भारत में कोरोना टीकाकरण को लेकर फैलाए जा रहे मिथक और सच

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 28-05-2021
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

 

आवाज- द वॉयस

भारत के कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम को लेकर कई तरह के झूठ और मिथक फैलाए जा रहे हैं. आम जनता में यह मिथक ग़लत बयानों, आधे सच और खुलेआम बोले जा रहे झूठ के कारण फैल रहे हैं.

नीति आयोग में सदस्य (स्वास्थ्य) और कोविड-19 (एनईजीवीएसी) के लिए वैक्सीन प्रबंधन पर राष्ट्रीय विशेषज्ञ समूह के अध्यक्ष डॉ. विनोद पॉल ने इन सभी मिथकों से जुड़े झूठ को एक सिरे से ख़ारिज करते हुए इनका पर्दाफाश किया है. उन्होंने कहा, “यह गलत है कि सरकार ने टीके खरीदने की कोशिश नहीं की. सरकार 2020 के मध्य से ही सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के संपर्क में है.”

डॉ. पॉल ने टीकाकरण को लेकर सभी झूठों और मिथकों का एक-एक करके जवाब दिया है.

मिथकः केंद्र विदेशों से टीके खरीदने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है

डॉ. विनोद पॉलः केंद्र सरकार 2020 के मध्य से ही सभी प्रमुख अंतरऱाष्ट्रीय वैक्सीन निर्माताओं के साथ लगातार संपर्क बनाए हुए है. फाइजर, जेएंडजे और मॉडर्ना के साथ कई दौर की बातचीत हो चुकी है. सरकार ने उन्हें भारत में उनके टीकों की आपूर्ति और इन्हें बनाने के लिए सभी प्रकार की सहायता की पेशकश की है. हालांकि, ऐसा नहीं है कि उनके टीके निःशुल्क रूप से आपूर्ति के लिए उपलब्ध हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीके खरीदना 'ऑफ द शेल्फ' वस्तु खरीदने के समान नहीं है. विश्व स्तर पर टीके सीमित आपूर्ति में हैं, और सीमित स्टॉक को आवंटित करने में कंपनियों की अपनी प्राथमिकताएं, योजनाएं और मजबूरियां हैं. वे अपने मूल देशों को भी प्राथमिकता देती हैं जैसे हमारे अपने वैक्सीन निर्माताओं ने हमारे लिए बिना किसी संकोच के किया है. फाइजर ने जैसे ही वैक्सीन की उपलब्धता का संकेत दिया, इसके बाद से ही केंद्र सरकार और कंपनी वैक्सीन के जल्द से जल्द आयात के लिए मिलकर कार्य कर रही हैं.

मिथकः केंद्र ने विश्व स्तर पर उपलब्ध टीकों को मंजूरी नहीं दी है

डॉ. विनोद पॉलःकेंद्र सरकार ने अप्रैल में ही भारत में यूएस एफडीए, ईएमए, यूके की एमएचआरए और जापान की पीएमडीए और डब्ल्यूएचओ की आपातकालीन उपयोग सूची द्वारा अनुमोदित टीकों को प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बना दिया है. इन टीकों को पूर्व ब्रिजिंग परीक्षणों से गुजरने की आवश्यकता नहीं होगी.

अन्य देशों में निर्मित बेहतर तरीके से परीक्षित और जाँचे गए टीकों के लिए परीक्षण आवश्यकता को पूरी तरह से समाप्त करने के लिए प्रावधान में अब और संशोधन किया गया है. औषधि नियंत्रक के पास अनुमोदन के लिए किसी विदेशी विनिर्माता का कोई आवेदन लंबित नहीं है.

मिथकः केंद्र टीकों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है

डॉ. विनोद पॉलःकेंद्र सरकार 2020 की शुरुआत से ही अधिक कंपनियों को टीके का उत्पादन करने में सक्षम बनाने के लिए एक प्रभावी सूत्रधार की भूमिका निभा रही है. केवल एक भारतीय कंपनी (भारत बायोटेक) है जिसके पास आइपी है. सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भारत बायोटेक के अपने संयंत्रों को बढ़ाने के अलावा 3 अन्य कंपनियां कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू करेंगी, जो अब 1 से बढ़कर 4 हो गई हैं.

भारत बायोटेक द्वारा कोवैक्सीन का उत्पादन अक्टूबर तक 1 करोड़ प्रति माह से बढ़ाकर 10 करोड़ माह किया जा रहा है. इसके अलावा, तीनों कंपनियों का लक्ष्य दिसंबर तक 4 करोड़ खुराक तक उत्पादन करने का होगा. सरकार के निरंतर प्रोत्साहन से, सीरम इंस्टीट्यूट प्रति माह 6.5 करोड़ खुराक के कोविशील्ड उत्पादन को बढ़ाकर 11 करोड़ खुराक प्रति माह कर रहा है.

सरकार रूस के साथ साझेदारी में यह भी सुनिश्चित कर रही है कि स्पूतनिक का निर्माण डॉ. रेड्डी के समन्वय के साथ 6 कंपनियों द्वारा किया जाएगा. केन्द्र सरकार जायडस कैडिला, बायोई के साथ-साथ जेनोवा के अपने-अपने स्वदेशी टीकों के लिए वित्तीय मदद देकर टीका उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

 2021 के अंत तक हमारे वैक्सीन उद्योग द्वारा 200 करोड़ से अधिक खुराक के उत्पादन का अनुमान है.

