. इस योजना को बनाने में डोभाल इस कदर व्यस्त रहे कि एक वर्ग ने उनके स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा देने की खबर उड़ा दी. योजना बनाते समय ठीक उसी तरह सावधानी बरती गई जैसे नोटबंदी और अनुच्छेद 370हटाने से पहले बरती गई थी.
आईएनएस विक्रांत और ऑपरेशन पीएफआई
सूत्रों की मानें तो,2 सितंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोच्चि में आईएनएस विक्रांत को चालू कर रहे थे, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में उनकी सुरक्षा टीम केरल में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के नेटवर्क को उखाड़ फेंकने की योजना को सरअंजाम देने में लगी थी.
यही नहीं छापे के कुछ समय पहले तक प्रदेशों की पुलिस को यह तक नहीं बताया गया कि क्या कार्रवाई होने वाली है. छापे के समय किसी तरह की हिंसा नहीं हो,इसके लिए पहले से अर्धसैनिक बलों को सावधान कर दिया गया था.
जमात-ए-इस्लामी ने इस मुद्दे पर जरूर बोला है, पर इसमें कार्रवाई से कहीं अधिक चिंता जाहिर की गई है. बयान जारी कर कहा गया है कि इसमें कोई बेगुनाह न फंस जाए.बताते हैं कि डोभाल ने ऑपरेशन से पहले केरल के पुलिस अधिकारियों के साथ विमानवाहक पोत की कमीशनिंग के दौरान भी पीएफआई के गुर्गों के खिलाफ कार्रवाई पर चर्चा कर वातावरण भांपने का प्रयास किया था.
इंडिया टुडे डॉन इन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पीएफआई की गिरेबान पर हाथ डालने से पहले डोभाल ने महाराष्ट्र के गवर्नर हाउस में सुरक्षा अधिकारियों के साथ बैठक की थी .
ऑपरेशन में लगाए गए 200 से अधिक अधिकारी
ऑपरेशन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के 200से अधिक अधिकारियों, प्रवर्तन निदेशालय और कम से कम 10राज्य पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्तों को पीएफआई के आतंकी लिंक पर काबू पाने के लिए छापेमारी के दौरान लगाया गया था.
इसके लिए 150 से अधिक स्थानों पर छापे मारे गए, पर किसी तरह की कोई अशांति नहीं फैली. सारा ऑपरेशन आधी रात में शुरू हुआ और सुबह होते-होते पीएफआई के सारे 106नेता एवं सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए.
ऑपरेशन में विमान का इस्तेमाल
सूत्रों के मुताबिक, पीएफआई के गुर्गों को पकड़ने और पूछताछ के लिए अलग-अलग स्थानों पर लाने-ले जाने के लिए विमानों को सहारा लिया गया . पीएफआई के कई प्रमुख लोग दिल्ली लाए गए, जबकि कुछ से उसी प्रदेश में पूछताछ चल रही है. पूरे ऑपरेशन पर डोभाल निगरानी रखे हुए और दिशा-निर्देश दे रहे हैं.
सूत्रों की मानें तो ऑपरेशन से पहले भी केंद्रीय एजेंसियों के साथ एमएचए अधिकारियों की दो उच्च स्तरीय बैठक हुई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 29अगस्त को एनआईए, ईडी और आईबी के अधिकारियों के साथ इस मुद्दे पर अहम बैठक की थी. इस दौरान एनएसए अजीत डोभाल के अलावा गृह सचिव अजय कुमार भल्ला भी मौजूद थे.
इसके बाद सभी केंद्रीय एजेंसियों ने तैयारी पूरी कर 19 सितंबर को गृह मंत्रालय और जांच एजेंसियों के अधिकारियों की एक बैठक हुई. सभी एजेंसियों को समन्वय से छापेमारी करने का आदेश दिया गया. बुधवार-गुरुवार को रात 1बजे से सुबह 7 बजे के बीच देश के करीब 11 राज्यों में पीएफआई कैडरों के घरों और दफ्तरों पर छापे मारे गए.ऐसा इसलिए कि छापेमारी के दौरान टीमों को विरोध का सामना न करना पड़े.
