मुल्क अगर जमीन का नाम है, तो आपको मुबारकः मौलाना महमूद मदनी

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  AVT | Date 31-01-2021
मुल्क महज जमीन नहींः मौलाना महमूद मदनी
मुल्क महज जमीन नहींः मौलाना महमूद मदनी

 

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (एम) के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का मानना है कि धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगना चाहिए. वह इसके खिलाफ रहे हैं. आज भी हैं. इस मुददे सहित कई और मसले पर उनसे इंटरव्यू की दूसरी कड़ी में ‘आवाज द वायस’ उर्दू के संपादक मंसूरूद्दीन फरीदी ने बातचीत की. प्रस्तुत हैं उसके मुख्य अंशः-

सवालः यह धारणा बनी है कि भारत का मुसलमान देश के मुकाबले उम्मत के प्रति अधिक वफादार है. इस बारे में आपकी क्या राय है?

मौलाना महमूद मदनीः उत्तर देने से पहले, मैं एक प्रश्न पूछूंगा और मैं इसका उत्तर नहीं पूछूंगा. क्या आपने इस देश में रहने वाली कौम जिसे आप मुसलमान कहते हैं, उसे आपने उम्मत का नाम दिया है. क्या इंडिया की जमात है या इंडिया से बाहर है? अगर कोई आदमी अपनी बिरादरी पर होने वाले किसी अत्याचार या अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज उठाता है, तो उसको यह कैसे कहा जाएगा कि वह मुल्क की बात नहीं कर रहा है. मैं कहता हूं कि मुल्क क्या चीज है. मुल्क जमीन का नाम है या इंसानों का नाम है? मुल्क अगर जमीन का नाम है, तो आपको मुबारक. अगर मुल्क इंसानों का नाम है तो मैं सभी इंसानों को बराबर समझता हूं. यह बात भी कहूंगा कि अगर किसी गैर-मुस्लिम के साथ कोई अन्याय या अत्याचार होता है, तो हमें उसके बारे में भी बात करनी चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम खुद के साथ न्याय नहीं करते हैं.

अगर हम ‘आक्रामक राष्ट्रवाद’ के बारे में बात करते हैं, तो यह हमारे देश में नहीं, बल्कि पूरे विश्व में हो रहा है. यह पाकिस्तान में भी हो रहा है. इसके फायदे हैं, क्योंकि अरब विद्वान इब्न खाल्दून ने लिखा था कि अगर आक्रामक राष्ट्रवाद नहीं होगा तो मौके के बारे में काम ठीक से नहीं किया जा सकेगा. पूर्वाग्रह की बहुत सी बुराइयां हैं, लेकिन इसके फायदे भी हैं.

इस राष्ट्रवाद के फायदे हैं कि लोग देश और देशवासियों के बारे में सोचने लगते हैं. इस कोशिश में लोग निष्ठावान भी होते हैं. नुक्सान तब होता है, जब आप इस राष्ट्रवाद को किसी को अलग करने के लिए इस्तेमाल करने लग जाएं और उसके ठेकेदार बन जाएं. यह मुल्क के लिए बेहतर नहीं हो सकता.

बात करूं कि पहले मजहब है या देश. यह सवाल एक बार नहीं बार-बार मेरे सामने आया है कि धरती पहले है या धर्म. मैं यही कहता रहा हूं कि मैं किसे आगे रखूं या कौन-सी छोड़ दूं.

हाल ही में संघ प्रमुख ने एक बात कही है कि गांधी जी कहते थे, मेरा राष्ट्रवाद तो मेरे धर्म से आया है और मैं भी कसम खाकर कहता हूं कि मेरा राष्ट्रवाद भी धर्म से ही आया है. अब जबकि मेरे धर्म ने ही राष्ट्रवाद सिखाया है तो मैं उसे पीछे कैसे डाल दूं? जो धर्म मुझे अपने देश के लिए जान निछावर करने का जज्बा देता है, यह जज्बा किसी तंजीम के प्रमुख के प्रवचन या तकरीरों से नहीं आया, बल्कि मेरे मजहब से आया है. जैसा गांधी जी ने कहा था, जिसके बारे में संघ प्रमुख से ही सुना मैंने. उन्होंने किस पृष्ठभूमि में गांधी जी ने यह बात कही, मैं नहीं जानता. लेकिन सवाल यही है कि ऐसे मजहब सिर पर नहीं रखूं तो कहां रखूं? इससे दूसरे धर्म वालों को क्या परेशानी हो सकती है कि उन्होंने अपने धर्म पर अपने सिर पर रखा है.

सवालः मुस्लिम युवाओं को ध्रुवीकरण की दौड़ में घसीटा जाता है, जिसका नुक्सान खुद स्वयं मुसलमानों को होता है. आप नौजवानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?

मौलाना महमूद मदनीः देश में रहनेवाले मुसलमानों की दोहरी जिम्मेदारी इंसानियत और मुल्क बचाने की है. अगर हम किसी ईंट का जवाब पत्थर से देंगे तो अपने दुश्मनों के हथियार बन जाएंगे. उनका उद्देश्य ही यही होता है. तस्वीर वह बनाते हैं, रंग हम लोग भर देते हैं. उनके धोखे में आने से खुद को बचाना होगा.

