कबीर खान ने आवाज- द वॉयस से कहा, रणवीर सिंह ने कपिल की भूमिका के लिए कठिन ट्रेनिंग ली

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 2 Years ago
83 के निर्देशक कबीर खान
83 के निर्देशक कबीर खान

 

अजित राय

पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव की भूमिका निभाने के लिए अभिनेता रणबीर सिंह ने अपना सारा काम छोड़कर लंदन के लार्ड्स स्टेडियम में पांच महीने कठिन ट्रेनिंग ली. क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने के ऐतिहासिक क्षणों पर बनी फिल्म '83' के निर्देशक कबीर खान ने मिस्र के अल गूना फिल्म फेस्टिवल के दौरान एक खास मुलाकात में यह बात कही.

यह फिल्म दुनियाभर में इस साल क्रिसमस की पूर्व संध्या पर 24 दिसंबर को रिलीज हो रही है. गौरतलब है कि कबीर खान 5वें अल गूना फिल्म फेस्टिवल (मिस्र) के मुख्य प्रतियोगिता खंड की जूरी के सदस्य थे. काहिरा में ही फिल्मकार कबीर खान से आवाज- द वॉयस के लिए खास बातचीत की अजित राय ने.

सवालः इस फिल्म का ट्रीटमेंट आपकी पिछली फिल्मों से कैसे अलहदा है?

कबीर खानः यह फिल्म '83' 'न्यूयॉर्क', 'एक था टाईगर', 'बजरंगी भाईजान' जैसी मेरी पिछली ब्लॉकबस्टर फिल्मों से अलग है. यह फिल्म बालीवुड मेनस्ट्रीम सिनेमा में नए युग की शुरुआत करेगी. 1983 में हुए क्रिकेट वर्ल्ड कप के मैचों की वीडियो रिकार्डिंग का इस्तेमाल हम नहीं कर सकते थे क्योंकि वे फर्स्ट जनरेशन वीडियो थे. इसलिए हमें सबकुछ नए सिरे से रिक्रिएट करना पड़ा.

सवालः इस फिल्म के लिए किस खिलाड़ी की भूमिका के लिए अभिनेता कैसे चुने गए?

कबीर खानः सुनील गावस्कर की भूमिका के लिए अभिनेता का चुनाव सबसे ज्यादा मुश्किल था. कई महीने कोशिश करने के बाद इस रोल के लिए ताहिर हुसैन भसीन को चुना गया जिन्होंने नंदिता दास को फिल्म 'मंटो' में अपने बेहतरीन अभिनय से हमें प्रभावित किया था. इंडियन क्रिकेट टीम के बाकी सदस्यों की कास्टिंग में एक साल लग गए. दो हजार कलाकारों के ऑडिशन के बाद यह काम पूरा हुआ. 

सवालः क्रिकेट मैचों की शूटिंग कैसे की गई?

कबीर खानः लंदन के लार्ड्स स्टेडियम में छह महीने की अथक कोशिश के बाद हमें शूटिंग की इजाजत मिली. लार्ड्स के कई हिस्से पहली बार किसी फिल्म में दिखाई देंगे. मसलन लॉन्ग रूम, जहां से खिलाड़ी निकलकर स्टेडियम में आते जाते हैं. आज इंग्लैंड में नंबर वन खेल क्रिकेट नहीं फुटबॉल है. लार्ड्स वालों को लगा होगा कि इस फिल्म के बहाने दुनिया भर में एक बार फिर लॉर्ड्स स्टेडियम और क्रिकेट की चर्चा होगी. इसलिए उन्होंने फिल्म की शूटिंग में बहुत सहयोग किया.

सवालः इस विषय पर फिल्म बनाने का विचार कैसे आया?

कबीर खानः कभी-कभी फिल्म की कहानी खुद आपके पास पहुंच जाती है. सबसे पहले संजय पूरण सिंह चौहान ने इसे लिखा, फिर यह दक्षिण भारत के वासन बाला तक पहुंची. किसी कारण से यशराज फिल्म्स ने इसे बनाने से मना कर दिया, फिर फैंटम के पास गई और वहां से मेरे पास आई और रिलायंस ने पैसा लगाया. 

