कोरोनाः फिर शुरू हुई नई बहस

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 2 Years ago
आखिर कहां से आया यह जानलेवा कोरोना वायरस!
आखिर कहां से आया यह जानलेवा कोरोना वायरस!

 

आवाज विशेष । कोरोना वायरस     

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली           

कोविड 19 ने भारत ही नहीं, दुनिया भर में तबाही मचा रखी है. देश में रोजाना करीबन 4 हजार लोग मौत के मुंह में जा रहे हैं. विशेषज्ञों ने दूसरी लहर के बाद तीसरी लहर की भी भविष्यवाणी कर दी है ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कोविड 19 का वायरस आया कहां से? क्या यह वाकई कुदरती आपदा है, क्या यह किसी प्रयोगशाला की गलती से चुपके से छिटककर निकल गया वायरस है या फिर दुनिया का एक बड़ा तबका किसी जैविक युद्ध का शिकार हुआ है?

अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह की बातें कर रहे हैं. कुछ लोग जैविक युद्ध की बात को सिरे से खारिज करते हुए उसे कपोल कल्पना और साजिश का सिद्धांत मान रहे हैं और उनकी मंशा चीन को क्लीन चिट देने की रहती है. आखिर क्यों. आखिर ऐसा क्या है कि दुनिया भर में, जिसमें अमेरिका जैसा आत्मविश्वास से भरा और विकसित देश भी शामिल है, अचानक चिकित्सा तंत्र ध्वस्त कैसे हो गया और इतनी बड़ी तबाही कैसे मच गई?

कोविड 19 कैसे आया और कहां से आया, इसे लेकर तमाम तरह के कयास पिछले एक साल से लगाए जा रहे हैं.

इन दो कोणों को परे रख देते हैं तो कोरोना वायरस के प्रसार के सभी मुमकिन तरीकों पर गौर करें, तो मोटे तौर तीन संभावनाएं बनती हैं, पहली, यह कुदरती है और जैसे सदियों पहले वायरसजन्य महामारियां फैलती थीं यह भी कुछ वैसे ही हुआ हो. ऐसे मामलों में, वायरस के चमगादड़ से फैलने का अंदेशा होता है और इसके लिए एक मध्यस्थ जीव (इंटरमीडिएट जीव) की जरूरत होती है.

दूसरी संभावना यह कहती है कि यह वायरस मानवनिर्मित है और यह किसी प्रयोगशाला से गलती से या जानबूझकर बाहर निकल आया है. तीसरा अंदेशा यह है कि यह चीन के जैविक युद्ध का हिस्सा है और यह वायरस जानबूझकर दुनियाभर में चीन के दुश्मन देशों में फैलाया गया है.

सबसे पहले बात, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के दो अखबारों में छपी रिपोर्ट्स के बारे में. ब्रिटेन का अखबार है ‘द सन’ और ऑस्ट्रेलिया का अखबार है ‘द ऑस्ट्रेलियन’. दोनों ही अखबार प्रतिष्ठित माने जाते हैं. इन अखबारों की रिपोर्ट्स में कुछ चौंकाने वाले तथ्य प्रकाशित किए गए हैं. इनमें दावा किया गया है कि इस वायरस को चीन ने अपनी प्रयोगशाला में तैयार किया है और चीन कोरोना वायरस के माध्यम से कई देशों के खिलाफ एक जैविक युद्ध लड़ रहा है.

इन रिपोर्ट्स में कहा गया है कि चीन के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 महामारी से पांच साल पहले कथित तौर पर कोरोना वायरस को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने के बारे में जांच की थी और उन्होंने तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियार से लड़ने का पूर्वानुमान लगाया था.

असल में, 'द सन' अखबार ने 'द ऑस्ट्रेलियन' की तरफ से सबसे पहले जारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बाद में रिपोर्ट प्रकाशिक की अमेरिकी विदेश विभाग के हाथ कुछ 'विस्फोटक' दस्तावेज लगे हैं जिनसे यह संकेत मिलता है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के कमांडर यह घातक पूर्वानुमान जता रहे थे. अमेरिकी अधिकारियों को मिले दस्तावेज कथित तौर पर वर्ष 2015 में उन सैन्य वैज्ञानिकों और वरिष्ठ चीनी स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा लिखे गए थे जोकि कोविड-19 की उत्पत्ति के संबंध में जांच कर रहे थे.