बकौल मदनी

धर्म के नाम पर वोट देना है तो बीजेपी में क्या बुराई है

राष्ट्रवाद के लाभ भी हैं. लोग देश और देशवासियों के बारे में सोचना शुरू करते हैं

 यदि गांधी जी का राष्ट्रवाद धर्म है, तो मैं राष्ट्रवाद भी मेरा धर्म है

हम धर्म के नाम पर वोट देने के खिलाफ रहे हैं, आज भी हैं

सरकारी कानून केवल सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं. अधिकार और प्रोत्साहन देने के लिए समाज को आगे आना होगा

यदि आप अपनी मां, बहन और पत्नी को अधिकार नहीं दे सकते, तो आप उन्हें दूसरे दर्जे का समझते हैं, फिर कुदरत आपको दूसरे दर्जे का बना देती है


सवालः मुस्लिम देशों में महिला अधिकारों पर काम हो रहा है. ऐसा हिंदुस्तान में भी हुआ है. क्या आप ऐसा नहीं समझते कि इसमें और तेजी आनी चाहिए?

मौलाना महमूद मदनीः बेशक, अगर वैध अधिकार हैं और अगर इस कौम के एक बड़े हिस्से को, जो हमारी बेटी, बहन, मां, पत्नी हैं, यदि हम उन्हें किसी अधिकार से वंचित करें तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है. महिलाओं के वैध अधिकार देने की जरूरत है, जो हमारे समाज में कहीं न कहीं नहीं दिए जा रहे हैं. इसे समाज को स्वयं खड़े होकर देना चाहिए. सरकारी कानून केवल सुरक्षा दे सकते हैं, अधिकार और प्रोत्साहन देने के लिए समाज को आगे आना होगा. जो समाज अधिकार न दे सके, वह मुर्दा होता है. यदि आप अपनी मां, बहन और पत्नी को अधिकार नहीं दे सकते हैं, तो उन्हें दूसरे दर्जे का बनाएंगे तो कुदरत आपको दूसरे दर्जे का बना देगी.

सवालः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एक हाथ में कंप्यूटर और दूसरे में कुरान होना चाहिए. इससे किस तरह फायदा उठाया जा सकता है?

मौलाना महमूद मदनीः मैं प्रधानमंत्री की इस सोच पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा. इसको कोई और रंग दे दिया जाएगा. मेरा तो मानना है कि कुरान सीने में होना चाहिए. कुरान पर यकीन होना चाहिए. कुरान हमें एक हाथ में या दोनों हाथों में कंप्यूटर रखने से नहीं रोकता.

मुसलमानों को सबसे ज्यादा शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए. मैं अपना यह जुमला एक बार फिर दोहरा दूं कि तालीम, तालीम और सिर्फ तालीम. मुसलमान अगले 20वर्षों का केवल एक एजेंडा बना लें, बाकी किसी भी चीज की तरफ दायें या बायें बिल्कुल न देंखें. तालीम के साथ तरबियत भी अहम है. तालीम को मिशन बना लेना चाहिए, लड़कों के लिए भी और लड़कियों के लिए भी.

सवालः क्या देश में मुसलमान धर्म के नाम पर वोट मांगें तो दुरूस्त होगा ?

मौलाना महमूद मदनीः इसके बारे में कुछ भी कहना समय से पहले होगा. देश में इस पर बहस हो रही है. हम मजहब के नाम पर वोट दिए जाने और मांगे जाने के खिलाफ रहे हैं. अन्यथा, बीजेपी में क्या बुराई है? इसलिए हम धर्म के नाम पर वोट के खिलाफ हैं.

सवालः भारतीय राजनीति में, मुसलमानों की विभिन्न दलों में भागेदारी कम होती जा रही है. आप क्या कहेंगे?

मौलाना महमूद मदनीः यह बहुत कठिन प्रश्न है. अब समय की कमी है. मैं कुछ दिनों में इस विषय पर बात करूंगा. अभी इसके बारे में बात करना उचित नहीं है.

सवालः पाकिस्तान में मंदिरों पर हमले और शियाओं को निशाना बनाने की घटनाएं इस्लाम और कुरान की भावना के विरुद्ध हैं. आप क्या कहना चाहेंगे?

मौलाना महमूद मदनीः मंदिर या मस्जिद, किसी पर हमले की इजाजत नहीं होनी चाहिए. दुनिया के किसी भी हिस्से में, अगर कहीं मुसलमान हैं और किसी की इबादतगाह या इबादत करनेवालों पर हमला होता है, तो इंतहाई बदबख्ताना अमल कहलाएगा. मुसलमानों को इसके खिलाफ आवाज उठानी चाहिए. लेकिन ऐसी घटनाएं हमारे मुल्क में होती हैं तो इसकी भी हर स्तर पर आलोचना होनी चाहिए.