पीएफआई हैं गंभीर आरोप
एनआईए ने पीएफआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष एमएस सलाम और दिल्ली पीएफआई प्रमुख परवेज अहमद को भी गिरफ्तार किया है. इनपर आतंकी कैंप आयोजित करने, टेरर फंडिंग और लोगों को कट्टरता सिखाने का आरोप है. बताते हैं कि सीएए आंदोलन के दौरान जिस तरह सरकार के निर्णय के खिलाफ पीएफआई ने मुसलमानों को गोलबंद किया और कई जगहों पर हिंसा हुई, तभी से इसे काबू करने का ख्याल बनने लगा था.
वैसे, पीएफआई की गतिविधियों पर 2017से नजर रखी जा रही है.एनआईए ने तब इसपर गृह मंत्रालय को विस्तृत रिपोर्ट सौंपी थी. इसकी बढ़ती गतिविधियों के कारण कई राज्य पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुके हैं.
यह भी बताया गया कि सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद इसके तकरीबन सारे लोग नया संगठन पीएफआई बनाकर उसमें शामिल हो गए. सूत्र बताते हैं कि एनआईए ने 19सितंबर को आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में छापेमारी के बाद चार लोगों को गिरफ्तार कर रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसमें फ्रंट के आतंकी गतिविधियों की साजिश रचने के आरोप लगे थे.
खुफिया एजेंसियों का यहां तक मानना है कि केरल से जो लोग आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में शामिल हुए, इसके पीछे भी पीएफआई है. बिहार के फुलवारी शरीफ में गजवा-ए-हिंद स्थापित करने की साजिश रचने में भी पीएफआई का हाथ बताया जाता है.
ऐसे ही आरोप में एनआईए ने हाल में कराटे शिक्षक अब्दुल कादिर को तेलंगाना के निजामाबाद से गिरफ्तार किया था. आरोप है कि कराटे सिखाने की आड़ में वह युवाओं को आतंकी बनाने की ट्रेनिंग दे रहा था. हाल के दिनों में इसका नाम कई देश विरोधी गतिविधियों में सामने आया है.
यहां तक कि किसान आंदोलन के दौरान पीएफआई की ओर से हुई हिंसा की जानकारी एजेंसियों को मिली थी. इसके बाद मेरठ समेत कई जगहों पर पीएफआई के ठिकानों पर छापेमारी की गई. नूपुर शर्मा विवाद और हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश के करीब आठ शहरों में जुमे की नमाज के बाद माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई थी.
कानपुर से प्रयागराज तक हिंसा भड़काने की साजिश में इस संगठन से जुड़े लोग गिरफ्तार किए गए थे . आरोप है कि कर्नाटक के स्कूलों में हिजाब विवाद को हवा देने के पीछे भी पीएफआई का हाथ है. ऐसा दावा कर्नाटक हाईकोर्ट में सरकार कर चुकी है.
2016 में बेंगलुरु के आरएसएस नेता रुद्रेश की हत्या की साजिश में भी इसी संगठन का हाथ बताया जाता है. यही नहीं हाल मंे आरएसएस के एक पूर्व कार्यकर्ता के विवादास्पत बयानों को भी पीएफआई मुखिया बड़ी मुस्तैदी से हवा देने के काम में लगे थे, ताकि इस संगठन की छवि खराब की जा सके.
आरोप साबित करने की चुनौती
खुफिया एजेंसियों के पास भले ही पीएफआई के खिलाफ भरपूर सूबत हों, पर इसके सामने कोर्ट में इसे साबित करने की बड़ी चुनौती है. इसके अलावा इन गिरफ्तारियों के बाद मुस्लिम संगठनों का क्या रुख रहता है, इसपर भी सरकार को नजर रखना होगा.
चूंकि असम के मदरसे में आतंकवादी गतिविधियों के मामले में गिरफ्तार लोगों के बारे में मुस्लिम रहनुमाओं का एक वर्ग सवाल उठाता रहा है. ऐसे में पीएफआई पर सरकार की कार्रवाई को अदालत में साबित करने की चुनौती और बढ़ जाती है. कई बार ऐसा हुआ है कि सबूतों के अभाव में आरोप छूट जाते हैं. बाद में सरकार की किरकिरी होती है.