जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिखाया दिल, 670 को स्काॅलरशिप

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 30-03-2022
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिखाया दिल, 670 को स्काॅलरशिप
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिखाया दिल, 670 को स्काॅलरशिप

 

आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली

जमीयत उलेमा-ए-हिंद सुप्रीमो मौलाना सैयद अरशद मदनी ने शैक्षणिक वर्ष 2021-2022 के लिए मेरिट के आधार पर चयनित 670छात्रों के लिए आज जमीयत के मुख्यालय में छात्रवृत्ति सूची जारी की. इस बार जरूरतमंद छात्रों की बढ़ती संख्या को देखते हुए गत वर्ष की छात्रवृत्ति की कुल राशि 50लाख से बढ़ाकर एक करोड़ कर दी गई है.

आर्थिक रूप से कमजोर लेकिन प्रतिभाशाली और मेहनती छात्रों को उच्च और व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने में मदद करने के उद्देश्य से जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 2012 से छात्रवृत्ति योजना शुरू की थी, जो निरंतर जारी है.

इसके लिए हुसैन अहमद मदनी चेरी टेबल ट्रस्ट देवबंद और मौलाना अरशद मदनी पब्लिक ट्रस्ट द्वारा एक शैक्षिक सहायता कोष स्थापित किया गया है. शिक्षाविदों की एक टीम बनाई गई है, जो हर साल योग्य छात्रों का चयन करती है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद मेडिकल, इंजीनियरिंग, बी.टेक, एम.टेक, पॉलिटेक्निक, बीएससी, बी.कॉम, बीए, बीए, मास कम्युनिकेशन, एम.कॉम के छात्रों को स्कॉलरशिप प्रदषन करती है.इसके अलावा आईआईटी और आईटीआई करने वाले भी आर्थिक मदद प्राप्त कर सकते हैं .

इसके पीछे एकमात्र उद्देश्य गरीबी और आर्थिक तंगी से पीड़ित बुद्धिमान बच्चों को बिना किसी बाधा के अपनी शैक्षिक गतिविधियों को जारी रखने में मदद करना है. ताकि राष्ट्र के विकास और समृद्धि में योगदान दे सकें.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने छात्रवृत्ति जारी करते हुए कहा,अल्लाह की मदद और लोगों के समर्थन से इस बार स्काॅलरषिप की राषि बढ़ाने में   कामयाब हुए.

उन्होंने कहा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद का दायरा बहुत विस्तृत है, पर उम्मीद के मुकाबले, संसाधन बहुत सीमित हैं. बावजूद इसके आने वाले वर्षों के मद्देनजर छात्रवृत्ति कोष बढ़ाने के लिए काम किया जा रहा है ताकि अधिक से अधिक छात्रों की मदद की जा सके.

उन्होंने बताया कि जिन गैर-मुस्लिम छात्रों को छात्रवृत्ति की आवश्यकता है, वे भी इसके लिए आवेदन करते हैं. इस बार भी उनकी ओर से बड़ी संख्या में आवेदन प्राप्त हुए और उनका चयन किया गया.

मौलाना मदनी ने कहा, जमीयत बिना किसी धार्मिक भेदभाव के कल्याणकारी गतिविधियां चलाती है.उन्होंने आगे कहा कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को सामने आए एक दशक से अधिक समय बीत गया, पर मुसलमानों के आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. मुख्य रूप से गरीबी के कारण पहले जैसे स्थिति बरकरार है.

सच्चर समिति ने कहा था कि गरीबी के कारण बड़ी संख्या में बुद्धिमान और मेहनती मुस्लिम बच्चे स्कूल छोड़ने को मजबूर हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय का सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन दूर नहीं हो पा रहा है.

उन्होंने कहा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इसे ध्यान में रखते हुए उच्च और व्यावसायिक शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति शुरू की है ताकि देश के बुद्धिमान बच्चे वित्तीय बाधाओं के कारण अपनी शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर न हांे.उन्होंने कहा कि जिस तरह से कुछ लोग जानबूझकर छोटी-छोटी बातों पर विवाद पैदा कर रहे हैं और मीडिया इन विवादों को हवा दे रहा है, मुसलमानों की यथास्थिति को खत्म करना जरूरी हो गया है.

उन्होंने आर्थिक रूप से मजबूत मुसलमानों को सलाह दी है कि वे अपने पैसे से बच्चों के लिए उच्च शिक्षा संस्थान स्थापित करें ताकि वे अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान के साथ शिक्षा प्राप्त कर सकें.

इसके अलावा हमें यह व्यावहारिक प्रयास भी करना चाहिए कि ऐसे शिक्षण संस्थानों में गैर-मुस्लिम भी अपने बच्चों को भेजें. इससे न केवल हमारी आपसी एकता मजबूत होगी, मुसलमानों के बारे में कई जानबूझकर पैदा की गई गलतफहमियां भी दूर होंगी.

मौलाना मदनी ने कहा, समय आ गया है कि हम इसके लिए सामूहिक प्रयास करें और प्रभावी रोडमैप लेकर आएं.