हर किरदार को जिया इन ब्लैक एंड व्हाइट मुस्लिम अभिनेत्रियों ने

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] • 3 Years ago
नरगिस
नरगिस

 


  • समाज के बंधनों को तोड़ फिल्मों में जलवा दिखाया
  • इन सिने तारिकाओं के बिना अधूरा हैं बॉलीवुड इतिहास
  • धर्मनिरपेक्ष बॉलीवुड की मुस्लिम अभिनेत्रियों को दर्शकों ने सिर-आंखों पर बिठाया

 

गौस सिवानी / नई दिल्ली

बॉलीवुड संस्कृति हमेशा से धर्मनिरपेक्ष रही है. यही कारण है कि हिंदुओं ने यहां मुसलमानों को नाम दिए और हिंदू नामों वाले मुस्लिम कलाकारों ने अपनी कला का हुनर दिखाया. बॉलीवुड शुरू से ही कला की सराहना करता रहा है, जिसके कारण बड़ी संख्या में मुस्लिम अभिनेत्रियों ने यहां अपने लिए जगह बनाई है. ब्लैक एंड व्हाइट युग में प्रसिद्धि पाने वाली नायिकाओं में मुस्लिम परिवारों की कई तारिकाएं थीं. यहां कुछ ऐसी सिने हस्तियों का जायजा लिया गया है, जिनके बिना भारतीय फिल्मी जगत का इतिहास पूरा नहीं हो सकता.

नरगिस

नरगिस श्वेत-श्याम युग का एक चमकता हुआ नाम हैं, जो फिल्मों में अपने नाम की तरह ही खुशबू फैलाती रहीं. उनका जन्म 1 जून, 1926 को कोलकाता में हुआ था और 3 मई, 1961 को मुंबई में उनका निधन हो गया. उनका असली नाम फातिमा राशिद था, लेकिन उन्होंने फिल्मों के लिए नरगिस नाम चुना. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बाल कलाकार के रूप में की थी, लेकिन वे बड़ी ऊंचाइयों तक पहुंचीं. उन्होंने बड़ी फिल्मों में अभिनय का सार दिखाया, जिसमें ‘मदर इंडिया’ को एक मील का पत्थर माना जाता है. उन्होंने अभिनेता सुनील दत्त से शादी की थी, जिन्होंने ‘मदर इंडिया’ में उनके बेटे की भूमिका निभाई थी. नरगिस ने अपने समय के कुछ सबसे बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया है, जिनमें दिलीप कुमार और राज कपूर शामिल हैं. उनकी प्रमुख फिल्में नाइट एंड डे, यादें, काला बाजार, लाजवंती, परदेसी, श्री 420, आवारा, बरसात आदि हैं.

सुरैया

वेलवेट वॉयस और ब्यूटी क्वीन सुरैया ने ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में हलचल मचा दी थी. सिनेमा हॉल में उनके नाम से भीड़ लगा करती थी. सुरैया का जन्म 15जून, 1929को गुजरांवाला (पंजाब) में हुआ था और उन्होंने कम उम्र में ही अभिनय करना शुरू कर दिया था. 31 जनवरी, 2007 को मुंबई में उनका निधन हो गया, लेकिन दशकों पहले फिल्मों से सेवानिवृत्त हो गईं थीं. सुरैया 50 और 60 के दशक में हिंदी सिनेमा का बड़ा नाम थीं. 1941 में महज 12 साल की उम्र में उन्होंने फिल्म ‘ताज महल’ पर काम करना शुरू किया. 1942 में उन्होंने फिल्म ‘शारदा‘ के लिए अपना पहला गीत गाया. तब सुरैया और देव आनंद के बीच प्रेम की अफवाहें आम हो गईं थीं, लेकिन वे शादी नहीं कर पाए और सुरैया ने अपना पूरा जीवन अकेले बिताया.

