साजिद रसूल / श्रीनगर
कश्मीर घाटी में दसवीं कक्षा के परिणाम घोषित हुए हैं, जिसमें एक साधारण मजदूर की बेटी ने बिना किसी ट्यूशन या संसाधन के 97.8 प्रतिशत अंक हासिल करके दिखा दिया कि भारत की बेटियां हर मुश्किल से उबरकर आसमान छूने की कला जानती हैं.
कोरोना वायरस के प्रसार से शिक्षा क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित हुआ. आमतौर पर किसी भी समाज में जब उच्च शिक्षा के मानकों या परीक्षाओं में बेहतर परिणाम की उम्मीद की जाती है, तो शैक्षिक सुविधाओं, निजी ट्यूशन और अन्य संबंधित सुविधाओं को ध्यान में रखा जाता है, लेकिन मैट्रिक परीक्षा में मध्य कश्मीर के गंदरबल जिले की एक छात्रा 16साल वर्षीय परवीन अयूब ने इन परिभाषाओं को ठेंगा दिखाते हुए कामयाबी हासिल की है.
यद्यपि मैट्रिक परीक्षा परिणाम में इस जिले और अन्य जिलों के भी छात्र-छात्राओं ने उत्कृष्ट अंक प्राप्त किए हैं, लेकिन गंदरबल जिले के एक दूरस्थ गांव कुरहामा की परवीन की सफलता अद्वितीय और विशिष्ट है, क्योंकि परवीन का जन्म और पालन-पोषण टीन की चादरों से बने शेड में हुआ.
परवीन का परिवार एक ही कमरे के शेड में रहने को मजबूर है. मैट्रिक परीक्षा में 97.8 प्रतिशत अंक प्राप्त करके परवीन ने साबित कर दिया है कि गरीबी किसी भी सफलता के लिए बाधा नहीं है. अगर कड़ी मेहनत करें और मजबूत इरादा हो, तो इस तरह की कठिनाइयों और कष्टों से भी पार पाया जा सकता है.
आवाज-द वॉयस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, परवीना अयूब ने कहा कि वह अपनी पढ़ाई के समय की कठिनाइयों और समस्याओं का वर्णन नहीं कर सकती हैं.
आंखों में आंसुओं के साथ परवीन कहती हैं कि वे इस सफलता का श्रेय अपने पिता को देना चाहती हैं, क्योंकि उनकी सफलता में उनके पिता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है.
परवीन के पिता मुहम्मद अयूब एक साधारण मजदूर हैं और एक मजदूर के लिए अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाना बहुत मुश्किल होता है.
अपने पिता के योगदान को याद करते हुए परवीन कहती हैं, “मेरे पिता सभी बच्चों को ख्याल रखते हैं. इस सयम उनके सिर पर चार बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण की जिम्मेदारी है. इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि हम किस तरह की कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बावजूद मैं अल्लाह की शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मुझे सफल बनाया.”
परवीन अयूब
मुहम्मद अयूब का मानना है कि इससे उन्हें और प्रोत्साहन मिला है. उन्हें उनकी कड़ी मेहनत का मुआवजा मिला है.
आवाज-द वॉयस से बात कहते हुए अयूब ने कहा, “हमारे पास एक अच्छा घर नहीं है. हम एक टीन शेड में रहते हैं. लेकिन मेरी बेटी ने दिन-रात पढ़ाई की. जब हम सभी एक तरफ सो जाते थे, तो वह अपनी पढ़ाई जारी रखती थी और आज, भगवान का शुक्र है, उसने अपने परिश्रम का फल प्राप्त किया है, जिससे हम सभी बहुत खुश हैं.”
गौरतलब है कि परवीना अयूब एक सरकारी स्कूल की छात्रा हैं. चूंकि वे एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं, इसलिए उन्होंने कहीं भी निजी ट्यूशन की शिक्षा नहीं ली. जबकि उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के अधिकांश छात्र ट्यूशन लेते हैं. उन्होंने मैट्रिक परीक्षा में 500में से 490अंक हासिल किए और न केवल अपने स्कूल और अपने गांव कुरहामा को प्रसिद्ध किया, बल्कि उनकी सफलता के कारण पूरा जिला सोशल मीडिया पर रुचि का केंद्र बन गया है.
फिलहाल परवीन के घर में खुशी का माहौल है और उनके रिश्तेदार और पड़ोसी उन्हें बधाई देने के लिए उनके घर आ रहे हैं. यह परवीना की बहनों और माता-पिता के लिए खुशी मौका है. यह पहली बार है कि लोग उनके घर उन्हें बधाई देने के लिए आ रहे हैं. उनके घर में मीडिया का आना-जाना भी बढ़ गया है.
अन्य सामाजिक संस्थाओं ने भी उनकी सफलता पर हर्ष जताया है.