आवाज द वाॅयस
कोरोनावायरस सूंघने की क्षमता को प्रभावित करता है.कुछ मामलों में, कोरोना रोगियों ने अवास्तविक और अप्रिय गंध का भी अनुभव किया. इस स्थिति को ‘पायरोस्मिया‘ या ‘मतिभ्रम‘ कहते हंै. इनमें किसी से भी पीड़ित व्यक्ति अक्सर अवसाद का शिकार होेता है.
साइकोलॉजी टुडे वेबसाइट के मुताबिक, स्मृति हानि भावनाओं और यादों को प्रभावित करती हंै. खासकर लंबी अवधि की यादें को.मस्तिष्क किसी भी प्रकार की गंध का पता लगाने में मदद करता है. तंत्रिका रिसेप्टर्स के माध्यम से गंध मस्तिष्क के उन हिस्सों तक पहुंचती है, जो भावनाओं और स्मृति में शामिल है.
इसलिए यादों को किसी चीज की गंध से जोड़ा जा सकता है. जैसे वेनिला की खुशबू मुझे मेरी मां की याद दिलाती है. जब वह क्रिसमस केक बनाती थी. या पेस्ट्री की खुशबू गर्मियों में दादी के घर पर बिताए समय की याद दिलाती है.
यह भी संभव है कि एक निश्चित गंध एक ऐसी स्मृति को जन्म दे जो कुछ लोगों के लिए सुखद न हो. जैसे मछली की गंध गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को मतली की याद दिलाती है. बच्चे के जन्म के बाद लंबे समय तक उसे मछली के गंध से उल्टी आती है.
जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए एक ही गंध को सुखद समय के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. लब्बोलुआब यह कि गंध हमारे भावनात्मक अनुभवों से जुड़ी है.शोध से पता चला कि गंध और अवसाद की भावना के बीच एक संबंध है. गंध की भावना का अभाव अवसाद की भावनाओं को तेज करता है. इस अवसाद से गंध की भावना का नुकसान होता है.
अध्ययन में 322ऐसे कोरोना पीड़ित शामिल किए गए थे जिनकी सूंघने की क्षमता पूरी तरह या आंशिक रूप से प्रभावित हुई थी. छप्पन प्रतिशत ने कहा कि उनकी गंध की भावना ने उन्हें प्रभावित किया. उन्होंने जीवन में अपनी खुशी खो दी, जबकि 43प्रतिशत ने कहा कि वे अवसाद से पीड़ित हैं.
कोरोना वायरस न केवल हमारी भावनाओं को बल्कि हमारी यादों को भी प्रभावित करता है.अगर कोरोना वायरस से ठीक होने के दो महीने बाद भी आपकी सूंघने की क्षमता में सुधार नहीं हुआ, तो यहां कुछ टिप्स दिए गए हैं, जिनकी मदद से आप अपने होश को वापस पा सकते हैं.
ऐसा करने का एक तरीका है नींबू और लौंग जैसी तेज सुगंध को लगातार बीस सेकंड तक अंदर लेना. वैसे, गंध की भावना उम्र के साथ प्रभावित होती है, लेकिन इस तकनीक से इस भावना को बहाल किया जा सकता है.