स्कूल बंद होने से बच्चों का भविष्य दांव पर

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 01-09-2021
स्कूल बंद होने से बच्चों का भविष्य दांव पर
स्कूल बंद होने से बच्चों का भविष्य दांव पर

 

शाह इमरान हसन / नई दिल्ली
 
कोरोना वायरस ने जहां कई चीजों को प्रभावित किया है, वहीं स्कूलों, शिक्षा और बच्चों पर भी इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. लॉकडाउन के कारण स्कूल को बंद करना पड़ा. हालांकि स्कूल पिछले दो साल में कई बार फिर से खुले और बंद हुए.अब भारत के अलग-अलग राज्यों में 1 सितंबर, 2021 से स्कूल खोले जा रहे हैं, ऐसे में कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल कैसे खोला जाए, इस पर लोगों की अलग-अलग राय है.
 
गौरतलब है कि शुरुआत में 9वीं और 12वीं कक्षा जैसी सीनियर कक्षाओं के लिए स्कूल खोले जा रहे हैं. इसके बाद कोरोना प्रोटोकॉल और सावधानियों के साथ अन्य कक्षाओं के लिए स्कूल खोले जाएंगे. इस संबंध में आवाज द वॉयस ने विभिन्न लोगों, विशेषकर बच्चों के माता-पिता से बात की कि स्कूल को फिर से खोला जाना चाहिए या नहीं ?
 
नई दिल्ली के असदुल्ला फहीम शिक्षक और पिता दोनों हैं. वह आधुनिक के साथ धार्मिक शिक्षा देते हैं.उनका मानना ​​है कि स्कूल खोले जाने चाहिए, क्योंकि शिक्षा के बिना व्यक्ति की बच्चों की मानसिक पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
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पिछले एक साल में शिक्षा को बहुत नुकसान हुआ है. इसकी भरपाई करना आसान नहीं, लेकिन सावधानियों के साथ स्कूलों को फिर से खोलना होगा.उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा को रोकने के नुकसान अधिक हैं, क्योंकि सभी प्रकार की विकास गतिविधियां शिक्षा से जुड़ी हैं.
 
अपनी बात बताते हुए असदुल्लाह फहीम ने कहा कि स्कूली शिक्षा आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. खुल जाना ही बेहतर है.डॉ. नवाज देवबंदी, एक प्रसिद्ध भारतीय कवि और शिक्षाविद्, नवाज गर्ल्स पब्लिक स्कूल के संस्थापक हैं. उनका लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान रहता है. लगभग 16 स्कूलों का संचालन करते है.
 
उन्होंने कहा कि जाहिर तौर पर नुकसान लोगों के सामने है, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान स्कूल न खुलने से हुआ है.जैसे बिजली की आपूर्ति काट दी जाए तो पंखे काम करना बंद कर देते हैं. वैसे ही शिक्षा बिजली की आपूर्ति के लिए काम करती है, जो हमें विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को प्रदान करती है.
 
उन्होंने जोर देकर कहा कि स्कूलों में शिक्षा देने का काम शुरू कर देना चाहिए.डॉ. नवाज देवबंदी ने आगे कहा कि लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन प्रणाली के माध्यम से शिक्षा दी जाती थी. मानसिक रूप से छात्र खुद को छात्र मानते रहे, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं हुआ.
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अब स्कूल खुल रहे हैं, यह अच्छी बात है. इसके लिए हम सभी को मिलकर काम करना होगा. इसके लिए सरकार के साथ माता-पिता, शिक्षकों और छात्रों को भी मिलकर काम करना होगा. जो व्यवस्था चल रही थी वह ठप हो गई है. उसे फिर से शुरू करने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा.
 
लोग विभिन्न मुद्दों पर एक साथ परामर्श करते हैं. लोगों को शिक्षा के बारे में भी सोचना चाहिए. सबसे जटिल मुद्दे शैक्षिका के हैं. शैक्षिक यात्रा अंतहीन है. यह एक लंबी जीवन यात्रा है, इसलिए, यह हम में से प्रत्येक वर्ग की जिम्मेदारी है कि इसे यथासंभव भरने का प्रयास करें.
 
‘‘खासकर ऐसे समय में, माता-पिता को बहुत सतर्क रहने की जरूरत है,‘‘ उन्होंने कहा. पूरे दो साल हो गए. उन दो सालों में लोगों ने अंत्येष्टि देखी है. बीमारों को देखा है. लोग एक ऐसी स्थिति से बाहर आए हैं जो बहुत भयावह थी. अब हमें एक ठोस और व्यापक योना बनानी है.
 
उन्होंने कहा कि व्यवसाय फिर से स्थापित किया जा सकता है, कारखाने स्थापित किए जा सकते हैं, लेकिन शिक्षा फिर से कैसे शुरू की जा सकती है, जो वर्ष बर्बाद हो गया वह वापस नहीं आ सकता.
 
इसलिए हमें अपने शैक्षिक कारखाने को फिर से मजबूत करने की जरूरत है.वह अपने बेटों की शिक्षा के लिए विशेष रूप से काम करने में विश्वास करते हैं. पिछले कुछ वर्षों में बेटों ने बहुत अच्छे परिणाम दिखाए हैं. मुझे लगता है कि मां शिक्षित होंगी तो समाज भी शिक्षित होगा.
 
शाहनवाज बद्र कासमी, विजन इंटरनेशनल स्कूल सहरसा (बिहार) के निदेशक हैं. उन्होंने एक टेलीफोन साक्षात्कार में आवाज द वॉयस को बताया कि कोरोना के कारण सबसे बड़ा नुकसान, यदि किसी को हुआ, वह शिक्षा क्षेत्र को हुआ है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन ने देश के लाखों बच्चों का भविष्य बर्बाद कर दिया है. मदरसा खुला होने पर भी वह पढ़ाई नहीं करना चाहते हैं.
 
गरीबी और मजबूरी के कारण बड़ी संख्या में बच्चों ने खाना कमाना शुरू कर दिया, जो बहुत ही दर्दनाक है. हर राज्य में राज्य स्तर पर सर्वे होना चाहिए. क्या कारण है कि हम चाहकर भी देश को शत-प्रतिशत शिक्षित बनाने में असफल रहे हैं?
 
एहतियाती उपायों के साथ स्कूल को फिर से खोलना भी जरूरी है, ताकि अगर इसी तरह के शिक्षण संस्थान कोरोना के कारण स्थायी रूप से बंद रहे तो निजी शिक्षण संस्थानों में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी. बच्चे शैक्षणिक गतिविधियों से वंचित रह जाएंगे. बंद, स्कूल मालिक कर्ज में हैं.
 
संयुक्त राष्ट्र की दो एजेंसियों, यूनिसेफ और यूनेस्को के अनुसार, स्कूल बंद होने से 19 देशों में कोरोना वायरस ने 150 मिलियन से अधिक बच्चों को प्रभावित किया है. ‘‘एक पूरी पीढ़ी को नष्ट करने‘‘ की चेतावनी दी है.
 
यूनिसेफ और यूनेस्को के अधिकारियों ने कहाः ‘‘सरकारों ने कई बार स्कूलों को बंद कर दिया है. उन्हें लंबे समय तक बंद रखा है. जरूरत न होने पर स्कूल भी बंद कर दिए गए.यूनिसेफ और यूनेस्को ने सुझाव दिया है कि स्कूलों को आखिरी में बंद कर देना चाहिए.