उस्ताद अब्दुल करीम खां ने लोक संगीत की महक पूरे देश में बिखेरी

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] • 1 Years ago
उस्ताद अब्दुल करीम खां ने लोक संगीत की महक पूरे देश में बिखेरी
उस्ताद अब्दुल करीम खां ने लोक संगीत की महक पूरे देश में बिखेरी

 

अल्ताफ हुसैन अहमद / बिलसीपर

देश के विभिन्न हिस्सों में गोपालपुर लोक नृत्य और गीतों का प्रदर्शन,  विभिन्न लोक कार्यक्रमों, यात्रा थिएटरों और असम के लोक नृत्यों का प्रदर्शन करने वाले बुजुर्ग लोगों की एक सुव्यवस्थित मंडली है. गोलपरिया लोक संस्कृति के प्रचार-प्रसार, संरक्षण और संवर्धन के लिए अथक परिश्रम करने वाले कलाकार इस उम्र में लोक संगीत की सुगंध फैलाने के लिए असम और देश के अन्य हिस्सों में घूमते रहे हैं. अब्दुल करीम खान उस कलाकार का नाम है, जिसे असम के प्रसिद्ध निर्देशक अभिनेता प्रायत अब्दुल मजीद द्वारा ‘उस्ताद’ की उपाधि से सम्मानित किया गया है.

उस्ताद करीम खान का जन्म असमिया लोक संस्कृति, कला और संस्कृति के सर्वांगीण विकास के नाम पर कोकराझार में हुआ था. किशोरावस्था के दौरान चाकी गोपालपरिया की लोक संस्कृति से मोहित उस्ताद खान सांस्कृतिक कार्यक्रम ‘मैनामती शिल्पी समाज’ का नेतृत्व कर रहे हैं. चित्रलेखा थिएटर में, वह ‘पद्मश्री प्रतिमा’ और मैनामती शिल्पी समाज, ‘भाल मनुसर भील कोठा’ जैसे नृत्य नाटक करते हैं.

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करीम खान एक नृत्य-गीत प्रशिक्षक और तीन सौ से अधिक गोलपरिया और असमिया गीतों के संगीतकार हैं. कलाकारों का समूह देश के विभिन्न हिस्सों में गोलपरिया नृत्य-गीत का प्रदर्शन करता रहा है. गैर-विकृत गोलपरिया लोक गीतों और लोक नृत्यों के क्षेत्र में नई पीढ़ी को प्रेरित करने में सहायक रहे उस्ताद खान गोलपरिया लोक संगीत में आधुनिक वाद्ययंत्रों को शामिल करने का समर्थन नहीं करते हैं.

इस संदर्भ में, आवाज-द वॉयस के साथ एक साक्षात्कार में वे कहते हैं, ‘‘आधुनिक संगीत वाद्ययंत्रों का संयोजन लोक गीतों की धुन को फीका कर देता है. यह अद्वितीय है.’’

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गौरतलब है कि अब्दुल करीम खान अपने डांस ड्रामा ‘‘नैनेर काजल’ के लिए 2001-02 में मूनलाइट मीडिया अवार्ड जीतने में सफल रहे थे. वर्ष 2000 में उन्होंने गोलपरिया लोक-कृषि विकास केंद्र, 2002 में गोलपारा, नियॉन, बिलासीपारा प्रेस क्लब, रंगिया कॉलेज, पूर्वी नलबाड़ी सांस्कृतिक परिषद, विष्णुज्योति शिल्पी समाज, गुवाहाटी में अपना करियर शुरू किया. देसी जंगोस्थिया मंच, सांस्कृतिक महासभा, आस आदि ने सम्मान और पहचान दी है.

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गोपालपुर में लोकगीत कार्यक्रम मैनामती शिल्पी समाज से 42 वर्षों से अधिक समय से जुड़े अब्दुल करीम खान ने विभिन्न जातीय समूहों के बीच सद्भाव पैदा करने के उद्देश्य से कई गीत लिखे हैं और कई अन्य गीतों में गाया है. उन्हें लोक संगीत के प्रशिक्षक के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने नई पीढ़ी के कलाकारों से लोक संगीत का अध्ययन करने का आह्वान किया है.

गौरतलब है कि 72 वर्षीय कलाकार अब्दुल करीम खान को राज्य सरकार के कलाकार पेंशन से वंचित कर दिया गया है. हालांकि, वह नहीं रुके. आर्थिक तंगी के बीच, इस कलाकार ने असम के गांवों की यात्रा की और लोक संगीत के रूप में अपनी सुगंध फैलाई. वह अभी भी राज्य के ईमूर से सिमूर तक सद्भाव का गीत गाने के लिए यात्रा कर रहे हैं.