बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले  कांवड़ियों में क्यों लोकप्रिय हैं मोहम्मद वसीम और उनका परिवार ?

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 16-07-2022
बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले  कांवड़ियों में क्यों लोकप्रिय हैं मोहम्मद वसीम और उनका परिवार ?
बाबा बैद्यनाथ धाम जाने वाले  कांवड़ियों में क्यों लोकप्रिय हैं मोहम्मद वसीम और उनका परिवार ?

 

सेराज अनवर / पटना
 
बिहार में भी कावड़ियों का बोल-बाला है.भागलपुर के सुल्तानगंज में बहने वाली उत्तरवाहिनी गंगा से जल लेकर कांवड़िए बाबा वैद्यनाथ धाम की यात्रा पर निकल पड़े हैं. कांवड़िए करीब 108 किलोमीटर की लंबी यात्रा कर बाबा के दरबार में पहुंचते हैं.

श्रावणी मेला शुरू होते ही सुल्तानगंज में कांवरियों की भीड़ उमड़ पड़ती है.लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अधिकांश कांवड़ बिहार के मुस्लिम परिवार बनाते हैं.
 
वे पीढ़ियों से इस पेश में लगे हैं.सुल्तानगंज में ऐसे करीब 25-30 मुस्लिम परिवार हैं, जिनका मुख्य काम कांवड़ बनाना है. वैसे तो इन कारीगरों द्वारा बनाए जाने वाले कांवड़ वर्षभर बिकते हैं.
 
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सावन में बिक्री बढ़ जाती है.दुनिया का सबसे लंबा श्रावणी मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल कर काम करते हैं.
 
उद्देश्य सिर्फ यह है कि बाबा नगरी की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो.ऐसे ही लोगों में एक मोहम्मद वसीम हैं, जो सुलतानगंज सीढ़ी घाट के पास एक दुकान में पेंटिंग का काम करते हैंे.मोहम्मद वसीम का यह खानदानी पेशा है. कांवड़ियों के टी-शर्ट, बनियान पर नाम-पता वगैरह यही लिखते हैं.
 
कांवड़िए क्यों लिखाते हैं नाम-पता ?

कांवड़िए अपने कपड़ों पर नाम-पता या मोबाइल नंबर इसलिए लिखवाते हैं ताकि रास्ते में वो कहीं अचेत होकर गिर पड़ें या किसी हादसे से दोचार हो जाएं तो उनके घर के पते पर संपर्क किया जा सके.
 
कपड़े पर किए रंग छूटते नहीं. कलर और फेविकोल के मिश्रण से इसे तैयार किया जाता है. वसीम डाक बम की टी-शर्ट पर बम का नाम,मोबाइल नंबर आदि पेंट करते हैं.इसके बदले 20 से 50 रुपये मिल जाते हैं. पिता मोहम्मद शरीफ ने यह काम 40 वर्ष पहले शुरू किया था.वसीम अब अपने भाई के साथ यह काम करते हैं.
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दस साल की उम्र से कांवड़ियों की सेवा कर रहे वसीम

मोहम्मद वसीम परबत्ता खगड़िया के रहने वाले हैं. वो करीब 10 साल से खानदानी पेशा से जुड़े हैं.उनसे पहले उनके पिता इसे संभालते रहे. मोहम्मद शरीफ बताते हैं कि जब से पुराना सीढ़ी घाट बना है, ये काम कर रहे हैं. वह कहते हैं कि 40 साल से अधिक समय बीत गया इस काम को करते हुए.वसीम के दादा और शरीफ के पिता भी इस पेशा से जुड़े रहे हैं.
 
सुल्तानगंज में गंगा घाट से बाहर निकलते ही सड़क किनारे कांवड़,भोजन, जलपात्र,कपड़े वगैरह की दुकानें हैं. इन दुकानों के बीच एक ऐसा दुकान और दुकानदार परिवार है जो श्रावणी मेले में अलग संदेश देता है.
 