इस प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी वैज्ञानिकों ने सार्स कोरोना वायरस का 'जैविक हथियार के नए युग' के तौर पर उल्लेख किया था, कोविड जिसकी एक उदाहरण है. अखबार में छपी खबर के मुताबिक, पीएलए के दस्तावेजों में दर्शाया गया कि जैव हथियार हमले से दुश्मन के चिकित्सा तंत्र को ध्वस्त किया जा सकता है. दस्तावेजों में अमेरिकी वायुसेना के कर्नल माइकल जे के कार्यों का भी जिक्र किया गया है, जिन्होंने इस बात की आशंका जताई थी कि तीसरा विश्व युद्ध जैविक हथियारों से लड़ा जा सकता है.

विस्फोटक खुलासाः द ऑस्ट्रेलियन की खोजी रपट


कोविड 19 की उत्पत्ति के बारे में चीन की पारदर्शिता को लेकर चिंता पैदा हो गई. हालांकि, बीजिंग में सरकारी ग्लोबल टाइम्स समाचारपत्र oने चीन की छवि खराब करने के लिए इस लेख को प्रकाशित करने को लेकर दी ऑस्ट्रेलिया की आलोचना की है, वहां द गार्जियन ने भी अपने एक लेख में इस रहस्योद्घाटन को अस्पष्ट बताया.

द गार्जियन के मुताबिक, “(इस दस्तावेज का) का मूल मसौदा एक रिसर्च रिपोर्ट था और इसको अमेरिकी विदेश विभाग ने हर तरफ बांटा था.”

इस अखबार के मुताबिक, “ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ने यह भी रिपोर्ट की है कि कैनबरा में अमेरिका दूतावास ने ऑस्ट्रेलियाई सरकार के अधिकारियों के साथ इस मसले पर स्पष्टीकरण के लिए लगातार बैठकें की हैं.”

अगर द सन, ऑस्ट्रेलियन को रिपोर्ट का जान-बूझकर कर साजिश समझकर परे कर दें तो भी कई लोगों को शक है कि चीन अपारदर्शिता ने मामला गंभीर हो रहा है. कुछ लोगों का कहना है कि क्या वजह है कि कोरोना महामारी के फैलने के तुरंत बाद चीन की वैक्सीन बाजार में कैसे आ गई? क्योंकि उस वक्त तक तो वायरस के जीनोम का विश्लेषण भी शुरू नहीं हुआ था. साथ ही, चीन ने ही सबसे पहले वुहान में लॉकडाउन लगाया था, तो अमेरिका भी हैरान रह गया था कि चीन को यह कैसे पता कि लॉकडाउन लगाने से कोरोना खत्म हो सकता है!

असल में, पिछले साल यानी 19 फरवरी, 2020 को जब पहली बार यह सिद्धांत लोगों के सामने आया कि कोविड 19 वायरस वुहान लैब से आया है, तो कई बड़े वैज्ञानिकों ने इसे ‘साजिश सिद्धांत’ बताया और इसका विरोध करते हुए मशहूर जरनल ‘लैंसेट’ में पत्र लिखा.

इनमें एक वैज्ञानिक पीटर दासज़ैक भी थे. पीटर दासज़ैक मशहूर वायरोलजिस्ट (वायरसों का अध्ययन करने वाले लोग वायरोलजिस्ट कहे जाते हैं) हैं और यह कोरोना वायरस मानव निर्मित नहीं है तथा वुहान के लैब से नहीं निकला है. लेकिन इसकी आलोचना में ‘बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट’ में एक लंबा लेख प्रकाशित हुआ जिसे लिखा है, निकोलस वेड ने.

निकोलस वेड ने लिखा है दुनिया में विज्ञान पत्रकारिका के बड़े स्तंभ माने जाते हैं और उनकी राय का सम्मान दुनिया के बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी करते हैं. बहरहाल, एक पत्रिका ‘साइंस’ में 18 वैज्ञानिको ने सम्मिलित रूप से लिखा कि कोविड 19 के जन्म को लेकर एक विशद चर्चा होनी चाहिए. तब इन वैज्ञानिकों ने पहली बार कहा था कि इस वायरस के जन्मस्थान की चर्चा या खोज होनी चाहिए.

