विभिन्न धर्मों का अध्ययन मुस्लिम परंपरा का हिस्सा हैः प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 2 Years ago
  प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी
प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी

 

आवाज द वाॅयस /अलीगढ़
 
मदरसों में हिंदी भाषा और भारतीय धर्म के पाठ्यक्रम पढ़ाने की पहल के लिए जमीयत-उल-हिदाया बधाई का पात्र है. यह पाठ्यक्रम  अंतरधार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देगा. पाठ्यक्रम को भारतीय विश्वविद्यालयों द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए.
 
धर्मों का अध्ययन मुस्लिम परंपरा का हिस्सा है और इसे और आगे ले जाने की जरूरत है. ये विचार हैं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र विभाग के धर्मशास्त्र संकाय के डीन प्रो. मुहम्मद सऊद आलम कासमी. उन्होंने यह बातें यहां एक कार्यक्रम में कहीं.
 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के केए निजामी सेंटर फॉर कुरानिक स्टडीज में मदरसों के लाभ के लिए हिंदी भाषा और भारतीय धर्मों पर आधारित पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए एक परामर्श बैठक आयोजित की गई थी. इसकी अध्यक्षता दारा शिकोह इंटरफेथ सेंटर के निदेशक प्रो. अली मुहम्मद नकवी ने की.
 
जारी एक प्रेस नोट में कहा गया कि बैठक जयपुर के अल-हिदया विश्वविद्यालय के अधीक्षक मौलाना फजलुर रहिम मुजद्दीदी के निमंत्रण पर बुलाई गई है. उन्होंने कहा कि जमीयत-उल-हिदाया धार्मिक स्कूलों के छात्रों के लिए हिंदी भाषा और भारतीय धर्मों में विशेषज्ञता के लिए दो साल का पाठ्यक्रम तैयार करना चाहता है. मुस्लिम विश्वविद्यालय के शिक्षकों के ज्ञान और अनुभव का उपयोग इसके पाठ्यक्रम और प्रणाली को बनाने के लिए किया जाएगा.
 
एफिल विश्वविद्यालय, हैदराबाद के भाषा संकाय के पूर्व डीन प्रोफेसर मोहसिन उस्मानी ने कहा कि पैगंबर राष्ट्र की भाषा में बोलते थे और हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा है. इसलिए हिंदी भाषा सीखना और भारतीय धर्मों से परिचित होना उलेमा की सामाजिक आवश्यकता और धार्मिक जिम्मेदारी है.
 
ब्रिज कोर्स के निदेशक नसीम अहमद खान ने कहा कि मदरसों के लाभ के लिए विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में धर्म और हिंदी भाषा के पाठ्यक्रम को शामिल किया जाना चाहिए ताकि छात्र आगे बढ़ सकें.
 
इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक रिसर्च एंड राइटिंग के सचिव मौलाना अशद जमाल नदवी ने कहा कि हिंदी भाषा और भारतीय धर्मों का शिक्षण हमारी धार्मिक और दावत की जरूरत है. बड़े मदरसे पहल करेंगे तो दूसरे मदरसे भी चलेंगे. महिला महाविद्यालय की शिक्षिका डॉ. रजा अब्बास ने कहा कि अन्य धर्मों का अध्ययन प्रदर्शनात्मक तरीके से नहीं बल्कि सहानुभूतिपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए और इसके लिए विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए.
 
अध्यक्षीय भाषण पेश करते हुए प्रो. अली मुहम्मद नकवी ने कहा कि मदरसों में इस पाठ्यक्रम को शुरू करने से पहले पाठ्य पुस्तकों के उद्देश्य, प्रक्रिया, पाठ्यक्रम और तैयारी पर ध्यान देना चाहिए. यह कार्य बहुत महत्वपूर्ण है.
 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के धर्मशास्त्र संकाय, हिंदी विभाग, इंटरफेथ सेंटर, निजामी सेंटर और ब्रिज कोर्स सेंटर इस काम में पूरा सहयोग देंगे. हम पाठ्यपुस्तकें भी तैयार करेंगे. इस बैठक में पाठ्यक्रम की रूपरेखा भी तैयार की गई.