पटना के एक हाजी परिवार ने राम नाम सत्य के जयकारे के साथ रामदेव का किया अंतिम संस्कार
सेराज अनवर पटना
उदयपुर की घटना को लेकर जब पूरे देश का माहौल अफरा-तफरी से भरा है, इस बीच पटना से एक अच्छी खबर आई है. बिहार की राजधानी पटना के एक हाजी के परिवार ने एक हिंदू शख्स की अर्थी को न केवल कंधा दिया सनातनी रीति रिवाज से उसका अंतिम संस्कार भी कराया.
हाजी रिजवान के परिवार ने यह साबित किया है कि समाज में चाहे जितनी नफरत घोली जाए,इंसानियत अभी भी जिंदा है.मानवता की इस मिसाल की हिंदू समाज भी प्रशंसा कर रहा है.
हाजी रिजवान के घर रह कर पले-बढ़े थे रामदेव
75 रामदेव का कोई सहारा न था.तीन दशक पूर्व काम की तलाश में भटकते हुए रामदेव पटना स्थित राजा बाजार के समनपुरा पहुंचे थे.भूख से बिलबिला रहे थे.हाजी रिजवान के परिवार ने उसकी भूख मिटाई और घर के मुखिया रिजवान के बड़े भाई मोहम्मद अरमान ने बुद्धा प्लाजा स्थित अपनी दुकान पर सेल्समैन की नौकरी पर भी रख लिया.
जुमा को रामदेव का निधन हो गया.रामदेव का कोई परिवार या रिश्तेदार था नहीं.हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कौन करे? यह मसला था.
राम नाम सत्य के साथ उठी अर्थी
बेहिचक हाजी रिजवान के सभी भाईयों ने तय किया कि हम ही रामदेव का परिवार हैं और वो हमारे घर के सदस्य थे.अर्थी सजाने में आसपास के मुसलमान भी शामिल हुए. मुसलमान कंधे पर राम नाम सत्य का जयकारा लगाते हुए घाट तक गए और पूरे सनातनी रीति से गुलबी घाट पर अंतिम संस्कार किया.इस दाह संस्कार में हाजी रिजवान,उनके बड़े भाई मोहम्मद
अरमान,राशिद,मोहम्मद इजहार भी शामिल हुए.
परिवार का एक सदस्य जुदा हो गया
हाजी रिजवान ने आवाज द वायस को बताया की रामदेव स्टाफ नहीं,परिवार के सदस्य थे.जब वो भटकते हुए हमारे घर आए,उस वक्त हमलोग छोटे थे.उनकी देख रेख और अपनत्व के साए तले हमलोग बड़े हुए.आज ऐसा लग रहा है परिवार का एक सदस्य जुदा हो गया.
वह कहते हैं कि आज इतनी नफरतें हैं,पहले इस तरह की बात कहां थी?लेकिन नफरत को नफरत से नहीं,मुहब्बत से पाटा जा सकता है.इस्लाम ने हमें यही पैगाम दिया है,जिसका निर्वाह हमारे परिवार ने किया.