हालांकि, इन वैज्ञानिकों में से एक हैं ज़ेनीप तुफेकी, जो अपने ट्वीट्स के जरिए बताती हैं कि कोविड 19 एयरोसोल्स के जरिए भी फैल रहा है और वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दफ्तरो में लगाए गए पेरीग्लास की शीट्स से हवा का आवागमन कम हो रहा है और स्थिति और नाजुक हो रही है. लेकिन वह भी कोविड 19 के जैविक युद्ध का हिस्सा होने से सहमत नहीं हैं.

लेकिन बुलेटिन में अपने लेख ‘द ओरिजिन ऑफ कोविडः डिड पीपल ऑर नेचन ओपन पंडोरा बॉक्स ऐट वुहान’ में विस्तार से इस बात की चर्चा करते हैं.

वह लिखते हैं, “यह वायरस जिसने यह महामारी फैला रखी है, आधिकारिक तौर पर उसका नाम सार्स-कोव-2 है, लेकिन संक्षिप्त रूप से इसको सार्स2 कहा जाता है. बहुत सारे लोग इसके जन्म के दो सिद्घांत जानते हैं, पहला कि यह जंगली जीवों से इंसानों में आया है. और दूसरा कि यह वायरस किसी प्रयोगशाला में अध्ययन की सामग्री था, जहां से यह बाहर निकल गया.”

वेड ने अपने लेख में लिखा है कि दिसंबर, 2019 में जब यह महामारी शुरू हुई थी उस वक्त चीनी अधिकारियों ने रिपोर्ट की थी कि ऐसे कई मामले वुहान के वेट मार्केट—एक ऐसी जगह जहां जंगली जीवों को मांस के लिए खरीदा-बेचा जाता है—में सामने आए हैं. इससे 2002 में सार्स1 की महामारी की यादें ताजा हो गईं, जिसमें एक चमगादड़ का वायरस सिवेट्स (बिल्ली जैसा जंगली जानवर) से होता हुआ, वेट मार्केट के जरिए, इंसानों में फैला था. 2012 में भी ऐसा ही एक और वायरस फैला था, इसका मूल भी चमगादड़ ही था और इसको मर्स (एमईआरएस) कहा गया और इस बार इंटरमीडियरी मेजबान था ऊंट.

इस बार भी वायरस का जीनोम यह बताता है कि यह भी सार्स और मर्स के कुल का ही वायरस है लेकिन इसके प्रसार में वन्य जीव बाजार का कोई रिश्ता स्थापित नहीं हो पाया है. क्योंकि इस बार वायरस के लिए कोई इंटरमीडिएरी जीव की स्थापना नहीं हो पाई है.

वेड लिखते हैं, कि यह एक संयोग ही नहीं है कि वुहान में, दुनिया का सबसे बड़ा वायरस शोध संस्थान, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलजी है जहां कोरोना वायरस पर शोध होता है. इसलिए क्या इस बात को सीधे खारिज किया जा सकता है कि सार्स2 (कोविड19) वायरस वहीं से निकल भागा हो!

जड़ः यही है वह इंस्टीट्यूट जहां से वायरस के लीक होने का शक है


वेड लिखते हैं, “शुरुआत से ही, जनता और मीडिया में यह नजरिया तैयार किया गया कि यह महामारी कुदरती तरीके से फैली है और दो वैज्ञानिक समूहों ने इसके पक्ष में बड़े बयान दिया. लेकिन इन बयानों की आलोचनात्मक समीक्षा नहीं की गई.” 19 फरवरी, 2020 को लैंसेट में वायरोलजिस्ट के समूह ने लिखा, “हम एकसाथ खड़े हैं और हर उस साजिश सिद्धांत की कड़ी निंदा करते हैं जिसमें कहा गया है कि कोविड 19 का जन्म कुदरती नहीं है.” निकोलस वेड के मुताबिक, “वैज्ञानिकों ने एक सुर से कहा कि कोरोना वायरस का जन्म जंगली जीवों से हुआ है.” और इन वैज्ञानिकों ने पाठकों से कहा कि वह इस रोग से लड़ने में चीनी साथियों के साथ खड़े हैं.