मिथकः केंद्र को अनिवार्य लाइसेंसिंग लागू करनी चाहिए

डॉ. विनोद पॉलः अनिवार्य लाइसेंसिंग एक बहुत ही आकर्षक विकल्प नहीं है क्योंकि यह एक एसा 'फार्मूला' नहीं है जो अधिक मायने रखता हो, लेकिन सक्रिय भागीदारी, मानव संसाधनों का प्रशिक्षण, कच्चे माल की सोर्सिंग और जैव-सुरक्षा प्रयोगशालाओं के उच्चतम स्तर की आवश्यकता है. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण एक कुंजी है और यह उस कंपनी के नियंत्रण में होता है जिसने अनुसंधान और विकास किया है. वास्तव में, हम अनिवार्य लाइसेंसिंग से एक कदम आगे बढ़ चुके हैं और कोवैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारत बायोटेक और 3 अन्य संस्थाओं के बीच सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं. स्पूतनिक के लिए भी इसी तरह की व्यवस्था का पालन किया जा रहा है. इस बारे में सोचें: मॉडर्ना ने अक्टूबर 2020 में कहा था कि वह अपनी वैक्सीन बनाने वाली किसी भी कंपनी पर मुकदमा नहीं करेगी, लेकिन फिर भी एक भी कंपनी ने ऐसा नहीं किया है, जिससे पता चलता है कि लाइसेंसिंग सबसे छोटी समस्या है. अगर वैक्सीन बनाना इतना आसान होता, तो विकसित देशों में भी वैक्सीन की खुराक की इतनी कमी क्यों होती?

मिथकः केंद्र ने राज्यों पर अपनी जिम्मेदारी को छोड़ दिया है

डॉ. विनोद पॉलःकेंद्र सरकार वैक्सीन निर्माताओं को फंडिंग से लेकर उन्हें भारत में विदेशी टीके लाने के लिए उत्पादन में तेजी लाने हेतु जल्द मंजूरी देने का काम कर रही है. केंद्र द्वारा खरीदा गया टीका लोगों को निःशुल्क रूप से लगाने के लिए राज्यों को पूरी तरह से आपूर्ति की जाती है. सभी राज्य यह जानते हैं.

भारत सरकार ने केवल राज्यों को उनके ही स्पष्ट अनुरोध करने के बाद, स्वयं टीकों की खरीद का प्रयास करने में सक्षम बनाया है. राज्यों को देश में उत्पादन क्षमता और विदेशों से सीधे टीके खरीदनें में क्या कठिनाइयाँ आती हैं, इसके बारे में अच्छी तरह से पता था. वास्तव में, भारत सरकार ने जनवरी से अप्रैल तक संपूर्ण टीका कार्यक्रम चलाया और मई की स्थिति की तुलना में यह काफी बेहतर तरीके से प्रशासित था. लेकिन जिन राज्यों ने इन 3 महीनों में स्वास्थ्य कर्मियों और अग्रिम पंक्ति के कार्मिकों के टीककरण की दिशा में अच्छा कवरेज हासिल नहीं किया था, वे टीकाकरण की प्रक्रिया को खोलना चाहते थे और इसका अधिक विकेंद्रीकरण चाहते थे.

तथ्य यह है कि उनकी वैश्विक निविदाओं का कोई परिणाम नहीं निकला, और यह इस बात की भी पुष्टि करता है जिसे हम राज्यों को पहले दिन से बता रहे हैं: कि दुनिया में टीके की आपूर्ति कम मात्रा में हैं और उन्हें कम समय में खरीदना आसान नहीं है.

मिथकः केंद्र राज्यों को पर्याप्त टीके नहीं दे रहा है

डॉ. विनोद पॉलःकेंद्र राज्यों को तय दिशा-निर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से पर्याप्त टीके आवंटित कर रहा है. दरअसल, राज्यों को भी वैक्सीन की उपलब्धता के बारे में पहले से ही सूचित किया जा रहा है. निकट भविष्य में वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ने वाली है और बहुत अधिक आपूर्ति संभव होगी.

रोज टीवी पर दिखने वाले हमारे कुछ नेता, जिन्हें टीके की आपूर्ति पर तथ्यों की पूरी जानकारी है फिर भी लोगों के मन में दहशत पैदा कर रहे हैं और यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. यह समय राजनीति करने का नहीं है.

मिथकः केंद्र बच्चों के टीकाकरण के लिए कोई कदम नहीं उठा रहा है

डॉ. विनोद पॉलःअभी तक दुनिया का कोई भी देश 12 वर्ष के कम आयु के बच्चों को वैक्सीन नहीं दे रहा है. साथ ही, डब्ल्यूएचओ ने बच्चों का टीकाकरण करने की कोई सिफारिश नहीं की है. बच्चों में टीकों की सुरक्षा के बारे में अध्ययन किए गए हैं, और यह उत्साहजनक रहे हैं. भारत में भी जल्द ही बच्चों पर ट्रायल शुरू होने जा रहा है. हालांकि, बच्चों का टीकाकरण व्हाट्सएप ग्रुपों में फैलाई जा रही दहशत के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए और क्योंकि कुछ राजनेता इस पर राजनीति करना चाहते हैं. परीक्षणों के आधार पर पर्याप्त डेटा उपलब्ध होने के बाद ही हमारे वैज्ञानिकों द्वारा यह निर्णय लिया जाना है.