भारतीय मुसलमानों के मुद्दों से दूर रहे विदेशीः उलेमा

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
भारतीय मुसलमानों के मुद्दों से दूर रहें विदेशीः उलेमा
भारतीय मुसलमानों के मुद्दों से दूर रहें विदेशीः उलेमा

 

साकिब सलीम

सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्रांति ने उस तरीके की क्रांति ला दी है जिसमें समाचारों को रिपोर्ट किया जाता है, प्रसारित किया जाता है, प्रचारित किया जाता है और उपभोग किया जाता है. ट्वीट्स, फेसबुक पोस्ट और व्हाट्सएप फॉरवर्ड बिना किसी संपादकीय जिम्मेदारी के पारंपरिक टेलीविजन, समाचार पत्रों या पत्रिकाओं की तुलना में अधिक लोगों तक पहुंच सकते हैं.

जहां एक ओर इसने विविधताओं को जोड़ा है और सूचना तक पहुंच में वृद्धि की है, वहीं दूसरी ओर इसने दर्शकों को बिना किसी रोक-टोक के जानबूझकर गलत सूचना देने वाला प्रचार प्रदान किया है.

'कार्यकर्ताओं' के बीच भारत में 'सांप्रदायिक' या 'जाति' अत्याचारों की किसी भी 'समाचार' के बारे में सूचित करने वाले ट्वीट्स में विदेशी मीडिया और अधिकारियों को 'टैग' करने का प्रचलन है. उनका मानना ​​है कि मौजूदा सरकारों पर दबाव बनाने का यह सबसे अच्छा तरीका है.

'इस्लामी विचारधारा' का पालन करने वाली सार्वजनिक छवि वाले कई 'मुस्लिम कार्यकर्ता' भी उसी पैटर्न का पालन करते हुए पाए जा सकते हैं. लेकिन क्या वाकई इस्लाम इसकी इजाजत देता है? मुसलमान होने के नाते क्या हम देश के अंदरूनी मामले में विदेशी मदद मांग सकते हैं?

मैं कोई इस्लामिक विद्वान नहीं हूं, लेकिन मैं बता सकता हूं कि इस मुद्दे पर इस्लामिक विद्वानों ने क्या रुख अपनाया है.

मौलाना उबैदुल्ला सिंधी देवबंद स्कूल के इस्लामी विद्वान थे. वह शेख उल-हिंद मौलाना मोहम्मद हसन के सबसे पसंदीदा शिष्यों में से एक थे और कुरान और शाह वलीउल्लाह देहलवी की छात्रवृत्ति पर एक अधिकार मानते थे.

देवबंद विचारधारा के बीच शायद ही कोई और साथ ही, उनकी इस्लामी विद्वता पर विवाद करता हो. सिंधी एक स्वतंत्रता सेनानी भी थे, जिन्होंने क्रांतिकारी सशस्त्र समूहों का गठन किया और 1938में भारत वापस आने से पहले दो दर्जन से अधिक वर्षों तक विदेशी भूमि में निर्वासन में रहना पड़ा.

उनके आगमन के समय, द्वितीय विश्व युद्ध आसन्न था और मुस्लिम लीग एक अलग राष्ट्र के लिए अपनी मांग का प्रचार कर रही थी. 1940में, मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान के निर्माण को अपना लक्ष्य घोषित किया. उन्होंने विदेशों में एक प्रचार शुरू किया कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते और मुसलमानों को अगर नहीं बचाया गया तो वे हिंदुओं द्वारा मार दिए जाएंगे.

एक वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी सिंधी इस्लाम के नाम पर अज्ञानी लोगों के लिए फैलाये जा रहे इस झूठ को बर्दाश्त नहीं कर सके. उनका मुकाबला करने के लिए उन्होंने जमुना, नर्मदा, सिंध, सागर पार्टी का गठन किया. सिंधी ने पार्टी घोषणापत्र के परिचय में भारतीय मुसलमानों के मामलों में विदेशी मदद लेने की स्थिति को स्पष्ट किया था.

मौलाना उबैदल्लाह ने लिखा, "हमारा उद्देश्य वैध तरीकों से भारतीय राजनीति में अपना हक हासिल करना है. इसके लिए हमें विदेशों में रहने वाले मुसलमानों से किसी मदद की उम्मीद नहीं है. अगर कोई विदेशी हमलावर भारत पर आक्रमण करने की कोशिश करता है, भले ही वह मुस्लिम शक्ति हो, हम उसके खिलाफ पुरजोर लड़ाई करेंगे.

हम मानते हैं कि इस्लाम के नाम पर किसी भी मुस्लिम राजनीतिक शक्ति को इस भारतीय भूमि को बर्बाद करने का अधिकार नहीं है. क्या हम मुसलमान नहीं हैं? क्या हमें अपने देश पर शासन करने और प्रशासन करने का अधिकार नहीं है?

निस्संदेह, विदेशी मुस्लिम राष्ट्रों को आगे बढ़ने और खुद को विकसित करने का पूरा अधिकार है. लेकिन, हम यह कभी स्वीकार नहीं कर सकते कि उन्हें भारत पर अपना आधिपत्य बढ़ाने का कोई अधिकार है.

मौलाना उबैदुल्ला सिंधी का मानना ​​थाकिभारतीयोंकोभोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सभी को सुरक्षा प्रदान करके अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं करना चाहिए. उनका मानना ​​​​था कि सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के साथ सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार भारत को एक अंतरराष्ट्रीय शक्ति में बदल देगा जो कभी था.