बहरहाल, बाद में यह साफ हो गया कि इस खत के पीछे पीटर दासज़ैक नाम के वैज्ञानिक थे, जो न्यूयॉर्क के इको हेल्थ अलायंस के अध्यक्ष हैं. वेड लिखते हैं, “दासज़ैक का संगठन वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलजी में कोरोना वायरस के रिसर्च को फंडिंग करता है. अगर सार्स 2 वायरस वाकई उस लैब से लीक हुआ है जिसकी फंडिग दासज़ैक करते हैं तो यह उनको दंड का भागी बना सकता है. हितों का यह टकराव लैंसेट के पाठकों को साफ नहीं किया गया था. इसके उलट, खत का अंत कुछ यूं होता है, हम किसी प्रतिस्पर्धी हितों के टकराव में नहीं हैं.”

हालांकि, गौरतलब बात यही है कि कोरोना वायरस के अन्य संक्रामक स्ट्रेन सार्स 1 और मर्स में इंटरमीडिएट वैक्टर बहुत जल्दी खोज लिए गए थे. सार्स 1 चमगादड़ों से सिवेट होता हुआ इंसानों में आया, इसका पता महज 4 महीनों में लग गया था. मर्स, जो पश्चिमी एशियाई देशों में फैला, के मामले में 9 महीनों में पता चला कि कोरोना वायरस बैट से ही आया है. वहां से यह एक ऊंट में गया. लेकिन कोविड 19 के मामले में अगर यह माना जाए कि यह वायरस भी जानवरों से इंसानों में आया है तो 15 महीने बाद भी कुछ भी स्पष्ट क्यों नहीं हो पाया है. आखिर इसका मध्यस्थ जानवर कौन सा है. जबकि विज्ञान सार्स 1 के समय से काफी आगे निकल चुका है.

दूसरा खत 17 मार्च, 2020 को नेचर मेडिसिन नामक पत्रिका में छपा. यह कोई वैज्ञानिक शोधपत्र न होकर ओपिनियन पीस था और इसके लेखकों में कई वायरोलजिस्ट शामिल थे उनकी अगुआई कर रहे थे स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक प्रो. क्रिस्टियन जी. एंडरसन. उन्होंने अपने खत में साफ कहा कि यह कोई प्रयोगशाला में बनाया हुआ वायरस नहीं है.

निकोलस वेड ने अपने लेख में यह मुद्दा उठाया है कि उन्हें यह बात इतने यकीन के साथ कैसे पता. जबकि विज्ञान में अपनी बात को साबित करने की परंपरा रही है. यानी एंडरसन और उनके साथी अपने पाठकों को ऐसी बात का यकीन दिला रहे थे, जिसके बारे में वह खुद यकीनी तौर पर नहीं जानते थे.

वेड लिखते हैं, दूसरे वायरोलजिस्ट ने एंडरसन की बात को नही काटा, क्यों कि आला वैज्ञानिकों की यह लॉबी फंडिंग से लेकर कैरियर की संभावनाओं तक को रोक सकती है.

क्योंकि यह दुनिया का सबसे बड़ा वायरोलजी संस्थान है. अगर यह संस्थान कहता है कि वायरस मानवनिर्मित नहीं है तो उसके बाद कौन उसका विरोध कर पाएगा?

ये वैज्ञानिक प्रयोगशाला में वायरस बनाने की विधि बताते हैं कि वह कट और पेस्ट जैसा मसला है. और इस वायरस के साथ ऐसा कुछ नहीं देखा गया है. वेड लिखते हैं, यह तरीका तो आउटडेटेड है.

नया तरीका है नोसीएम. इसमें वायरस को एक कल्चर से दूसरे कल्चर में ले जाकर वायरस का नेचर बदला जाता है. एंडरसन का ग्रुप कहता है, यह मुमकिन नहीं है कि सार्स कोविड 2 किसी लैब में किसी नजदीकी कोरोना वायरस के मैन्युप्युलेटेशन से बनाया गया हो.

एंडरसन की टीम ने कहा कि अगर यह वैज्ञानिक बनाते तो कोविड 19 वायरस के जो स्पाइक्स हैं वह इतने बेतरतीब नहीं होते और इस तरह डिजाइन किए जाते तो मानव कोशिका में बिल्कुल फिट बैठते. वेड कहते हैं, “ऐसा वह इतने पक्के तौर पर कैसे कह सकते हैं?” वेड के मुताबिक अगर यह बेढबपना या बेतरतीबी कुदरती होती तो सिर्फ स्पाइक्स तक सीमित नहीं रहती.

