नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भोजपुरी सिनेमा के बीच खास कड़ी हैं नजीर हुसैन

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 25-03-2021
नजीर हुसैन
नजीर हुसैन

 

- नजीर हुसैन अभिनेता ही नहीं, सच्चे राष्ट्रभक्त और आजाद हिंद फौज के सिपाही भी थे

साकिब सलीम

भोजपुरी सिनेमा की कहानी ‘गंगा मैय्या तोहे पियरी चढ़ायबो’ के साथ 1962 में शुरू हुई थी, जिसका सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के साथ एक दिलचस्प रिश्ता है. इस कहानी को जोड़ने वाली कड़ी नजीर हुसैन हैं, जिन्हें अक्सर भोजपुरी सिनेमा का पिता कहा जाता है.

नजीर हुसैन का जन्म 1922 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे गाजीपुर में हुआ था. अपने पिता साहबजादा खान के नक्शेकदम पर चलते हुए नजीर शुरू में रेलवे में फायरमैन के रूप में भर्ती हुए थे, लेकिन जल्द ही दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया और वे ब्रिटिश सेना में शामिल हो गए. 1943 में जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज या इंडियन नेशनल आर्मी (एनआईए) का गठन किया, तो नजीर एनआईए के रैंकों में शामिल हो गए.

आईएनए के एक सैनिक के रूप में नजीर ने कलात्मक और साहित्यिक दृष्टि से एक अक्लमंद सैनिक की तरह सैनिकों का संयोजन किया. इन सैनिकों ने अपना हौसला बुलंद रखने के लिए कविताएं और नाटक लिखे और उनका मंचन किया. 1945 में, उन्होंने नेताजी की जयंती समारोह में मंचन के लिए एक सैनिक के तौर पर एक नाटक ‘बालिदान’ लिखा और उसे निर्देशित किया. नाटक का मंचन नेताजी के सामने किया गया, जिसमें सैनिकों ने अभिनय किया. नजीर अक्सर उस समय को याद किया करते थे कि उस दिन उन्हें एक अभिनेता, लेखक और निर्देशक के तौर पर सबसे बड़ी पहचान मिली, जब नाटक देखने के बाद नेताजी के आंसू बह निकले. नजीर का मनोबल को बढ़ाने वाले इस नाटक के लिए आजाद हिंद फौज का स्वर्ण पदक प्रदान गया.

युद्ध के बाद एनआई के सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया और जिनमें नजीर भी शामिल थे. 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद एनआईए के सैनिकों को जेलों से बाहर निकाला गया, लेकिन भारत सरकार ने उन्हें सेना में नौकरी से वंचित कर दिया. तब नजीर और आईएनए के उनके कई साथियों ने देश भर में नाटकों का मंचन शुरू कर दिया. ये नाटक उनके आईएनए के दिनों में लिखे गए थे और जिनमें नेताजी और आईएनए सैनिकों की प्रशंसा की गई थी. फिल्मकार बीएन सरकार ने ऐसा ही एक नाटक ‘सिपाही का सपना’ देख लिया. उससे प्रभावित होकर सरकार ने उन्हें कलकत्ता (अब कोलकाता) में न्यू थियेटर्स में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया.

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नजीर हुसैन एक फिल्मी दृश्य में ललिता पवार के साथ 

तब नजीर फिल्म उद्योग के साथ एक लंबी पारी शुरू करने के लिए कलकत्ता चले गए. बिमल रॉय ने उन्हें सहायक के रूप में लिया. नजीर ने 1950 में आजाद हिंद फौज पर आधारित पहली फिल्म ‘पहला अदमी’ की कहानी और संवाद लिखे. फिल्म का निर्देशन बिमल रॉय ने किया था और नजीर ने फिल्म में एक डॉक्टर की भूमिका निभाई थी. जल्दी ही नजीर ने बंबई सिनेमा में चरित्र भूमिकाएं अदा करनी शुरू कर दीं.

1960 के आस-पास भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक समारोह आयोजित किया, जिसमें नजीर उपस्थित थे. बाबू राजेंद्र प्रसाद ने उनसे भोजपुरी में बात करना शुरू कर दिया, यह जानकर कि नजीर गाजीपुर के हैं. समारोह में प्रसाद ने उनसे पूछा कि भोजपुरी भाषा में फिल्में क्यों नहीं बनाई गईं. अब आयडिया मिल गया. और नजीर ने एक फिल्म की पटकथा लिखी, जिसे अब पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ायबो के तौर पर जाना जाता है. फिल्म का निर्देशन कुंदन कुमार ने किया और उसमें खुद नजीर के साथ कुमकुम और हेलेन जैसे जाने-माने कलाकार थे. प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने गीत लिखे, चित्रगुप्त ने संगीत दिया और रफी, लता और कल्याणपुर ने गाने गाए. इस तरह भोजपुरी सिनेमा शुरू हो गया.

नजीर हुसैन ने हमार संसार, बलम परदेसिया और रूस गइले सइयां हमार जैसी फिल्मों का निर्देशन और निर्माण किया. इस प्रकार उन्होंने भोजपुरी सिनेमा की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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नजीर हुसैन एक फिल्मी दृश्य में 

 
नजीर हुसैन एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने राष्ट्र के लिए लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संस्कृति को जीवित रखने के लिए उस समय अथक परिश्रम किया, जब लोग पश्चिमी संस्कृति का कुछ भी अपनाने की दौड़ में शामिल हो चुके थे.