अपनी सिनेमाई शख्सियत के साथ, शबाना आजमी बॉलीवुड की उन कुछेक संजीदा बौद्धिकों में से एक हैं जिनका बात को हर कोई गौर से सुनता है. अब, जबकि देश में कोरोना का संकट अपने सबसे खतरनाक स्तर पर है, उनसे कोरोना, और विभिन्न मुद्दों पर बात की आवाज- द वॉयस के प्रधान संपादक आतिर खान ने. दूसरा हिस्साः
सवालः हाल में, आप निजी तौर पर बहुत मुश्किल दौर से गुजरीं. आपका एक बड़ा एक्सीडेंट हुआ और अब चारों तरफ कोरोना का डर है. इस दौर में आपने भी काफी इंट्रोस्पेक्शन किया होगा. जिंदगी का कुछ फलसफा खोजने की कोशिश की होगी.
शबाना आजमीः मुझे एक बात का तो ब़ड़ी शिद्दत से एहसास हुआ कि हम जिन चीजों को अपने पास रखना चाहते हैं कि हमारे पास एक नहीं दस हैंडबैग्स हों, हजार कॉस्ट्यूम्स हों, इतने सारे जूते हो... मतलब जो भौतिक चीजें हैं, जिसके पीछे हम लगे रहते हैं उन सबकी मेरे लिए कोई कीमत नहीं रही. मुझे ऐसा लगता है कि अभी का यह लम्हा आप कैसे गुजार रहे हैं, किसतरह से आप दूसरों के काम आ रहे हैं, वही कीमती है. क्या आपमें यह क्षमता है कि आप जरूरतमंदो को दें, और इतना दें कि आपको तकलीफ हो उससे. सिर्फ इतना ही नहीं कि चलो थोड़ा-बहुत दे देते हैं. बल्कि इतना दें कि आपको तकलीफ पहुंचे. आप अपने लोगों, अपने देश के लिए काम करें. मुझे इस बात का सबस ज्यादा अहसास हुआ है कि यह जो पल है, वह दोबारा नहीं आएगा. आप इस पल की पूरी तरह से इज्जत करें. और इसके साथ आप पूरी सचाई के साथ पेश आएँ. हमलोग क्या करते हैं कि या तो अपने माज़ी के बारे मे सोचते रहते हैं या फिर अपने भविष्य के बारे में सोचते रहते हैं, ये जो वक्त है हम उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचते. तो इस वक्त को पूरी तरह से जियो, आपमें जितनी हमदर्दी है, जितना आपमें प्यार है और उसे जिन लोगों के साथ बांट सकते हैं, बांटें.
मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था, तो चमत्कार ही था कि मेरी उसमें डेथ नहीं हुई, क्योंकि मेरी खोपड़ी पर चोट लगी थी और स्कल में एक बहुत पतली-सी झिल्ली (मेंब्रेन) होती है, बस वहां आकर वह रुक गया. अगर उस झिल्ली को चोट लग जाती तो शायद में बिस्तर पर पड़ी होती. तो यह तो मेरे साथ हुआ है. जाहिर है कि तब और अब, मुझे इसकी वजह से बहुत बदलाव सा हुआ.
सवालः लिव इन द मोमेंट तो फिलॉसफी है वही सबसे अच्छी है. आपका इतना शानदार करियर रहा है क्या आप मानती हैं कि आपने अपनी पूरी क्षमता से काम किया है और आपके आगे की क्या योजनाएं हैं?
शबाना आजमीः इस वक्त मेरे साथ बहुत अच्छा हुआ है कि मैं मुस्तकिल सितंबर से काम करती आ रही हूं. इस महामारी में मैंने बुडापेस्ट में भी शूटिंग की. मैंने शेखर कपूर की जो अंग्रेजी फिल्म है व्हॉट्स लव गॉट टू डू विद इट उसमें भी हमने पूरी फिल्म कंप्लीट कर ली. वह भी ऐसे वक्त पर जब सब कह रहे थे कि आप कैसे लंदन जा सकती हैं इस पैनडेमिक में, आपको तो वापस आना होगा. पर हमने किया. उसके बाद मैं बुडापेस्ट वापस गई और बुडापेस्ट में जब मेरा काम खत्म हो गया जो स्पीलबर्ग का प्रोजेक्ट है, इसके बाद मेरा एक और प्रोजेक्ट है जिसकी सिर्फ एक दिन की शूटिंग बाकी है.
