थैलासीमियाः फरीदाबाद में हर साल होती हैं दस मौतें

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 13-06-2022
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से थैलासीमिक बच्चों के एक समूह ने की मुलाकात
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से थैलासीमिक बच्चों के एक समूह ने की मुलाकात

 

राकेश चौरासिया  / फरीदाबाद

रक्ताल्पता की कमी से होने वाली बीमारी थैलासीमिया एक भयानक और जानलेवा रोग है. यदि उचित देखभाल न हो, तो बच्चे की किशोर अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते मौत हो जाती है. इस जिले में लगभग हर साल जांच में 20 थैलासीमिक बच्चों की शिनाख्त की जाती है और हर साल लगभग 10 बच्चों की रक्त या उपचार के अभाव में मृत्यु हो जाती है.

थैलासीमिया एक वंशानुगत रोग है, जो माता-पिता से बच्चों में स्थानांतरित होता है. इसके सर्वाधिक रोगी दिल्ली और एनसीआर में हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि 1947 के बंटवारे के बाद जो हिंदू और सिख भारत आए, उनमें से ज्यादातर दिल्ली और एनसीआर के इलाके में बसे. फरीदाबाद में तो इन हिंदू शरणार्थियों के लिए तब अलग से एक न्यू टाउनशिप ही बसा दी गई थी. इन परिवारों में सबसे ज्यादा थैलासीमिया पाया जा रहा है. इस रोग का प्रभाव अधिकतर पंजाबी, मुलतानी, सिंधी, गुजराती, बंगाली, पारसी, लोहानी आदि समुदायों में पाया जाता है.

अकेले फरीदाबाद जिले में लगभग 200 मरीजों की पहचान हो चुकी है. हर साल यहां लगभग 20 मरीज पाए जाते हैं और औसतन दस लोगों की मौत हो जाती है. हरियाणा में इनकी संख्या लगभग एक हजार हैं. जबकि एक अनुमान के अनुसार देश में लगभग 135 लाख लोग थैलासीमिया वाहक हो सकते हैं. यानि उनके वंश में कभी भी किसी को यह बीमारी हो सकती है.

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थैलासीमिया जागरूकता  के लिए एक कार्यक्रम में पहुंचे गुरु रंधावा   


थैलासीमिया गंभीर रोग

इस रोग का मुख्य कारण है कि रक्त में जो श्वेत और लाल रुधिर कणिकाएं (आरबीसी) होती हैं, उनका ऐसे रोगी में स्वतःस्फूर्त निर्माण नहीं होता है. जो भी लाल रक्त कण होते हैं, उनका आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है और उनकी आयु भी कम होती है.

लाल रक्त कणिकाएं हमारे फेफड़ों से अॉक्सीजन को हमारे शरीर के बाकी हिस्सों में पहुंचाती हैं और कार्बन डाइअॉक्साइड को वापस हमारे फेफड़ों में वापस ले जाती हैं. लाल रुधिर कणिकाएं यानी हीमोग्लोबिन की अनुपस्थिति या न्यूनता के कारण न केवल शारीरिक विकास प्रभावित होता है, बल्कि कमजोरी भी बनी रहती है. लाल रक्तकण की कमी होने से आयरन की मात्रा बढ़ जाती है. इससे हृदय, लीवर और शरीर के कई अन्य अंगों पर जमा होने लगता है.

इससे वह अंग कठोर हो जाता है. जो कुछ दिनों के बाद काम करना बंद कर देता है, जिससे बच्चे की मौत हो जाती है. ऐसे में मरीजों को आयरन की मात्रा कम करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं. इस बीमारी की तीन स्टेज यानी थैलेसीमिया माइनर, थैलेसीमिया मेजर और तीसरी स्टेज को थैलेसीमिया इंटरमीडिया होती हैं. थैलेसीमिया इंटरमीडिया स्टेजा जानलेवा होती है.

लाइलाज बीमारी

इसके रोगी की अगर पहचान नहीं हो पाती है, तो इलाज के अभाव में उसकी आयु बहुत कम होती है. यदि इस रोग का पता चल जाए, तो भी यह बीमारी आधुनिक विज्ञान के इस समय में भी लाइलाज है. बच्चे के जीवन को लंबा करने के लिए उसे हर 20-30 दिन के बाद एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ता है.

इसके अलावा कुछ सहायक दवाईयां भी हैं, लेकिन मुकम्मल इलाज नहीं है. खून चढ़ाने और महंगी दवाईयों से उपचार के बाद भी बच्चे का जीवनकाल लंबा ही किया जा सकता है, उसे बचाया नहीं जा सकता.

थैलासीमिया के रिसर्चर औरएलएनजेपी अस्पताल के पैथोलाजिस्ट डा. विनोद तंवर ने बताया कि देश में डेढ़ से तीन प्रतिशत लोग थैलेसीमिया सिंड्रोम के कैरियर हो सकते हैं. यह आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ रहा है.

इस बीमारी के प्रति लोगों की जागरूकता आने वाली पीढ़ी को इस बीमारी से बचा सकती है. शादी से पहले कुंडली मिलाने से भी ज्यादा जरूरी है कि लड़की व लड़के में थैलेसीमिया वाहक की जांच को महत्ता दी जाए, तो भविष्य में उनकी संतान को जीवन भर के इस दर्द से बचाया जा सकता है.

