खुदाबख़्श पर संकट टला , नहीं टूटेगी लाइब्रेरी

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 18-06-2021
खुदाबख़्श पर संकट टला , नहीं टूटेगी लाइब्रेरी
खुदाबख़्श पर संकट टला , नहीं टूटेगी लाइब्रेरी

 

सेराज अनवर / पटना

खुदाबख़्श लाइब्रेरी पर संकट टल गया है.अशोक राजपथ पर स्थित मध्य एशिया के  सबसे बड़ा कुतुबखाना को नुक़सान पहुंचाने के खिलाफ भारी विरोध-प्रदर्शन के   दबाव के बाद बिहार सरकार ने खुदाबख़्श लाइब्रेरी के एक हिस्से को तोड़ने संबंधी अपने फ़ैसले को वापस ले लिया है.
 
लाइब्रेरी प्रबंधन को विधिवत रूप से जानकारी नहींदरअसल, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड अशोक राजपथ पर कारगिल चैक से एनआईटी मोड़ तक लगभग सवा दो किलोमीटर लम्बा डबल डेकर रोड का निर्माण करने जा रहा है.बीच में ख़ज़ांची रोड के पास ऐतिहासिक खुदाबख़्श ओरियंटल पब्लिक लाइब्रेरी है.
 
निगम लाइब्रेरी के लॉर्ड कर्ज़न रीडिंग हॉल को सड़क के निर्माण में बाधा महसूस कर रहा था. इसलिए उसने हॉल के आगे के हिस्से को तोड़ने का फैसला किया था और लाइब्रेरी प्रबंधन से इसके लिए एनओसी मांगा था.अब पुल निर्माण निगम के चेयरमैन अमृतलाल मीणा ने स्पष्ट कर दिया है कि खुदाबख़्श लाइब्रेरी के किसी भी हिस्से को नहीं तोड़ा जाएगा.
 
अलबत्ता लाइब्रेरी के पास प्रस्तावित डबल डेकर रोड की चैड़ाई को कम कर दिया जाएगा.हालांकि,इसकी जानकारी विधिवत रूप से लाइब्रेरी प्रबंधन को नहीं दी गयी है.
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प्रबंधन को चाहिये लिखित सूचना

 

लाइब्रेरी की निदेशक शाइस्ता बेदार  ने आवाज-द वॉयस को बताया कि उन्हें संबंध में पुल निर्माण निगम की ओर से कोई चिट्ठी नहीं मिली है.मुझे भी मीडिया से ही मालूम हुआ है कि लाइब्रेरी पर ख़तरा टल गया है.मगर जिस तरह हमसे एनओसी मांगी गयी थी,लिखित रूप से सूचना भी दी जानी चाहिये कि उनकी योजना अब लाइब्रेरी को हाथ लगाने की नहीं है.मैं तो यही कहूंगी-‘अल्लाह बेहतर करे’.
 
लाइब्रेरी को हाथ लगाये बेग़ैर सड़क का निर्माण होता है तो इससे ख़ुशी की बात क्या होगी.इस आंदोलन में सक्रीय रहे मुश्ताक़ राहत कहते हैं कि यह सिविल सोसायटी के लगातार विरोध-प्रदर्शन का ही नतीजा है कि पुल निर्माण निगम के चेयरमैन अमृतलाल मीणा ने स्पष्ट कर दिया है कि खुदाबख़्श लाइब्रेरी के किसी भी हिस्से को नहीं तोड़ा जाएगा.अलबत्ता लाइब्रेरी के पास प्रस्तावित डबल डेकर रोड की चैड़ाई को कम कर दिया जाएगा.
 

किसी भी हिस्से को नहीं छूने का फैसला

 

मालूम हो कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (बीआरपीएनएनएल) द्वारा प्रस्तावित अनूठी डबल डेकर सड़क के लिए पुस्तकालय के रीडिंग हॉल का एक हिस्सा, पहले तोड़ने की योजना बनाई गई थी. अमृत लाल मीणा ने योजना में बदलाव की पुष्टि की है.
 
मीणा के मुताबिक़ हमने डबल डेकर सड़क के निर्माण के लिए खुदाबख्श पुस्तकालय के किसी भी हिस्से को नहीं छूने का फैसला किया है.  हालांकि, इसका असर कुछ हिस्सों में एलिवेटेड रोड की चौड़ाई पर पड़ेगा. मीणा ने यह भी बताया कि परियोजना के लिए जमीनी कार्य मानसून के बाद जुलाई में शुरू होगा और इसे पूरा होने में लगभग तीन साल लगेंगे.
 
