इतिहास के झरोखे से : यूक्रेन को आजादी मिली, पर ज्यादा नहीं चली

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 26-03-2022
यूक्रेन को आजादी मिली, पर ज्यादा नहीं चली
यूक्रेन को आजादी मिली, पर ज्यादा नहीं चली

 

इतिहास के झरोखे से

 
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उन्नीसवीं सदी में यूक्रेन के राष्ट्रीय आंदोलन का जो दमन रूस ने शुरू किया वह बीसवीं सदी तक जारी रहा. जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ तो यूक्रेन भी उसका एक मैदान बन गया. यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन के दमन का अगला दौर भी यहीं से ही शुरू हुआ.

विश्वयुद्ध शुरू होते ही रूस की ऑस्ट्रिया और हंगरी से रंजिश भी सतह पर आ गई. इन दोनों देशों और रूस के बीच का पूरा भूभाग यूक्रेन ही था. लेकिन अभी उभर ही रहे यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन को बड़ा झटका तब लगा जब रूस ने गैलीशिया को अपने कब्जे में ले लिया. यही वह शहर था जो उस समय तक यूक्रेनी राष्ट्रीय आंदोलन का केंद्र था.
 
यहीं से यूक्रेनी राष्ट्रवाद का साहित्य और आंदोलन की सामग्री छपती थी. इसके जिन नेताओं पर खतरा मंडराता था या रूस की कोपदृष्टि पड़ती थी वे सब भाग कर गैलीशिया पहुंच   जाते थे.सितंबर 1914 में रूस की सेना गैलिशिया पहुंची.
 
एक बार जब रूस ने इस शहर पर कब्जा कर लिया तो वहां इस आंदोलन का पूरा नेटवर्क ध्वस्त कर दिया गया. यूक्रेनी भाषा के सारे संस्थानों को गैलिशिया में ही नहीं पूरे यूक्रेन में ही बंद कर दिया गया.दूसरा विश्वयुद्ध अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि रूस में एक बड़ा बदलाव हुआ. 1917 में रूस में क्रांति हो गई और जार का वह साम्राज्य हमेशा के लिए खत्म हो गया जिससे यूक्रेन ही नहीं रूस तक के लोग परेशान थे.
 
क्रांति के बाद वहां एक प्रोविज़नल या तदर्थ सरकार बनी. इस सरकार ने सभी को बहुत सारी रियायतें दीं जिनमें सबसे बड़ी थी बोलने की आजादी. इस आजादी का जितना फायदा रूस के लोगों ने नहीं उठाया उससे कहीं ज्यादा यूक्रेन के लोगों ने उठाया. इससे तुरंत ही यूक्रेनी भाषा के अखबार शुरू हो गए। अभी तक जो काम लोग छुप-छुप कर करते थे वह मुख्यधारा बन गया.

इसी के साथ एक बड़ा राजनैतिक बदलाव यह भी हुआ कि यूक्रेन का एक अपना एक प्रतिनिध सदन बना जिसे सेंट्रल राडा कहा गया. यह एक बड़ी शुरुआत थी. आज जिसे हम यूक्रेन की संसद कहते हैं उसके लिए भी यही नाम इस्तेमाल होता है. पूरे इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि यूक्रेन का शासन वहां के स्थानीय लोगों के हाथ आया था.
 
सेंट्रल राडा का प्रमुख यूक्रेनी इतिहासकार मिखाइल हृषवस्की को बनाया गया. सेंट्रल राडा का मुख्य लक्ष्य था यूक्रेन को स्वायत्तता देना. रूस को जिस तरह से संघीय और लोकतांत्रिक बनाने की कोशिश हो रही थी उसमें इसकी गुंजाइश भी थी.
 
इस भूभाग के पूरे इतिहास में यही वह दौर है जिसे हम यूक्रेन का स्वतंत्रता काल भी मान सकते हैं. लेकिन रूस में जिस तेजी से चीजें बदल रहीं थीं उससे बहुत जल्द ही साफ हो गया कि यह आजादी लंबी चलने वाली नहीं है.
 
उन्हीं दिनों रूस में एक और बहुत बड़ा बदलाव हुआ जिसे हम बोल्शेविक क्रांति के नाम से जानते हैं. इस बदलाव के बाद साम्यवादियों ने उदारपंथियों और लोकतंत्र वादियों से सत्ता छीन ली थी. रूस में जो नई सरकार बनी उसे यूक्रेन की सेंट्रल राडा ने मान्यता देने से इनकार कर दिया.
 
यह खबर मिलते ही रूस में बनी दुनिया की सबसे पहली साम्यवादी सरकार ने आस्तीने चढ़ानी शुरू कर दीं.आज हम रूस और यूक्रेन के बीच जो तनाव और जो समीकरण देख रहे हैं, वह लगभग उसी तरह से उस समय भी दिखाई देने लगे जब पहले विश्वयुद्ध के अंतिम अध्याय लिखे जा रहे थे.
 
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.