दिल्ली काॅलेजः जानिए, मदरसा गाजीउद्दीन से एंग्लो-अरबी स्कूल तक का सफर

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 08-09-2021
मदरसा गाजीउद्दीन से एंग्लो-अरबी स्कूल तक का सफर
मदरसा गाजीउद्दीन से एंग्लो-अरबी स्कूल तक का सफर

 

आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली

दिल्ली कॉलेज को भारत के सबसे पुराने संस्थानों में से एक माना जाता है. मदरसा गाजीउद्दीन से दिल्ली कॉलेज तक पहुँचने में इसने कई विकासवादी चरणों से गुजरा है.1710 में अजमेरी गेट के बाहर गाजीउद्दीन मदरसा शुरू किया गया था, जिसके बाद 1825 में दिल्ली कॉलेज की स्थापना हुई. इस महाविद्यालय में प्रारम्भ से ही प्राच्य अध्ययन का बोलबाला था, लेकिन पूर्वी शिक्षा के साथ-साथ पाश्चात्य विज्ञान की शिक्षा भी यहीं प्रारम्भ हुई.

गाजी-उद-दीन मदरसा से दिल्ली कॉलेज और एंग्लो-अरबी स्कूल तक का सफर प्रारंभ में अरबी और फारसी में पढ़ाया जाता था, कॉलेज में संस्कृत का एक विभाग भी था, 1828 में छात्रों के लिए अंग्रेजी की कक्षाएं शुरू की गईं.

जैसे-जैसे छात्रों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे दिल्ली कॉलेज में मदरसों की संख्या भी बढ़ती गई, साथ ही खर्च और आय को संतुलित करने के लिए सरकारी सहायता भी मिली, लेकिन यह वित्तीय सहायता अपर्याप्त थी.

इस बीच, ओढ़ के मंत्री, नवाब एतमाद अल-दावला ने ओरिएंटल स्टडीज के लिए 170,000 रुपये की भारी राशि समर्पित की. 1857 के दंगों के दौरान कॉलेज को बंद कर दिया गया था, इस दौरान कॉलेज के पुस्तकालय में मूल्यवान पुस्तकों को आग लगा दी गई थी.

जब स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ, तो इसे मई 1864 में चांदनी चैक के एक टाउन हॉल भवन में फिर से खोल दिया गया, लेकिन स्थिति बदल गई थी. विद्रोह के बाद अंग्रेजी शासकों का कोप कॉलेज पर उतर आया. कॉलेज के शिक्षकों को प्रिंसिपल की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था, इसलिए कॉलेज इस सजा का हकदार था. तस्वीर पढ़ें. जाएगा

इस कॉलेज के छात्रों में कई व्यक्तित्व हैं जिनका उल्लेख किया जाना आवश्यक है. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण मौलाना कासिम नानोत्वी का नाम है, जिन्होंने 30 मई, 1867 को अन्य साथियों के साथ देवबंद में दारुल उलूम देवबंद की स्थापना की, जो आज इस्लामी दुनिया का एक अनूठा और प्रतिष्ठित मदरसा है.