सड़क किनारे डाक बमों का जत्था मोहम्मद वसीम को घेरे रहता है. बड़ी संख्या में डाक बम अपने टी-शर्ट, बनियान में नाम-पता लिखवाते मिल जाएंगे. शरीफ बताते हैं कि वो लोग तीन महीने तक इस काम को यहां करते हैं.
 
सावन, भादो, आश्विन महीने तक यानी दुर्गा पूजा तक यहां काम करते हैं. उसके बाद वापस हो जाते हैं. बताया कि अब उनके बेटे भी इस कार्य से जुड़ गए हैं. सभी मिलकर ये कर रहे हैं.
 
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कांवड़ मेले का उद्घाटन करते अधिकारी
मुसलमानों के लिए भी पावन महीना 

सुल्तानगंज में रहने वाले जावेद ने कहा कि यहां सावन हिंदुओं के साथ मुसलमानों के लिए भी पावन महीना बन गया है.मुस्लिम समुदाय के युवक कांवड़ियों को सुविधाएं देने में कोई कसर नहीं छोड़ते.कांवड़ बनाने के काम से जुड़े मोहम्मद कासिम का कहना है कि मेरे पिताजी और दादा भी यह काम करते थे.
 
हम पिछले 17 वर्षो से कांवड़ बनाकर परिवार का खर्च चला रहे है.सावन की तैयारी हम दो-तीन महीने पहले ही शुरू कर देते हैं.इस दौरान शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है.मैंने अपने पिता से यह कला सीखी थी. कांवड़ निर्माण में बांस,मखमली कपड़े,घंटी,सीप की मूर्ति और प्लास्टिक के सांप का प्रयोग किया जाता है.
 
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मोहम्मद शरीफ
 
कई महंगे कांवड़ों का भी निर्माण होता है, जिनमें कीमती सामग्री लगाई जाती है. सावन में यहां प्रतिदिन करीब एक लाख कांवड़ की बिक्री होती है. बाजार में हर तरह के कांवड़ मौजूद हैं, जिनकी कीमत 250 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक है.
 
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कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत

श्रावणी मेला में देश- विदेश से आने वाले लाखों शिवभक्त श्रद्धालुओं के कांवड़ों की घुंघरुओं से निकलने वाली कर्णप्रिय ध्वनियों और बोल- बम के नारों की गूंज पिछले दो साल से कोरोना के कारण खामोश थी.
 
श्रावणी मेला का विधिवत उद्घाटन 14 जुलाई को हुआ.बोल बम का नारा ,बाबा एक सहारा  दो साल बाद सावन में गूंज रहा है सुल्तानगंज में. केसरिया परिधानों में चल रहे कांवड़ियों की वजह से कांवड़िया पथ श्रद्धा,भक्ति एवं ईश्वर के प्रति समर्पण के आध्यात्मिक रंग से रंगने लगा है.
 
श्रावणी मेले को लेकर इस बार प्रशासनिक स्तर पर भी व्यापक तैयारियां की गई हैं.12 ज्योतिर्लिंग में बाबा बैद्यनाथ का खास महत्व है. बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर जिले में स्थित है.
 
मान्यता है कि स्वयं भगवान शिव जहां-जहां प्रकट हुए वहां-वहां शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाता है. बाबा बैद्यनाथ का खास महत्व इसलिए भी है क्योंकि यहां शक्तिपीठ भी है.
 
देवघर के बाबा बैद्यनाथ को उत्तरवाहिनी गंगा का जल जो सुल्तानगंज से होकर बहती है पसंद है. यही वजह है कि कांवड़िया 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पित करते हैं.
 
पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले भगवान श्रीराम ने सुल्तानगंज से जल भरकर देवघर तक की यात्रा की थी. इसके बाद से ही यहां से देवघर जल ले जाने के परंपरा की शुरुआत हुई.