बेगम पारा

40 और 50 के दशक में फिल्मी जगत बहुत सभ्य था. अभिनेत्रियां अपने पहनावे और चरित्र के मामले में बहुत संवेदनशील थीं, लेकिन उसी समय, एक बहुत ही बोल्ड अभिनेत्री पर्दे पर दिखाई दीं, जिन्होंने बॉलीवुड में हलचल मचा दी. उसका नाम बेगम पारा था. सिनेमा के इतिहास में यह एक अनोखी शुरुआत थी. इस ग्लैमरस बॉलीवुड अभिनेत्री ने 1940-50 के बीच कई फिल्मों में अभिनय किया और उसके बाद भी अभिनय जारी रखा. बेगम पारा एक पंजाबी परिवार से थीं और उनके बचपन का नाम पारा हक था. उनका परिवार अलीगढ़ में रहता था और उनके पिता राजस्थान में बीकानेर के मुख्य न्यायाधीश थे. पारा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की. बेगम पारा को 1944 में फिल्म ‘चांद’में पहला ब्रेक मिला. उस समय पारा को एक महीने में 1500 रुपये मिलते थे. फिर उन्होंने 1945 में अपनी भाभी के साथ एक फिल्म बनाई, जिसका नाम था ‘छमिया’. फिल्म सुपरहिट रही और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी यादगार फिल्मों में सोहनी महिवाल, जंजीर, नील कमल, मेहंदी, मेहरबानी, सुहागरात, हनीमून और दया शामिल हैं. उनकी शादी दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर खान से हुई थी. उनकी आखिरी फिल्म 2007में सांवरिया थी, जिसमें उन्होंने सोनम कपूर की दादी की भूमिका निभाई थी. 2008में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. अभिनेता अयूब खान उनके बेटे हैं.

मुनव्वर सुल्ताना

मुनव्वर सुल्ताना 40 और 50 के दशक में एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं. उनका जन्म 8नवंबर, 1924 को लाहौर में एक रूढ़िवादी पंजाबी मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता एक रेडियो उद्घोषक थे. मुनव्वर सुल्ताना एक डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन जब उन्हें दलसुख पंचोली की फिल्म ‘खजांची’ (1941) में एक छोटी सी भूमिका की पेशकश की गई, तो उन्होंने इस भूमिका को स्वीकार कर लिया. उन्होंने कुछ समय के लिए अपना स्क्रीन नाम ‘आशा’ भी रखा. 1945 में, निर्देशक मजहर खान बॉम्बे आए और उन्हें अभिनेता मोतीलाल के साथ अपनी फिल्म ‘पहली नजर’ (1945) में कास्ट किया. इस फिल्म में,गायक मुकेश ने पहली बार सहगल की शैली में गाया था. 1947में रिलीज हुई फिल्म ‘डर’ में उमा देवी (टुन-टुन) ने ‘अफसाना लिख रही हूं’ गाना गाया, जिसे मुनव्वर सुल्ताना पर फिल्माया गया था. यह एक हिट फिल्म थी, जिसके बाद उन्होंने कई फिल्में साइन कीं. 1949 उनके लिए सबसे व्यस्त वर्ष था. इस वर्ष उनकी सात फिल्में रिलीज हुईं थीं. 1950 की फिल्म बेबीलोन में वह दिलीप कुमार और नरगिस के साथ थीं. उन्होंने अपने पति शरीफ अली की आकस्मिक मृत्यु के बाद 1966 में अभिनय छोड़ दिया. उनके चार बेटे और तीन बेटियां थीं. सुल्ताना का निधन 15 सितंबर, 2007 को मुंबई में हुआ था.

निगार सुल्ताना

आज के फिल्मी दर्शक अभिनेत्री निगार सुल्ताना के नाम से भले ही परिचित हों या न हों, लेकिन वे फिल्म ‘मुगले आजम’ की ‘बहार बेगम’ से जरूर परिचित होंगे. उन्होंने अपने समय की कई फिल्मों में काम किया, लेकिन मुगले आजम के साथ उनका नाम भी अमर हो गया. 21 जून 1932 को जन्मीं निगार सुल्ताना को राज कपूर द्वारा खोजा गया था और वे उनकी कई फिल्मों में दिखाई दीं. उनकी प्रसिद्ध फिल्में रंगभूमि, बेला, शिकायत, अब, मिट्टी के खिलौने, आग, पतंगा, गोल्डन डे, बाजार, शीश महल, स्पोर्ट्स, फूल माला, दमन, आनंद भवन, रिश्ता, मिर्जा गालिब, मस्ताना, मेरे साथी, मेरे दोस्त आदि हैं. अभिनेत्री हिना कौसर निगार सुल्ताना की बेटी हैं. निगार सुल्ताना का वर्ष 2000 में मुंबई में निधन हो गया.