सवालः तो क्या आपकी भी दिलचस्पी हर भारतीय की तरह क्रिकेट में रही है?

कबीर खानः क्रिकेट मेरा सब्जेक्ट कभी नहीं रहा. जब यह फिल्म मेरे पास आई तो मैंने दो साल इस विषय पर रिसर्च किया. मैं इससे पहले कई डाक्यूमेंट्री बना चुका था. लेकिन 1983 के क्रिकेट वर्ल्ड कप के हर महत्वपूर्ण क्षण को दोबारा फिल्म में जीवंत करना एक बड़ी चुनौती थी. खिलाड़ियों के कपड़े, जूते, गेंद, बल्ले, बोलने और चलने के अंदाज से लेकर उनकी सोच में उतरना जोखिम भरा था. हमने अपने सहयोगियों से कहा कि हमें तथ्यों के साथ कोई छूट नहीं लेनी है. हर चीज वैसी ही चाहिए जैसी 1983 में थी. 

अजित राय के साथ कबीर खान


सवालः अभिनेताओं को क्रिकेटर बनाना मुश्किल रहा होगा. यहां लगान वाले गंवई क्रिकेटर नहीं चाहिए थे.

कबीर खानः कास्टिंग के बाद हमने सारी टीम और तब के कोच बलविंदर सिंह संधू के साथ धर्मशाला में दो हफ्ते की सघन वर्कशॉप की जिससे कलाकारों में एक टीम भावना आ जाए. हम सुबह पांच बजे एक बस में बैठकर प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम जाते थे और दिनभर साथ रहते थे, साथ ही लौटते थे. हम अपनी सारी तैयारी के साथ शूटिंग के लिए लंदन गए थे. 

सवालः ऐसी फिल्मों से क्या नया ट्रेंड सेट हो सकता है? क्योंकि जमाना तो बायोपिक का ही है.

कबीर खानः यह फिल्म बालीवुड मेनस्ट्रीम सिनेमा में मील का पत्थर साबित होगी और इससे नया दौर शुरू हो सकता है जो हिंदी सिनेमा को दुनिया भर में शोहरत दिलाए. भारत में क्रिकेट के साथ एक समस्या यह है कि कोई भी खड़ा होकर बताने लगेगा कि कपिल देव या सुनील गावस्कर को कैसे खेलना चाहिए, भले ही उसने जीवन में कभी बल्ला-गेंद छुआ तक नहीं हो. '83' की शूटिंग और एडिटिंग में हमें हर छोटी से छोटी चीज का ध्यान रखना पड़ा है. बहरहाल, बॉलीवुड में एक अच्छी बात यह हुई है कि इतिहास में फिल्म निर्माताओं की दिलचस्पी बढ़ी है. पहले ऐसी कहानियों को कोई हाथ नहीं लगाता था. मेरी अगली फिल्म इतिहास से जुड़ी हुई है. 

फिल्म 83 का पोस्टर


सवालः काहिरा का तजुर्बा कैसा रहा?

कबीर खानः पहली बार मैं 1995 में यहां के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक का इंटरव्यू करने पत्रकार सईद नकवी के साथ मिस्र की राजधानी काहिरा आया था. दूसरी बार 2009 में आया, जब मेरी फिल्म 'न्यूयॉर्क' को काहिरा अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह की ओपनिंग फिल्म बनाया गया था. मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरी फिल्म 'न्यूयॉर्क' की पायरेटेड कापी सारे अरब वर्ल्ड में छा गई थी. 

सवालः कबीर खान की निगाहों में कामयाबी का पैमाना क्या है?

कबीर खानः केवल पैसा या बॉक्स आफिस पर सफलता ही अच्छी फिल्मों का पैमाना नहीं है. ऐसी कई सफल फिल्में आप आधे घंटे भी नहीं देख सकते. हमें ऐसी अच्छी फिल्में बनानी चाहिए जो ज्यादा नहीं तो कम से कम अपनी लागत निकाल ले. निर्माता को थोड़ा मुनाफा तो चाहिए, तभी वह अगली फिल्म में पैसा लगाएगा.