अब मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मैं इस वक्त में हूं. क्योंकि इस वक्त मे कंटेंट के ऊपर बहुत ध्यान दिया जा रहा है और मुख्तलिफ किस्म के सब्जेक्ट्स को चुना जा रहा है और मुख्तलिफ किस्म के रोल्स मुझे मिल रहे हैं. मैंने शायद कभी यह सोचा भी नहीं था कि मुझे इतना सारा काम इस वक्त में मुझे मिलेगा और मैं बेहद शुक्रगुजार हूं राइटर्स का, उन डायरेक्टर्स का, जो मुख्तलिफ किस्म के काम कर रहे हैं. मैंने यह भी जाना कि इस जमाने में, मैं अक्तूबर से लेकर, फरवरी... नहीं फरवरी नहीं, मार्च तक मुल्क से बाहर रही और मैंने खुद को पूरी तरह अपने काम में इन्वॉल्व किया. इसलिए ये जो मेंटल परेशानियां हो रही हैं. वह मैंने महसूस नहीं की. इसलिए काम जो है इंसान की सबसे बड़ी ताकत होती है और आप उसको पूरी सचाई के साथ करें.
सवालः कुछ महीनों पहले, हमने नसीर साहब से बातचीत की थी. वह भी लॉकडाउन में फंसे थे और उन्होंने इस वक्त का इस्तेमाल शेक्सपियर को पढ़ने, उर्दू और बांसुरी सीखने में किया. आपने उस वक्त का इस्तेमाल कैसे किया?
शबाना आजमीः जब मैं बुडापेस्ट में थी तो आखिरी दौरे में मैं किसी के साथ नहीं गई. जानबूझकर मैंने ऐसा किया. क्योंकि मैं जहां भी जाती हूं मेरे एतराफ लोग होते हैं जो मेरे कम्फर्ट के लिए काम करते हैं. देखते हैं कि इसका क्या होता है. तो मैंने खाना पकाना शुरू किया. मेरे लिए यह बिल्कुल अलग तजुर्बा था, क्योंकि मैंने कभी किया नहीं था. और क्या बताऊं (हंसती है) मैं उसमें बुरी तरह फ्लॉप रही. मैं यूट्यूब देखती थी और उसके साथ कोशिश करती थी, मैं जो भी चीज बनाती थी उसका जायका तो अच्छा था, लेकिन उसकी शकल खिचड़ी जैसी होती थी. (खिलखिलाकर हंसती हैं)
सवालः तो क्या-क्या बनाया आपने...
शबाना आजमीः मैंने मटर पुलाव बनाया, जो कि बुरी नहीं थी. फिर सब्जियां बनाईं, चिकन... इन सबका मैं कह रहीं हूं, जायका बुरा नहीं था... और ओ गॉड (माथे पर हाथ मारते हुए) एक दिन मैंने एक दाल बनाई, अब पैकेट पर दाल का नाम हंगेरियन में लिखा था. तो मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि यह चने की दाल है या मसूर की दाल, क्योंकि नाम तो हंगेरियन में लिखे थे. वहां उस वक्त मेरे पास प्रेशर कुकर नहीं था तो एकाध घंटे उसको भिंगोने के बाद पकाना शुरू किया. दाल थी कि गल ही नहीं रही थी. तो मैंने फिर उसमे ढेर सारे मसाले डाल दिए, समझिए सब कुछ डाल दिया. लेकिन जो दाल थी वो गलने के लिए तैयार ही नहीं. तो फिर यूनिट के जो शेफ थे मिस्लीन स्टार्क, जो फिल्म में भी साथ में काम कर रहे हैं. तो फिर मैंने उनको दिखाई, तो उन्होंने कहा कि चने की दाल है और अगर आपके पास कुकर ही नहीं है, बरतन ही नहीं है तो वहां जो ठंड है, उसके लिहाज आपको एक दिन पूरा गलाना पड़ेगा. उसके बाद वह खाने लायक होगा. लेकिन जाते-जाते मैं दाल बनाना सीख गई और ठीक-ठाक बनाने लगी (हंसती हैं)
सवालः आप घर कैसे मैनेज कर रही हैं, जावेद साहब को कैसे मैनेज कर रही हैं आप?
