जाहिद खान
अब्बास के लिए सिनेमा समाज के प्रति एक कटिबद्धता थी और इस लोकप्रिय माध्यम से उन्होंने समाज को काफी कुछ देने की कोशिश की. वे सिनेमा को बहुविधा कला मानते थे, जो मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वास्तविकता के सहारे लोगों में वास्तविक बदलाव की आकांक्षा को जन्म दे सकती है.
मशहूर निर्माता-निर्देशक राज कपूर के लिए ख़्वाजा अहमद अब्बास ने जितनी भी फिल्में लिखी, उन सभी में हमें एक मजबूत सामाजिक मुद्दा मिलता है. चाहे यह ‘आवारा’ हो, ‘जागते रहो’ (1956), या फिर ‘श्री 420’.
पैंतीस वर्षों के अपने फिल्मी करियर में अब्बास ने तेरह फिल्मों का निर्माण किया. लगभग चालीस फिल्मों की कहानी और पटकथाएं लिखीं. अब्बास की ज्यादातर फिल्में सामाजिक व राष्ट्रीय चेतना की महान दस्तावेज है. उनके बिना हिंदी फिल्मों में नेहरू के दौर और रूसी लाल टोपी का तसव्वुर नहीं किया जा सकता.
इप्टा द्वारा साल 1946 में बनाई गई पहली फिल्म ‘धरती के लाल’ ख़्वाजा अहमद अब्बास ने ही निर्देशित की थी. बंगाल के अकाल पर बनी यह फिल्म कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में समीक्षकों द्वारा सराही गई. हिंदी फिल्मों के इतिहास में ‘धरती के लाल’ ऐसी फिल्म थी, जिसमें देश की मेहनतकश अवाम को पहली बार केन्द्रीय हैसियत में पेश किया गया है. पूरे सोवियत यूनियन में यह फिल्म दिखाई गई और कई देशों ने अपनी फिल्म लाइब्रेरियों में इसे स्थान दिया है.
ख़्वाजा अहमद अब्बास फिल्मों में पार्ट-टाईम पब्लिसिस्ट के रूप में आए थे, लेकिन बाद में वे पूरी तरह से इसमें रम गए. साल 1936 से उनका फिल्मों में आगाज़ हुआ. सबसे पहले वे हिमांशु राय और देविका रानी की प्रॉडक्शन कम्पनी बॉम्बे टॉकीज से जुड़े. आगे चलकर साल 1941 में उन्होंने अपनी पहली फिल्म पटकथा ‘नया संसार’ भी इसी कंपनी के लिए लिखी.
साल 1951 में उन्होंने ‘नया संसार’ नाम से अपनी खुद की फिल्म कंपनी खोल ली. ‘नया संसार’ के बैनर पर उन्होंने कई उद्दश्यपूर्ण और सार्थक फिल्में बनाईं. मसलन फिल्म ‘राही’ (1953), मशहूर अंग्रेजी लेखक मुल्क़ राज आनंद की एक कहानी पर आधारित थी. जिसमें चाय के बागानों में काम करने वाले श्रमिकों की दुर्दशा को दर्शाया गया था.
मशहूर निर्देशक वी. शांताराम की चर्चित फिल्म ‘डॉ. कोटनिस की अमर कहानी’ अब्बास के अंग्रेजी उपन्यास ‘एंड वन डिड नॉट कम बेक’ पर आधारित है. ‘अनहोनी’ (1952) सामाजिक विषय पर एक विचारोत्तेजक फिल्म थी. फिल्म ‘शहर और सपना’ (1963) में फुटपाथ पर जीवन गुज़ारने वाले लोगों की समस्याओं का वर्णन है, तो गोवा की आज़ादी पर आधारित ‘सात हिंदुस्तानी’ भी उनकी एक उल्लेखनीय फिल्म है.