डॉ. रफीउद्दीन अहमदः भारतीय दंत चिकित्सा के जनक

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 23-05-2022
डॉ. रफीउद्दीन अहमदः भारतीय दंत चिकित्सा के जनक
डॉ. रफीउद्दीन अहमदः भारतीय दंत चिकित्सा के जनक

 

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साकिब सलीम 

’‘शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी है, लेकिन अगर कोई बीड़ा उठाने को तैयार नहीं है, तो मैं जितनी देर तक कर सकता हूं, मैं करूंगा.’’ ये शब्द और साथ ही कार्य थे, डॉ रफीउद्दीन अहमद के. उन्होंने कई कार्य किए, लेकिन उनका सबसे महत्वपूर्ण परिचय भारतीय दंत चिकित्सा के पिता के रूप में है.

डॉ. रफीउद्दीन अहमद का जन्म 24दिसंबर, 1890को ब्रैडनपारा (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. शुरुआत से ही एक होनहार छात्र थे और उन्होंने 1906में ढाका मदरसा से उच्च माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण की और उन्हें अलीगढ़ में मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) भेजा गया.

अलीगढ़ से ग्रेजुएशन करने के बाद रफीउद्दीन 1909 में उच्च शिक्षा के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) चले गए. उन्होंने 1915में आयोवा स्कूल ऑफ डेंटिस्ट्री से डॉक्टर इन डेंटल सर्जरी की उपाधि प्राप्त की और 1919 में विश्व युद्ध समाप्त होने तक संयुक्त राज्य अमेरिका में काम किया.

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अपनी मातृभूमि में लौटने पर, डॉ रफीउद्दीन ने महसूस किया कि जिस देश में सदियों से दंत शल्य चिकित्सा का इतिहास रहा है, वहां लोगों को दंत चिकित्सकों की सख्त जरूरत है.

यह चौंकाने वाला था कि इतने बड़े देश में दंत चिकित्सा सिखाने के लिए कोई आधुनिक कॉलेज नहीं था. उन्होंने खुद पहल की. 1920में रफीउद्दीन ने कलकत्ता (अब कोलकाता) में 11छात्रों को दंत चिकित्सा पढ़ाना शुरू किया और इस तरह भारत में दंत चिकित्सा का पहला कॉलेज शुरू किया. छात्रों को पढ़ाने का प्रयोग सफल साबित हुआ, क्योंकि ये प्रशिक्षित दंत चिकित्सक देश में फैलने लगे और भारतीयों की सेवा करने लगे.

ब्रिगेडियर एस.एम.एस निकोलसन, मेजर एस.के. गुप्ता, कर्नल जे.एफ पटेल, ब्रिगेडियर जेएम राव और फातिमा जिन्ना इस कॉलेज के कुछ शानदार पूर्व छात्र थे.

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1928में उन्होंने ऑपरेटिव डेंटिस्ट्री पर पहली स्टूडेंट हैंडबुक प्रकाशित की, उसी वर्ष जब उन्होंने इंडियन डेंटल एसोसिएशन की स्थापना की. इससे पहले उन्होंने 1925में बंगाल डेंटल एसोसिएशन की स्थापना की थी.

इंडियन डेंटल जर्नल भी उनके द्वारा 1925में शुरू किया गया था, जिसे 1946तक उनके द्वारा संपादित किया गया था. उन्होंने बंगाल डेंटिस्ट एक्ट, 1939और इंडिया डेंटल एक्ट, 1949का मसौदा तैयार करने में भी मदद की. इंडियन डेंटल काउंसिल, जब 1954में स्थापित हुई, ने उन्हें इसके संस्थापक अध्यक्ष के रूप में चुना.

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एक सच्चे देशभक्त रफीउद्दीन ने 1949 में अपने द्वारा स्थापित कलकत्ता डेंटल कॉलेज को पश्चिम बंगाल सरकार को दान कर दिया, ताकि एक राष्ट्रीय सरकार इसका बेहतर तरीके से भारतीयों के कल्याण के लिए उपयोग कर सके. वह एक देशभक्त भी थे, जिन्होंने 1932 से 1944 तक कलकत्ता नगर निगम के पार्षद के रूप में भारतीय लोगों की सेवा की.

भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद उन्होंने पाकिस्तान के विचार को खारिज कर दिया, भारत में रहे और पश्चिम बंगाल में कृषि, राहत और पुनर्वास मंत्री के रूप में योगदान दिया.

वह 1950 से 12 वर्षों तक मंत्री रहे. भारत सरकार ने 1964 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया और बाद में उनके बाद कलकत्ता डेंटल कॉलेज का नाम बदलकर उनके योगदान को मान्यता दी. उनके जन्मदिन को भारत में राष्ट्रीय दंत चिकित्सक दिवस के रूप में मनाया जाता है.