प्रबंधन की ओर से दर्ज करायी गयी थी आपत्ति

क़ाबिल ए ज़िक्र है कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के अधिकारियों ने मार्च महीने में खुदाबख्श लाइब्रेरी का दौरा कर पुस्तकालय के अगले हिस्सा को ध्वस्त करने के लिए प्रबंधन से एनओसी देने को कहा था. इस पर पुस्तकालय प्रबंधन ने ज़बरदस्त  आपत्ति दर्ज करायी थी.
 
लाईब्रेरी की निदेशक शाइस्ता बेदार ने कहा था कि  “हम विकास के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन लाइब्रेरी एक महत्वपूर्ण धरोहर है, इसका ख्याल रखना हमारा ही नहीं सरकार का दायित्व है. खुदाबख्श के फ्रंट पार्ट को ध्वस्त कर कर दिया जायेगा तो इससे लाईब्रेरी की खूबसूरती ही खत्म हो जायेगी.
 
अगले हिस्सा में कर्जन रीडिंग रूम है। सरकार की इस प्लानिंग से वो भी चला जायेगा. कर्जन रीडिंग रूम का ऐतिहासिक महत्व है. हम इसे कैसे बर्दाश्त करेंगे.”
 

सिविल सोसायटी ने किया था विरोध-प्रदर्शन

 

बिहार की सिविल सोसायटी को जब ये बात मालूम हुई तो उसने लगातार विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया तथा राज्यपाल, मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय को चिट्ठी लिखकर हॉल को न तोड़ने की मांग की.
 
पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ कुमार दास ने विरोध दर्ज कराते हुए राष्ट्रपति को पुलिस मेडल वापस कर दिया और आंदोलन में कूद पड़े. वर्ष 1994 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे अमिताभ दास ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखे पत्र में कहा-‘ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रष्ट ठेकेदारों और टेंडर माफिया के आदेश पर पटना की ऐतिहासिक खुदाबख्श लाइब्रेरी के कुछ हिस्सों को जमींदोज करने का फैसला किया है.
 
खुदा बख्श लाइब्रेरी पूरी इंसानियत की विरासत है. हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहजीब की निशानी है. पूरा बिहार, इस पर गर्व करता है. एक पुस्तक-प्रेमी होने के नाते, मुझे सरकार के फैसले से गहरा सदमा लगा है. मैंने बरसों तक, एक आईपीएस अधिकारी के रूप में देश को अपनी सेवाएं दी है.नीतीश सरकार द्वारा पटना की खुदा बख्श लाइब्रेरी को जमींदोज करने के फैसले के खिलाफ, मैं भारत सरकार द्वारा प्रदत पुलिस पदक आपको लौटा रहा हूं.
 
मुश्ताक़ राहत कहते हैं कि  इस पूरे मामले में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकार को अपनी गलतियों का एहसास कराने के लिए सिविल सोसायटी की सक्रियता कितनी महत्वपूर्ण होती है.उन्होंने अमिताभ दास को विशेष रूप से बधाई दी है.उनकी पहल को सराहा है.
 

 निगम के फैसले का स्वागत

 

गौरतलब है कि 1905 में बने खुदाबख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी के कर्जन रीडिंग रूम को यूनेस्को की तरफ से संरक्षित विरासत घोषित किया जा चुका है. खुदाबख्श लाइब्रेरी भारतीय संस्कृति की धरोहर है. महात्मा गांधी, लार्ड कर्जन, वैज्ञानिक सीवी रमण, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, राष्ट्रपति अब्दुल कलाम यहां पधार चुके हैं.
 
इस पुस्तकालय में इस्लामिक साहित्य से जुड़ा दुनिया का सबसे उत्कृष्ट कलेक्शन मौजूद है. इस्लामिक साहित्य पर शोध करने वाले दुनिया भर के शोधार्थी अक्सर यहां आते हैं. इस्लामी दुनिया को जानने के लिए मध्य एशिया में खुदाबख्श लाइब्रेरी से बड़ा कुतुबखाना कहीं और नहीं होगा.
 
लोग तो इसकी मिसाल तुर्की के इस्तांबुल लाइब्रेरी से देते हैं. खुदाबख्श लाइब्रेरी को इस्लामी दुनिया में तुर्की के बाद दूसरा सबसे बड़े ग्रंथालय के रूप में देखा जाता है. खुदाबख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी, संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक स्वायत्त निकाय है. इसकी स्थापना 1891 में हुई थी. सिविल सोसायटी से जुड़े लोगों ने कर्जन रीडिंग हॉल को न तोड़ने के बारे में लिए गए पुल  निर्माण निगम के फैसले का स्वागत किया है.