साक्षी और शिल्पा/ नई दिल्ली
इस शिक्षक दिवस पर आइए जानते हैं, देश की उन हस्तियों के बारे में जिन्होंने देश में शिक्षा के प्रसार-प्रचार में खासा योगदान दिया है.
डॉ. राधाकृष्णन
5 सितंबर को महान शिक्षाविद और भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था. उन्हीं की याद में शिक्षक दिवस मनाया जाता है. उनका मानना था की शिक्षक का दिमाग देश में सबसे बेहतर होता है. डॉ. राधाकृष्णन बहुत अच्छे शिक्षक और दार्शनिक थे.
हम सबको पता है कि शिक्षा दिवस कब,क्यों और कैसे मनाया जाता है लेकिन डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन पर ही क्यों शिक्षा दिवस मनाया जाता है.
एक बार उनके कुछ विद्यार्थी ने उनसे कहा कि वह उनके जन्मदिन को सेलिब्रेट करना चाहते हैं तब उन्होंने कहा था कि, "मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाए अगर मेरा जन्मदिवस टीचर्स डे के रूप में मनाया जाए तो मुझे गर्व महसूस होगा". इसके बाद से ही 5 सितंबर को डॉ. राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था. यूरोप और अमेरिका से भारत लौटे तो यहां के विभिन्न विश्वविद्यालयों ने उन्हें सम्मान उपाधियां प्रदान की थी.
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद
देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने शिक्षा और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए देने के लिए कई संस्थानों की स्थापना में अपना योगदान दिया था. मौलाना आजाद ने 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, लड़कियों की शिक्षा जैसे सुधारो की सिफारिश की थी.
उन्होंने ग्यारह वर्षों तक राष्ट्र की शिक्षा नीति का मार्गदर्शन किया. मौलाना आज़ाद को ही 'भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान' यानी 'आइआइटी' और 'विश्वविद्यालय अनुदान आयोग'(यूजीसी)की स्थापना का श्रेय जाता है. उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की.
1953 में संगीत नाटक अकादमी, 1954 में साहित्य अकादमी और उसी साल ललितकला अकादमी की स्थापना भी की.
केंद्रीय सलाहकार शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होने पर सरकार से केंद्र और राज्यों दोनों के अतिरिक्त विश्वविद्यालयों में सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा, कन्याओं की शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण, कृषि शिक्षा और तकनीकी शिक्षा जैसे सुधारों की वकालत की.
शिक्षा के साथ-साथ उन्होंने संस्कृति को विकसित करने के लिए संगीत नाटक एकेडमी, साहित्य एकेडमी और ललित कला एकेडमी जैसे कई संस्थानों की स्थापना की थी. अबुल कलाम आजाद लीडर के साथ साथ पत्रकार और लेखक भी थे. उन्होंने 1912 में एक अखबार निकालना शुरू किया, जिसका नाम था ‘अल हिलाल’. इस अखबार के माध्यम से वह हिंदू मुस्लिम की एकता को बढ़ावा देते थे और साथ ही ब्रिटिश शासन पर प्रहार भी किया करते थे.
उन्होंने कई किताबें भी लिखी जिनमें उन्होंने ब्रिटिश शासन का विरोध किया और भारत की संस्कृति और शिक्षा को आगे बढ़ाया.
जब खिलाफत आंदोलन छेड़ा गया तो उसमे अबुल कलाम आजाद ने मुख्य भूमिका निभाई और महात्मा गांधी उनको ‘ज्ञान सम्राट’कहा करते थे.
मौलाना सैयद अबुल कलाम आजाद को पूरी दुनिया मौलाना आजाद नाम से जानती है. वह भारतीय मुस्लिम विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता में से एक थे. मुफ्त प्राथमिक शिक्षा उनका मुख्य उद्देश्य था.
अबुल कलाम ने अंग्रेजी के महत्व को समझा तो सही लेकिन फिर भी वह शिक्षा को हिंदी में प्रदान करने के पक्ष में थे.
11 नवंबर को देश में नेशनल एजुकेशन डे यानी राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के तौर पर मनाया जाता है. यह देश के उस बड़ी हस्ती को सम्मान है जिसने आजादी की लड़ाई में बढ़कर हिस्सा लिया, हिंदू मुस्लिम एकता की नींव रखी, शिक्षा को बढ़ावा दिया और साथ ही देश को आईआईटी, आईआईएम और यूजीसी जैसे संस्थापन दिए.
हकीम अब्दुल हमीद
हकीम अब्दुल हमीद दूसरो की हितो में खड़े रहने वाले, सिद्धांतवादी और बुद्धिमान इंसान थे. उनका उद्देश्य शिक्षा, सेवाओं और स्वास्थ्य देखभाल के विकास के माध्यम से समाज में खुशी और विकास लाना था. उन्होंने हमदर्द प्रयोगशालाओं के फंड से कई संस्थानों की स्थापना की.
उनके स्थापित किए संस्थानों में हमदर्द, हमदर्द स्टडी स्कूल, हमदर्द पब्लिक स्कूल, हमदर्द इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टोरिक रिसर्च, गालिब एकेडमी आदि शामिल है. 1963 में हकीम अब्दुल हमीद और उनके मुस्लिम मित्रो और सहयोगियों ने इस्लामिक संस्कृति और सभ्यता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय इस्लामी अध्ययन संस्थान की स्थापना की थी.
महमूद अल हसन
महमूद अल हसन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक रह चुके है. इन्होने जामिया मिल्लिया की नींव रखी है. इनके साथ कई महान लोगो का योगदान है जैसे अबुल कलाम आजाद, मोहम्मद अली जौहर, मुख्तार अहमद अंसारी, हकीम अजमल खान और मोहमद मुजीब आदि.
महमूद हसन देवबंदी मुस्लिम छात्रों को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने में उत्साहित थे. हसन ने भारत के भीतर और बाहर दोनों ओर से ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांति शुरू करने के प्रयासों का आयोजन किया.
महमूद अल हसन कोशिशों ने उन्हें मुसलमानों, धार्मिक और राजनीतिक में भारतीयों की सराहना मिली. वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बन गए और उन्हें केंद्रीय द्वारा "शेख अल हिंद" का खिताब दिया गया.