क्या है शब-ए-बरात की हकीकत !

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 18-03-2022
क्या है  शब-ए-बरात की हकीकत !
क्या है शब-ए-बरात की हकीकत !

 

शगुफ्ता नेमत
 
शब-ए-बरात, दो शब्दों, शब और बरात से मिलकर बना है. शब का अर्थ रात है और बरात का मतलब ‘बरी होना ‘ यानी मुक्ति पाना. अपनी बुराइयों से निजात पाना.इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख को सूर्यास्त के बाद शुरू होती है.मुसलमानों के लिए यह बेहद फजीलत (महिमा) की रात है.

इस रात विश्व के सारे मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं. रात को दुआएं मांगते हैं. अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. इससे मुक्ति पाने का खुद और अल्लाह से वादा करते हैं.इसके पीछे मान्यता  है कि शब-ए-बरात में इबादत करने वालों के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं. केवल उन लोगों  के गुनाह तब तक माफ नहीं होते,जब तक वे इन को करना न छोड़ दें.
 
इनमें  शामिल है, शिर्क अर्थात यह मान लेना कि कोई भी अच्छा या बुरा काम बिना अल्लाह की मर्जी के संभव है. मन में ईष्र्या-द्वेष रखने वाला, अहंकारी, माँ- बाप का उत्पीड़क और नशाखोर.इस पर्व को लेकर दो भिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं.
 
एक वर्ग उन लोगों का है जो यह मानता है कि सारी रात जागकर इबादत तो की जाए,पर आतिशबाजी आदि भी छोड़ी जा सकती है. मगर इस्लाम हमें ऐसे किसी काम की अनुमति नहीं देता,जिसमें फिजूलखर्ची के साथ लोगों को बाधा पहुंचाना शामिल हो. दूसरे वर्ग के लोग इस त्योहार की महत्ता से  बिल्कुल ही इनकार करते हैं. 
 
मगर सही हदीसों से पता चलता है कि इस रात का अपना महत्व है. इसमें  मनुष्य के जन्म और मृत्यु का  फैसला होता है. कौन क्या पाएगा क्या खोएगा सब फैसले तय होते हैं. फरिश्तों को उनके रजिस्टर थमाए जाते हैं. ठीक उसी प्रकार जिस तरह विद्यालयों में प्रत्येक सत्र में कुछ तो पास होकर निकल जाते हैं.
 
कतिपय नए जुड़ जाते है. कुछ नहीं पढ़ने के कारण पीछे रह जाते हैं.मगर सबका लेखा-जोखा शिक्षा विभाग को थमा कर उनकी ड्यूटी समझा दी जाती है.सहाबियों (जो हमारे पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अनुयायी थे )से यह बात सामने आती है कि इस रात्रि अल्लाह से हमें अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए विशेष प्रार्थना करनी चाहिए.

साथ ही, इस रात अपनी नींद त्याग कर कब्र में आराम से सोने का प्रबंध करना चाहिए. यानी गुनाहों से तौबा कर खुद को ऐसा पाक-साफ कर लेना चाहिए कि मरने के बाद हिसाब-किताब में कोई कमी न रह जाए. मुसलमान मानते हैं कि मरने के बाद उनके कर्मों के हिसाब-किताब के बाद स्वर्ग-नरक का निर्धारण होगा.
 
बहरहाल, शब-ए-बरात की रात कोई विशेष इबादत का कहीं सबूत नहीं मिलता.मगर यह बात अवश्य है कि जिस प्रकार एक छोटा बच्चा अपनी मां से रो-गाकर अपनी जिद पूरी करवा लेता है. अल्लाह अपने बंदों से उससे भी कहीं अधिक प्रेम करता है- हमें भी यह अवसर हाथ से जाने नहीं देना चाहिए.
 
 इस्लाम धर्म में संतुलन को महत्व दिया गया है.यानि केवल इबादत कर हम ईश्वर को नहीं पा सकते हैं. ईश्वर को पाने के लिए हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन भी भलीभाँति करना होगा. मानव धर्म निभाना होगा. सगे-संबंधियों, पड़ोसियों, मुहल्ले, समाज तथा देश,सबका हितकर बनना होगा.
 
तभी हम अपने सारे पापों से मुक्ति पा एक नई शक्ति और उत्साह के साथ युग परिवर्तन के प्रयासों सें जुड़ सकते हैं. अन्यथा एक क्या अनेक रातें जागकर भी हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला. यहां मुसलमानों, खास कर उन मुस्लिम युवाओं का ध्यान इस ओर दिलाने की जरूरत है कि शब-ए-बरात की रात कब्रिस्तान पर फातिहा पढ़ने के नाम पर बाइक से सड़कों पर उधम मचाने से बाज आएं. इससे न केवल उनकी जान को खतरा है, दूसरों को भी नुकसान पहुंच सकता है.
 
 
लेखिका दिल्ली के एक स्कूल में टीचर हैं.