देश में मेडिकल शिक्षा महंगी, मेवात से 23 छात्र एमबीबीएस करने कजाखस्तान रवाना

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 02-01-2022
मेवात से 23 छात्र एमबीबीएस करने कजाखस्तान रवाना
मेवात से 23 छात्र एमबीबीएस करने कजाखस्तान रवाना

 

यूनुस अल्वी/ नूंह, हरियाणा

पेशे से जुड़े सम्मान और कमाई की वजह से भारत में बहुत सारे बच्चे डॉक्टर बनना चाहते हैं. लेकिन यह सपना पूरा होने में भारत में मेडिकल की पढ़ाई के लिए उपलब्ध सीटों की कमी बड़ी बाधक है.

भारत में प्रति 1700 मरीज पर एक डॉक्टर उपलब्ध है, जबकि डब्ल्यूएचओ के अनुसार इसका अनुपात 1:1100 होना चाहिए. लेकिन सरकारी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई के लिए चयन प्रक्रिया में प्रतिस्पर्धा काफी कठिन है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा में पास होना या उस प्रतियोगिता की तैयारी के लिए कोचिंग का खर्च भी काफी बैठता है.

उसके बाद भी, भारत में मेडिकल की पढ़ाई काफी खर्चीली है. वहीं एमबीबीएस की डिग्री के लिए निजी कॉलेज 70 लाख से एक करोड़ रुपए तक की फीस मांगते हैं, जो हर परिवार के बूते की बात नहीं होती.

ऐसे में कड़ी प्रतिस्पर्धा, कम सीटों और अत्यधिक फीस के कारण भारतीय एवं मेवाती छात्र एमबीबीएस (मेडिकल शिक्षा) के लिए विदेश का रुख कर रहे हैं. शनिवार को मेवात के गांव पाडला से मोहम्मद साद, रायपुर पुन्हाना से मोहम्मद दिलशाद, पुन्हाना से मोहम्मद सुहैल, धीवरी से मुशर्रफ हुसैन, अकबरपुर से तालिब हुसैन और अकील अहमद सहित करीब 23 छात्र कजाकिस्तान से एमबीबीएस की पढ़ाई करने रवाना हुए.

कजाखस्तान में जहां अमेरिकन पद्धति पर आधारित पढ़ाई है वहीं एमबीबीएस बनने में खर्च भी कम आता है.

मेवात के शिक्षाविद सरफराज नवाज का कहना है कि भारत में उपलब्ध सीटों की कमी बड़ी बाधक है. पिछले वर्ष 16.3 लाख से अधिक छात्रों ने 42,300 सीटों के लिए परीक्षा दी. मतलब मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सफलता का प्रतिशत केवल 0.6 प्रतिशत है, 99.4 प्रतिशत बच्चे मेडिकल प्रवेश परीक्षा में सीट पाने में असफल हुए.

सरकारी क्षेत्र में, 200 कॉलेजों में 40 हजार सीटें हैं. इनमें कम लागत में बेहतर शिक्षा मिलती है, लेकिन यहां नामांकन पाना कठिन है. बाकी की सीट निजी कॉलेजों में होती हैं. जिनकी फीस काफी अधिक है.

कई कॉलेजों में तो फीस 12 लाख प्रति वर्ष से 25 लाख प्रति वर्ष तक है. अगर हम प्रबंधन कोटा की बात करें तो अधिकांश निजी कॉलेजों में एमबीबीएस कोर्स के लिए 70 लाख रुपए से एक करोड़ रुपए के बीच मांग करते हैं.

कजाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई अमेरिकन पद्धति पर चलती है. यहां पूरी पढ़ाई पांच साल चलती हैं. एक साल की मेडिकल इंटर्नशिप होती हैं. कजाखस्तान में मेडिकल शिक्षा पूरे पांच साल का खर्च भारतीय रुपए में लगभग 18 लाख से 22 लाख तक पड़ता है. इस खर्च को 11 इंस्टॉलमेंट में दिया जा सकता है. मुख्यतः पहले साल में कॉलेज 3 इंस्टालमेंट में फीस लेते हैं, बाकी साल में बचे हुए फीस 8 इंस्टालमेंट में जमा करना होता है. कॉलेज फीस को अपने कॉलेज के अकाउंट में ही जमा करते हैं, जिससे सब कुछ पारदर्शी रहता है.

कजाखस्तान में भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या को देखते हुए कॉलेजों ने यहां के छात्रों के लिए अलग मेस की सुविधा भी दी है. जिसमें बच्चों को भारतीय मसालों के साथ भारतीय खाना मिलता है.

नवाज़ गाइडेंस कंसल्टेंसी के निदेशक अर्सलान परवेज कहते हैं, “कजाखस्तान और बांग्लादेश है नया ठिकाना. कठिनाइयों को देखते हुए कजाखस्तान और बांग्लादेश मेडिकल शिक्षा का नया ठिकाना बना है.

कजाखस्तान और बांग्लादेश के कॉलेज मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता के मामले में सबसे अच्छा माना जा रहा है. कजाखस्तान एक एशियाई देश है, जहां की मुख्य भाषा अंग्रेजी कज़ाख है. भारत की तरह वहां भी शिक्षा के सभी स्तरों में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है. पिछले कुछ वर्षों में कजाखस्तान में मेडिकल की शिक्षा ग्रहण करने की इच्छा रखने वाले भारतीय की संख्या में इजाफा हुआ है.”

परवेज आगे बताते हैं, “मुख्यतः दक्षिण भारत, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात से काफी संख्या में लोग कजाखस्तान में मेडिकल की पढ़ाई करना पसंद कर रहे हैं. मेडिकल की पढ़ाई के लिए बाहर के देशों में मुख्य रूप से रूस,कजाखस्तान, बांग्लादेश, चीन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इंग्लैंड, उक्रेन, आर्मेनिया, जॉर्जिया, फिलीपींस आदि हैं.

भारत से मेडिकल की शिक्षा के लिए लोग कई वर्षों से इन देशों में जा रहे हैं और कई लोग वापस आकर भारत में प्रैक्टिस भी कर रहे हैं. पारंपरिक तौर पर हमारे यहां से लोग रूस और इंग्लैंड काफी संख्या में मेडिकल की शिक्षा प्राप्त की. करीब एक दशक पहले जब भारत में नामांकन पाना काफी कठिन हो गया तो मेडिकल स्टूडेंट्स ने कई दूसरे देशों की तरफ भी रुख किया है.”

लेकिन, कजाखस्तान, यूक्रेन, रूमानिया जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत में सीधे प्रैक्टिस करने की अनुमति नहीं है. वहां से डिग्री हासिल करने के बाद भारत में प्रैक्टिस करने के लिए छात्रों को एक परीक्षा देनी होती है. जानकारों के मुताबिक, इन देशों में मेडिकल की पढ़ाई का स्तर कहें या भारत में प्रैक्टिस के लिए होने वाली परीक्षा का ऊंचा स्तर, इन छात्रों मे से 5 या 6 फीसद छात्र ही इसमें उत्तीर्ण हो पाते हैं.

बहरहाल, देश में डॉक्टरों के अनुपात को ठीक करने के लिए इस परीक्षा की जटिलता को कम करने की जरूरत है.