अगर एक साथी थैलेसीमिया वाहक है और उसकी साथी को दूसरे वाहक से पीड़ित पाया जाए, तो बच्चे को गंभीर थैलेसीमिया बीमारी चपेट में ले सकती है. अगर पति-पत्नी दोनों थैलेसीमिया वाहक हैं तो बच्चे को गंभीर थैलेसीमिया होने का 25 प्रतिशत खतरा रहता है.

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थैलासीमिया जांच शिविर के दौरान फाउंडेशन अगेंस्ट थैलासीमिया के पदाधिकारी 


संगठन और जागरूकता

फरीदाबाद में रविंद्र डुडेजा एक व्यक्ति हैं, जिन्होंने इस रोग से अपने बच्चे को काल के गाल में समाते हुए अपनी असहाय आंखों से देखा. पुत्र वियोग के समय ही उन्होंने संकल्प किया कि वे संगठन और जागरूकता की शक्ति से अब और किसी को इसकी पीड़ा से गुजरने नहीं देंगे.

उन्होंने फिर फाउंडेशन अगेंस्ट थैलासीमिया का गठन किया. अब इसमें बी. दास बत्रा, जेके भाटिया, मनोज रत्रा, हरीष बत्रा, पंकज चैधरी, नीरज कुकरेजा, अमरजीत सिंह, बाहदर सिंह सब्बरवाल, नरायाण शाह मिक्का आदि सक्रिय सदस्य हैं. यह टीम लोगों को न केवल जागरूक कर रही है, बल्कि रोगी परिवार की काउंसिलिंग, रक्त उपलब्धता और आवश्यक जानकारी और आर्थिक मदद भी कर रही है. यह हरियाणा में थैलासीमिया का एकमात्र संगठन है. अब राज्य के अन्य जिलों के लोग भी इस संस्था से जुड़कर लाभ उठा रहे हैं.   

डरना नहीं, लड़ना है

डुडेजा ने लगभग जब 20 साल पहले इस संगठन का काम शुरू किया था, तो इस रोग के बारे में लोग जानते भी न थे. इस संस्था का ध्येय सूत्र है ‘डरना नहीं, लड़ना है’. सबसे पहला काम संस्था ने यह किया है कि लोगों का आत्मबल बढ़ाया. जिन परिवारों का कोई बच्चा इस रोग से पीड़ित है, उसे रोग से लड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया. इसलिए अब शहर के लोगों ने इस रोग से लड़ना सीख लिया है. इसके अलावा संस्था ने जांच अभियान शुरू करवाया है. खासतौर से 1947 के दौरान आए लोगों के परिवारों के सदस्यों को शादी से पहले और डिलीवरी के समय टैस्ट करवाने के लिए कहा जाता है कि कहीं वे थैलासीमिया कैरियर तो नहीं हैं. पहले बच्चे जल्दी मर जाते थे. अब रोग की शिनाख्त होने पर डॉक्टर इस संस्था के पास रोगियों को भेजते हैं. संस्था उस बच्चे को नियमित अंतराल पर खून चढ़ाने और दवाईयों की उपलब्धता के विषय में मदद करती है. इसलिए अब कई बच्चे लंबा जीवन जीने लगे हैं.   

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थैलासीमिक बच्चों के लिए लगाया गया रक्तदान शिविर  


दवाईयां

प्रत्येक थैलासीमिक बच्चे को हर माह लगभग पांच हजार रुपये की दवाईयों की जरूरत होती है. इन्हें संस्था द्वारा दानी सज्जानों की मदद से मुफ्त उपलब्ध करवाया जाता है, क्योंकि ज्यादातार परिवार ऐसे हैं, जो एक लंबे समय तक हर माह इतना खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं.

विशेष सुविधाएं

थैलासीमिया के प्रति जागरूकता और इस संस्था के सतत प्रयासों का यह परिणाम हुआ है कि इस दिशा में काफी काम हो रहा है. कई संस्थाएं और व्यक्ति आगे आए हैं, जो आर्थिक और अन्य प्रकार की मदद प्रदान कर रहे हैं.

कई संगठन इन बच्चों के लिए विशेष तौर पर रक्तदान शिविर लगाने लगे हैं. रोटरी क्लब के ब्लड बैंक में इन बच्चों के लिए रक्त आरक्षित रखा जाने लगा है, क्योंकि इन्हें लगभग हर महीने खून चढ़ाना पड़ता है. यहां के जिला अस्पताल ‘बादशाह खान अस्पताल’ में एक विशेष वार्ड बना दिया गया है, जिसमें चार बेड इन बच्चों के उपचार के लिए आरक्षित रहते हैं. वार्ड में टीवी और फ्रिज आदि आवश्यक सुविधाएं हैं.

सरकार के प्रयास

अब हरियाण स्वास्थ्य विभाग ऐसी महिलाओं का हाई परफोरमेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी टेस्ट करके यह पता लगाएगा कि कहीं होने वाला बच्चा थैलेसीमिया वाहक तो नहीं. प्रदेश में ऐसी महिलाओं की स्क्रीनिंग होगी. राज्य के 22जिलों के इन सैंपलों को फरीदाबाद, हिसार, पंचकुला और रोहतक की लेबोरेटरी में टेस्ट किया जाएगा.