वैज्ञानिक कहते हैं, जिस जगह से इनके डीएनए लिए गए हैं वह हमारे लिए अनजान नहीं हैं. तो वेड का सवाल है, आरएनए के वायरसों को डीएनए में मैनुपेलुट किया जा सकता है क्योंकि आरएनए बहुत अस्थिर होते हैं.

बहरहाल, अंत में, इस महामारी के फैलने और बहुत नुक्सान हो जाने के 9 महीने बाद डब्ल्यूएचओ अपनी टीम चीन टीम भेजती है. यह टीम आकर कुछ खास नहीं बता पाती है.

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस एडहानोम ग़ेब्रेयेसुस ने कहा, “ये रिपोर्ट एक बहुत अच्छी शुरुआत है लेकिन ये अंत नहीं है. हमें अभी वायरस के स्रोत की जानकारी नहीं मिली है.” चीन के 17 विशेषज्ञों और 17 अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के समूह की जाँच के बाद ये दस्तावेज़ तैयार किया गया है.

ये जाँच टीम इस साल जनवरी के अंत में चीन पहुँची थी जहां 14 दिनों तक उन्होंने अस्पतालों, बाज़ारों और प्रयोगशालाओं का दौरा किया. 120 पन्नों की रिपोर्ट में वायरस की उत्पत्ति और उसके इंसानों में फैलने के संबंध में चार संभावनाएं बताई गई हैं. यहां मिले प्रमाणों के आधार पर विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाले हैं. जिनमें से पहला है कि वायरस के जानवर से इंसान में पहुँचने की संभावना है. इसके लिए चमगादड़, पैंगोलिन या मिंक को जिम्मेदार ठहराया गया है, पर इसके साक्ष्य नहीं हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, जानवर से इंसानों में संक्रमण फैलने के बीच में एक और जीव-जंतु होने की संभावना है. यह इस तथ्य पर आधारित है कि चमगादड़ में पाए गए सार्स-कोविड-2 से संबंधित कई वायरस में कुछ भिन्नताएं हैं जो बताती हैं कि बीच में कोई ‘कड़ी ग़ायब’ है.

ये ग़ायब कड़ी एक जानवर हो सकता है जो पहली बार संक्रमित हुए जानवर और इंसान दोनों के संपर्क में आया हो. शोधकर्ताओं के मुताबिक़, “ये संभावना ऐसे गुत्थी की ओर ले जाती है जिसे सुलझाना मुश्किल है.”

रिपोर्ट के मुताबिक, तीसरी संभावना खाने के सामान से इंसानों में पहुँचने की है. कोविड-19 वायरस खाने के सामान या उन्हें रखने वाले कंटेनर्स के ज़रिए इंसानों में पहुँचा है. इसमें फ्रोज़न फूड शामिल हैं जो आमतौर पर वुहान के बाज़ारों में बेचे जाते हैं.

हालांकि, डब्ल्यूएचओ का दस्तावेज़ कहता है कि सार्स कोविड-2 वायरस के खाने से संचरण के कोई निर्णायक सबूत नहीं हैं और वायरस के कोल्ड चेन से फैलने की भी संभावना बहुत कम है. डब्ल्यूएचओ ने साफ तौर पर कहा है कि वायरस के प्रयोगशाला से इंसानों में फैलने की संभावना कम है. दस्तावेज़ स्पष्ट करता है कि उन्होंने इस संभावना का विश्लेषण नहीं किया कि किसी ने जानबूझकर वायरस फैलाया था.

हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि "दिसंबर 2019 से पहले किसी भी प्रयोगशाला में सार्स-कोविड-2 से संबंधित वायरस या संयोजन से सार्स-कोविड-2 जीनोम बनाने वाले जीनोम्स का रिकॉर्ड नहीं मिला है."

डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कोरोनो वायरस पर काम करने वाली तीन वुहान प्रयोगशालाओं में "उच्च-गुणवत्ता वाले जैव सुरक्षा स्तर" हैं. यहां एक भी कर्मचारी को दिसंबर 2019 से महीनों या सप्ताह पहले कोविड-19 से संबंधित कोई बीमारी नहीं मिली है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधियों में से एक, पीटर दासज़ैक भी थे और इस रिपोर्ट में उनका कहना है कि दक्षिण पूर्व एशिया में खेती के जानवर महामारी की शुरुआत का सबसे संभावित स्रोत हैं.