शबाना आजमीः जावेद साहब को मैनेज करना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है क्योंकि वह अपना खयाल खुद ही रखते हैं. जाहिर है, मैं घर से इतने लंबे-लंबे अरसे तक बाहर जाती हूं तो अगर वह अपना खयाल खुद नहीं रखेंगे तो बहुत मुश्किल हो जाएगी. लेकिन हम अपने खंडाला के घर में आ गए हैं जो मुंबई से दो घंटा दूर है. यहां पोजीशन थोड़ी बेहतर है, तो युजूअल चीजें करने को मिलता है. मसलन, बहुत वक्त हुए किताब पढ़ने को नहीं मिला था. तो पढ़ रही हूं. जो बाकी का मेरा काम रुका हुआ है, स्क्रिप्ट्स पढ़ रही हूं. जावेद साहब अपनी स्क्रिप्ट्स कर रहे हैं. तो ठीक-ठाक गुजारा चल रहा है.
सवालः फिल्म उद्योग पर बहुत बुरा असर हुआ है. लोग कैसे मैनेज कर रहे हैं?
शबाना आजमीः स्टार्स के लिए तो कोई मुश्किल है नहीं, मुश्किल तो है दिहाड़ी पर काम करने वालो के लिए. तो हमारे एसोशिएसन्स हैं, वह हमारी मदद कर सकते हैं. वह कर भी रहे हैं. पिछले साल तो स्थिति बहुत खराब थी, मुझे लगता है कि इस बार सरकार ने भी, और मैं जरूर कहना चाहूंगी कि उद्धव ठाकरे के लिए, कि वह बहुत कोशिश कर रहे हैं. उनके साथ लगातार बैडलक हो रहा है. इसके बावजूद वह बहुत कोशिश कर रहे हैं. लॉकडाउन लगाने में भी उन्होंने बहुत वक्त लगाया. इसे लगाने में कि देखिए यह आने वाला है. यह बात कहते रहे. फिर उन्होंने जो दिहाड़ी मजदूर हैं उनके खाते मे सीधे पैसे डालने का काम किया है. तो इस बार लगता है कि महाराष्ट्र सरकार ने ज्यादा जिम्मेदारी से काम किया है. उन्होंने पिछले साल से सीख ली है. पर अभी भी स्थिति बहुत गंभीर है.
सवालः कोशिश सभी कर रहे हैं, लेकिन यह आपदा ही ऐसी है कि इसका अनुमान लगाना मुश्किल है. एक बात और शबाना जी, आपके जो दोस्त हैं शुभचिंतक हैं, क्या उनसे आपकी रोजमर्रा बात होती है. खैरियत कैसे लेती हैं वीडियो कॉल्स से?
शबाना आजमीः जी बिल्कुल, वीडियो कॉल्स पर दोस्तों से भी लगातार बात होती रहती है और रिश्तेदारों और स्टाफ भी लगातार बात होती रहती है. ये जो वीडियो कॉल्स है उसके जरिए हम एक दूसरे को देख सकते है तो तनाव थोड़ा कम होता है.
सवालः बहुत सारे लोग वैक्सीन लगाने से हिचकिचा रहे हैं.
शबाना आजमीः मैं हाथ जोड़कर लोगों से गुजारिश करती हूं कि प्लीज वैक्सीन से मत घबराइए. मैंने अपने दोनों वैक्सीन्स डोज ले लिए हैं. वैक्सीन कोई जादू की पुड़िया नहीं है. लेकिन इस वक्त जो हमारे पास मौजूद है उसमें सबसे ज्यादा वैक्सीन ही एक ऐसी चीज है. जो आपको संभाल सकता है, इसके बारे में लोग बहुत ही उल्टी-सीधी बातें कर रहे हैं. लेकिन अफवाहों पर मत जाइए, वैक्सीन जरूर लगवाइए. अब तो महाराष्ट्र सरकार 18 साल से अधिक उम्र के हर व्यक्ति को वैक्सीन देने वाली है. तो वैक्सीन लगवाइए और कोविड प्रोटोकॉल का पालन करिए. मास्क पहनिए, जब आप घर पर हैं, जब आप परिवार के बीच हैं, तब भी अगर आप सोशल डिस्टेंस मेंटेन नहीं कर सकते हैं, तो खुदा के वास्ते आप मास्क पहनिए. और अपने हाथ बराबर धोते रहिए. और जहां हाथ नहीं धो सकते वहां सैनिटाइजर का यूज करिए.