90 साल के अनवर हुसैन, जिनमें अब भी बाकी है फिल्म निर्माण का जज्बा

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 10-06-2022
अनवर हुसैन कुछ मित्रों के साथ (बाएं से दूसरे)
अनवर हुसैन कुछ मित्रों के साथ (बाएं से दूसरे)

 

मुकुट शर्मा / गुवाहाटी

90 साल की उम्र में भी असम के जाने-माने फिल्म निर्देशकों में से एक अनवर हुसैन ने फिल्म बनाने का जोश और साहस नहीं खोया है. उनकी सरपत, तेजिमाला, श्री श्री मा कामाख्या और अन्य शानदार फिल्मों को राष्ट्रपति का योग्यता प्रमाणपत्र और दादा साहेब फाल्के अकादमी पुरस्कार मिला है.

महज 21 साल की उम्र में, हुसैन असम के सबसे कम उम्र के फिल्म निर्देशक बन गए, जिन्होंने ‘सरपत’ नामक एक उच्च गुणवत्ता वाली फिल्म का निर्माण किया है. आवाज-द वॉयस के साथ एक साक्षात्कार में इस अनुभवी निर्देशक ने खुलासा किया कि उनके हाथ में अभी भी कहानी है. बस, सरकार की मदद और समर्थन की जरूरत है.

अनवर हुसैन ने कहा, ‘‘9 जनवरी, 1983 को, मैं श्रीश्री माँ कामाख्या नामक निरुपम छडमा नामक एक फिल्म का निर्देशन कर रहा था. बंगाल की एक प्रसिद्ध लेखिका आशापूर्णा देवी, जो उस समय बोर्ड ऑफ फिल्म चांसेस के सदस्यों में से एक थीं, जब उन्होंने फिल्म देखी, तो वह अभिभूत हो गईं और उन्होंने इसे बंगाली में डब करने का फैसला किया. शक्तिपीठ मां कामाख्या की आध्यात्मिक चेतना और महानता को पूरे बंगाल में फैलाने के लिए, मैं श्रीश्री मां कामाख्या फिल्म का बंगाली में रीमेक बनाना चाहूंगा. सरकार की मदद से यह काम पूरा हो जाएगा.’’

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फिल्म में विजय शंकर, विद्या राव, मधुरिमा गोस्वामी (चौधरी), दिनेश दास, मिंती दास, अनिल दास, साधना देवी, निजरा भुइयां, निरुपमा देवी, टैंक शैविकिया, दीपिका बरुआ और अन्य कलाकार हैं. मिताली चौधरी ने फिल्म के बोल गाए, जिसे राजेश्वर बरडाला ने निर्देशित किया था. उनके द्वारा गाए गए गीत, जैसे ‘दयामयी हे मां’, ‘पुट्टी कियोनो अहिली’ ऐसे गीत थे, जो उस समय दर्शकों के दिल और दिमाग को छू गए थे. इसी तरह, एक अनुभवी निर्देशक को इस बात का पछतावा है कि 1979 की फिल्म अग्निकन्या तकनीकी कठिनाइयों के कारण रिलीज नहीं हुई थी. उन्होंने कहा कि इस संबंध में सरकार के सहयोग से फिल्म की रिलीज संभव होगी.

अनवर हुसैन कहते हैं, ‘‘अग्निकन्या के अधिकांश दृश्य ज्योति चित्रबन में शूट किए गए थे. फिल्म में बिक्रम शर्मा, प्रणमी शर्मा, अनुपमा देवी, अखिल डेका, मारी अनिल दास, डॉली गुप्ता, दिनेश गोस्वामी जैसे सितारे हैं. प्रभात शर्मा द्वारा निर्देशित और महानंदा मजीद के बरुआ संगीत द्वारा निर्देशित इस फिल्म में रिदीप दत्त, मिताली चौधरी और ताराली शर्मा हैं. लेकिन दुर्भाग्य से, एक दुष्चक्र ने फिल्म के साउंडट्रैक को बर्बाद कर दिया है और अग्निकन्या ज्योति अभी भी चित्रबन में फंसी हुई है.’’

उन्होंने दोहराया कि ‘अग्निन्याय’ से जुड़े लगभग 16 कलाकारों की मृत्यु हो गई. हालांकि फिल्म में नए शब्द, डबिंग आदि जोड़ने का विकल्प था. इस संबंध में असम सरकार के सहयोग की आवश्यकता होगी.

उल्लेखनीय है कि असमिया फिल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक और निर्माता अनवर हुसैन अब तक कुल छह असमिया फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं. उनकी तीसरी फिल्म, तेजिमाला ने सर्वश्रेष्ठ असमिया फिल्म के लिए राष्ट्रपति का योग्यता प्रमाणपत्र जीता. 26 दिसंबर, 1983 को रिलीज हुई तेजिमाला, लक्ष्मीनाथ बेजबरुवा की ‘बूढ़ी आयर साधु’ से रूपांतरित है. ज्योति प्रसाद अग्रवाल द्वारा ‘जयमती’ बनाने के लगभग एक दशक बाद, अनवर हुसैन ने साहित्यार्थी की कहानी पर आधारित दूसरी असमिया फिल्म ‘तेजीमाला’ बनाई.

फिल्म के निर्माण, पटकथा और निर्देशन के अलावा, हुसैन ने कला निर्देशन भी किया. फिल्म का संगीत राजेश्वर (बुलू) बरदलाई का था, गीत पार्वती प्रसाद बरुआ और हिरेन बरदलाई के थे. गाने कृष्णगोपाल और मैरी खातून ने गाए थे. ‘जयमती’ में इंदिरा बरुआ, अनुराधा रोहिणी बरुआ, वीना देवी, अब्दुल मजीद, भोला काकती और अन्य ने अभिनय किया.

गुवाहाटी के कुमारपाड़ा के रहने वाले हुसैन देवता के सरकारी ठेकेदार थे. देवता ने उन्हें शिलांग के सेंट एंथोनी कॉलेज में पढ़ने के लिए भेजा. देवता चाहते थे कि बेटा इंजीनियर बने. लेकिन हुसैन को बचपन से ही सिनेमा में दिलचस्पी रही है. इसलिए, उन्होंने फिल्म कला का अध्ययन करने के लिए, मुंबई में चेतन आनंद संस्थान, मोचन पिक्चर्स आर्ट अकादमी में दाखिला लिया. वहां पढ़ने के लिए असम लौटने से पहले, हुसैन ने मुंबई और कलकत्ता में सहायक निदेशक के रूप में काम करने का अनुभव प्राप्त किया. अपनी फिल्म बनाने के इरादे से असम लौटकर हुसैन ने 1955 में ‘सरपत’ नाम की फिल्म बनाई. उस समय वह केवल 21 वर्ष के थे. हुसैन देश के सबसे कम उम्र के निर्देशक माने जाते हैं. फिल्म 1958 में रिलीज हुई थी.

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दादा चाहेब फाल्के अकादमी पदक के साथ अनवर हुसैन 


एक पारिवारिक चित्र सरपत को दर्शकों ने खूब सराहा. इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के बावजूद फिल्म सुपरहिट रही. यह फिल्म असम में दीर्घाओं के अलावा गुवाहाटी में केल्विन गैलरी में 12 सप्ताह तक चली. संगीतमय ‘सरपत’ में लक्षहिरा दास, बीरेन दत्ता, ज्योतिर्मय काकती और गुणदा दास ने गाया. बतौर म्यूजिक डायरेक्टर मुकुल बरुआ की यह पहली फिल्म थी.