दासज़ैक ने एक एनपीआर रिपोर्ट में कहा है कि ये खेत ऐसी जगह हो सकते हैं जहां कोरोनोवायरस किसी चमगादड़ से दूसरे जानवर और फिर वहां के लोगों में पहुँचा होगा. ऐसे में, पीटर दासज़ैक का रिपोर्ट पर क्या असर पड़ा होगा इसको कमतर नहीं आंका जा सकता.

असल में, अपने लेख में निकोलस वेड एक दशक पहले नीदरलैंड्स में हुए एक प्रयोग का भी हवाला देते हैं कि किस तरह वहां एक चूहे और बिल्ली के कोरोना वायरसों के मिश्रण से एक नया कोरोना वारयस बनाया गया जो चूहों को तो नुक्सान नहीं पहुंचाता है, बस बिल्लियों के लिए जानलेवा होता है.

निकोलस वेड लिखते हैं कि 2015 में एक नोवल कोरोना वायरस बनाया गया था जिसमें सार्स 1 को बैकबोन (आधार) बनाकर एक अन्य कोरोना वायरस, एसएचसीओ14 से मिलाया गया और उसमें जो परिवर्तन कराए गए और यह इंसानी कोशिकाओं को संक्रमित कर सकता था. इसे चिमेरा कोरोना वायरस कहा गया था.

वेड की टिप्पणी है, “यानी लैब में सार्स 1 वायरस पर काम हो रहा था और इसके स्पाइक्स को बदलने का काम हो रहा था. और इसके लिए चूहो में एसीई 1 कोशिकाएं बनाई गई थीं जो इंसानी कोशिकाओं जैसी होती हैं. इसका मतलब यह है कि जांच यह की जा रही थी कि इंसानी कोशिकाओं पर वायरस का क्या असर हो सकता है.”

वेड ने साफ लिखा है कि इस प्रोजेक्ट की खुलेतौर पर चर्चा नहीं होती है क्योंकि इस प्रोजेक्ट की फंडिंग कर रहा था नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी ऐंड इन्फैक्शियस डिजीजेज, जो अमेरिका के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ का ही विभाग है और जिसके मुखिया हैं डॉ फाउची.

यानी इस मसले मे जितना अंदर जाते जाएंगे यह उतना ही जटिल होता दिखता है.

वेड लिखते हैं, “असल में, शी जिंग ली एक ऐसा नोवल कोरोना वायरस बनाने की कोशिश कर रही थी जिसमें इंसानों को संक्रनित करने की काफी क्षमता थी. और इसके लिए वह ट्रायल्स में इंसानों को नहीं, बल्कि इंसानी कोशिकाओं वाले चूहों का इस्तेमाल कर रही थी. उनकी जांच में यह भी शामिल था कि क्या यह वायरस इन चूहों के श्वास नलिकाओं को संक्रमित कर सकता है या नहीं.”

इससे यह साफ है कि वुहान वायरस इंस्टीट्यूट में बड़े व्यवस्थित तरीके से नोवल चमेरा कोराना वायरस तैयार किए जा रहे थे. और वहां पर इस बात की जांच की जा रही थी कि यह इंसानी कोशिकाओं को किस तरह से संक्रमित कर सकते हैं.

हालांकि, अब भी यह अनसुलझा ही है कि आखिर कोविड 19 या सार्स 2 वायरस आया कहां से, और कैसे. यह अनसुलझा इसलिए भी है क्योंकि जो वैज्ञानिक इसे सुलझा सकते थे वह इसकी लीपापोती करने में लगे हैं. इस पहेली के कई कोण हैं, जिसमें एक तरफ पीटर दासज़ैक खड़े हैं तो दूसरी तरफ डॉ फाउची और तीसरी तरफ डब्ल्यूएचओ, जो साफ तौर पर चीन की रक्षा में खड़ा नजर आता है. हो सकता है यह अंतरराष्ट्रीय फंडिंग का मसला हो या टीके के साम्राज्यवाद का, यह भी हमें बाद में पता चलेगा. पर महामारी के 15 महीनों बाद भी इसके जन्मस्थान और तरीके को लेकर जिस तरह की अस्पष्टता, इस बात की संभावना कम ही है कि कुछ ज्यादा पता चल पाएगा.