दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मौलाना संभली का निधन

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 31-07-2021
मौलाना अब्दुल खालिक संभली
मौलाना अब्दुल खालिक संभली

 

देवबंद. दारुल उलूम देवबंद के उपाधीक्षक मौलाना अब्दुल खालिक संभली का शुक्रवार दोपहर साढ़े तीन बजे निधन हो गया. हम अल्लाह के हैं और उसी के पास हम लौटेंगे. दिवंगत मौलाना कई दिनों से बीमार चल रहे थे. बीच-बीच में उन्हें कुछ राहत तो मिली, लेकिन दो-तीन दिन से हालत गंभीर बनी हुई थी. कल दिन भर वह कोमा में रहे, उन्होंने कुछ खाया-पिया नहीं था, उन्हें रात 11.30बजे इलाज के लिए मुजफ्फरनगर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था और दोपहर 3.30बजे हमेशा के लिए ज्ञान का सूरज डूब गया.

मौलाना संभली का जन्म 2जनवरी को मुरादाबाद जिले के संभल कस्बे में हुआ था. उनके पिता का नाम ग्रामीण नसीर अहमद था. वे अच्छे इंसान थे और खुशहाल कवि भी थे. उन्होंने अपने घर के पास खैर मदरसा में अपनी शिक्षा शुरू की. उस समय मौलाना मुफ्ती मुहम्मद आफताब अली खान मदरसा था. कुछ दिनों बाद मुफ्ती आफताब अली खान शमसुल उलूम मदरसे में चले गए, इसलिए वह भी वहां गए.

इस मदरसे में उन्होंने हाफिज फरीद-उद-दीन से पवित्र कुरान की याद पूरी की. उन्होंने फारसी और प्रारंभिक अरबी से लेकर शर-ए-जामी तक हजरत अकदास मौलाना मुफ्ती मुहम्मद आफताब खान से सभी किताबें पढ़ीं और फिर दारुल उलूम देवबंद चले गए.

वह बचपन से ही एक प्रतिभाशाली टाइकून थे और असाधारण मानसिक शक्ति और क्षमता से भरे हुए थे. इसलिए, जब वे अपने छात्र दिनों में दारुल उलूम देवबंद पहुंचे, तो उनका ज्ञान सामने आने लगा और इस आधार पर वे हमेशा अपने सहपाठियों और साथियों से अलग रहे.

हालांकि, कम या ज्यादा पांच साल तक आप दारुल उलूम देवबंद में रहे. इस समय के दौरान, आपने अपना सारा समय अकादमिक गतिविधियों में बिताया.

उन्हें शुरू से ही साहित्य में रुचि थी. इसलिए उन्होंने हमेशा अपने परीक्षा के उत्तर अरबी में लिखे. उन्होंने खादिम-उल-इस्लाम हा-पोद के सेवक के रूप में अपना करियर शुरू किया. छह साल तक, उन्होंने अपने ज्ञान से खादिम-उल-इस्लाम के वातावरण को रोशन करना जारी रखा.

उन्हें भारत में दारुल उलूम देवबंद में शिक्षण सेवाओं के लिए चुना गया और दारुल उलूम देवबंद में नियुक्त किया गया. तब से 9वर्षों तक दारुल उलूम देवबंद में सेवा की.

मौलाना अब्दुल खालिक संभली एक सफल शिक्षक, उत्कृष्ट लेखक और बहुत अच्छे वक्ता थे. उनके भाषण स्पष्ट और प्रभावी थे. कई मौकों पर वे दारुल उलूम देवबंद के नाजिम थे और कई वर्षों तक वे दारुल उलूम देवबंद के उपाधीक्षक भी रहे.

आपने कई विषयों पर लिखा है और विद्वानों के हलकों से प्रशंसा प्राप्त की है, जिसमें फतवा अल-आलमगिरी जाज 2 / (किताब अल-इमान) शामिल हैं. तहसीन में परिशिष्ट का जोड़ अल-मुबानी फाई इल्म अल-मनी, अब्दुल मजीद अजीज अल-जंदानी अल-यामानी की पुस्तक ‘अल-तौहीद’ जिसमें लगभग 500पृष्ठ हैं और दारुल उलूम देवबंद द्वारा प्रकाशित खंड पर पांच भाग का व्याख्यान किया गया था. ज्ञान और साधना का यह सुन्दर संगम 7जुलाई को सदा के लिए समाप्त हो गया. अल्लाह उन्हें माफ करे.

दारुल उलूम देवबंद के उपाधीक्षक और लोकप्रिय शिक्षक मौलाना अब्दुल खालिक संभाली के निधन की खबर जैसे ही देवबंद पहुंची, मदरसों, स्कूलों, शैक्षणिक और धार्मिक हलकों में मातम का माहौल बन गया.

दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ देवबंद, दारुल उलूम जकारिया देवबंद, दारुल उलूम फारूकिया, शेख हुसैन विश्वविद्यालय अहमद अल मदनी खानकाह देवबंद, मोहम्मद अनवर, कासिमिया विश्वविद्यालय दारुल तलीम वाल सना देवबंद, मदनी दारुल उलूम, दारुल उलूम अशरफिया और अन्य मदरसों के लिए अंतिम दर्शन के लिए वे दारुल मदारिसिन स्थित उनके आवास पर पहुंचे. तुरंत शोक सभा आयोजित की गई और क्षमा के लिए प्रार्थना की व्यवस्था की गई.

मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी बनारसी, दारुल उलूम देवबंद के अधीक्षक और मौलाना अब्दुल खालिक मद्रासी, दारुल उलूम देवबंद के उपाधीक्षक ने मौलाना अब्दुल खालिक संभाली के दुखद निधन पर दुख व्यक्त किया था. उनके निधन से हमने एक सम्मानित दुनिया खो दी है ,जिसका प्रतिस्थापन पहली नजर में नहीं दिखता है.

दारुल उलूम वक्फ देवबंद के उपाधीक्षक मौलाना डॉ शाकिब कासमी ने शोक व्यक्त किया कि दिवंगत मौलाना ज्ञान और कर्म के व्यक्ति थे. सादगी में उनका अपना उदाहरण था. दिवंगत एक ईमानदार और वफादार व्यक्ति थे, वह विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में सबसे अच्छे राजकुमार थे. अल्लाह उन्हें माफ करे.