मुसलमानों का स्कूल नामांकन में बेहतर प्रदर्शन, ड्रॉपआउट दर पर डेटा नहीं

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 10-07-2021
 मुसलमानों का स्कूल नामांकन में बेहतर प्रदर्शन, ड्रॉपआउट दर पर डेटा नहीं
मुसलमानों का स्कूल नामांकन में बेहतर प्रदर्शन, ड्रॉपआउट दर पर डेटा नहीं

 

मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
 
तेलंगाना में मुस्लिम समुदाय के छात्रों का नामांकन प्रतिशत दक्षिण भारतीय राज्यों में केरल के बाद दूसरे स्थान पर है. अन्य मुस्लिम आबादी वाले राज्यों की तुलना में तेलंगाना ने भी उसी पैरामीटर पर बेहतर प्रदर्शन किया है.
 
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम ऑन एजुकेशन प्लस 2019-2020 के अनुसार, तेलंगाना में मुस्लिम समुदाय के नामांकन का प्रतिशत 15.34 प्रतिशत है. यह राज्य में समुदाय की आबादी से लगभग 3 प्रतिशत अधिक है.
 
 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम आबादी 12.68 प्रतिशत थी, यानी 44.64 लाख.केरल के बाद, जिसने 34.14 प्रतिशत मुस्लिम छात्र नामांकन प्रतिशत दर्ज किया, तेलंगाना दूसरे स्थान पर आता है. इसके बाद कर्नाटक का नामांकन प्रतिशत 14.67  प्रतिशत है,
 
जबकि मुस्लिम आबादी का प्रतिशत लगभग 12.90 है. आंध्र प्रदेश में 9. 50 प्रतिशत की मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत के मुकाबले 7.97 प्रतिशत है. इसी तरह तमिलनाडु में 5.86 प्रतिशत की आबादी के मुकाबले 6.82 प्रतिशत है.
 
उत्तर प्रदेश, देश में मुसलमानों की सबसे अधिक संख्या वाले राज्यों में एक है, जहां लगभग 19 प्रतिशत  मुस्लिम आबादी है. लेकिन, इसने समुदाय के छात्रों के नामांकन के मामले में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया. यहां स्कूलों में मुस्लिम छात्रों के नामांकन का प्रतिशत इसकी जनसंख्या के अनुपात में नहीं है और 15.31 प्रतिशत है.
 
मामला बिहार के साथ भी ऐसा ही है,जहां मुसलमानों के नामांकन का प्रतिशत उस राज्य में उनकी आबादी के प्रतिशत के अनुपात में नहीं है.इन राज्यों के बीच आम बात यह है कि छात्रों के नामांकन का प्रतिशत शिक्षा के प्राथमिक स्तर से उच्च माध्यमिक तक उत्तरोत्तर कम होता जाता है.
 
आश्चर्यजनक रूप से, पिछली रिपोर्टों के विपरीत, ़ 2019-2020 रिपोर्ट में मुस्लिम समुदाय के स्कूल छोड़ने की दर का कोई डेटा नहीं है. उदाहरण के लिए, वर्ष 2014-2015 की शिक्षा रिपोर्ट पर जिला सूचना प्रणाली ने इस विशेष पहलू को विस्तृत किया.
 
जानने वालों ने कहा कि स्कूल छोड़ने के कई कारणों में से घरेलू आय बढ़ाने की जरूरत है. खासकर समाज के कमजोर वर्गों, खासकर मुसलमानों के बीच.2015 में जारी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट से पता चला है कि मुस्लिम समुदाय में ड्रॉपआउट दर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की तुलना में बहुत अधिक है.
 
रिपोर्ट में कहा गया था कि माध्यमिक स्तर की शिक्षा में, मुसलमानों में स्कूल छोड़ने की दर इन समुदायों की तुलना में लगभग दोगुनी थी.