तुर्कीः उर्स में हुआ मौलाना रूमी के चाहने वालों का जमावड़ा और रक्स मस्ताना

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 25-12-2021
तुर्कीः उर्स में हुआ मौलाना रूमी के चाहने वालों का जमावड़ा और रक्स मस्ताना
तुर्कीः उर्स में हुआ मौलाना रूमी के चाहने वालों का जमावड़ा और रक्स मस्ताना

 

कोन्या. तुर्की के ऐतिहासिक शहर कोन्या में प्रख्यात सूफी संत मौलाना रूमी की का उर्स आयोजित किया गया. तुर्की की समाचार एजेंसी अनातोलिया के मुताबिक, ये अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम हर साल 7से 17दिसंबर तक मनाया जाता है.

तुर्की संचार निदेशालय ने एक बयान जारी किया, जिसमें तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने मौलाना रोम की 746वीं वर्षगांठ के अवसर पर अपने संदेश में कहा, ‘हम अपनी परंपराओं का पालन कर रहे हैं. एकता और एकजुटता के साथ हम अपने भविष्य की ओर बढ़ेंगे.’

उन्होंने कहा कि हम अपनी महान सांस्कृतिक विरासत की शक्ति से सभी बाधाओं को दूर करेंगे.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/164042055907_Turkey_The_gathering_of_Maulana_Rumi's_fans_and_Rax_Mastana_took_place_in_Urs_1.webp

हर साल हजारों लोग तुर्की के शहर कोन्या में 13वीं सदी के महान सूफी कवि को श्रद्धांजलि देने और सप्ताह भर चलने वाले उर्स समारोह में शामिल होने के लिए आते हैं. यह एक ऐसा कार्यक्रम है, जिसमें कई दरवेश नृत्य करते समय नारे लगाते हैं.

समारोह की शुरुआत कुरान के पाठ और दुआओं से होती है. दरवेशों के पहनावे का भी एक विशेष प्रतीक होता है. सफेद वस्त्र, काले वस्त्र और लंबे स्कार्फ जीवन से मृत्यु तक की यात्रा के प्रतीक हैं. एक हाथ हवा में उठा और दूसरा जमीन की ओर. और फिर संगीत और सीढ़ियों पर चलते हुए यह नृत्य उन्हें रोमांचित कर देता है. उत्सव प्रार्थना से शुरू होता है और प्रार्थना के साथ समाप्त होता है.

मौलाना रूमी का नाम मुहम्मद और उनकी उपाधि जलालुद्दीन थी. उन्हें मौलाना रूमी की उपाधि से प्रसिद्धि प्राप्त की. उनका जन्म 1207में बल्ख खुरासान में हुआ था, जो अब अफगानिस्तान का हिस्सा है. परंपराओं के अनुसार, वे अपने पिता की ओर से उनका वंश मुसलमानों के पहले खलीफा अबू बक्र सिद्दीक और अपनी मां की ओर से चौथे खलीफा अली इब्न तालिब के सिलसिले से थे.

मौलाना रूमी एक प्रसिद्ध फारसी कवि थे. मसनवी, फिया माफिया और दीवान-ए-शम्स तबरेज जो मौलाना के दीवान हैं, उनकी कृतियां हैं. मसनवी मौलाना रूमी के ज्ञान और साहित्य का खजाना है. मौलाना रूमी अपने समय के महान विद्वानों में से एक थे. वे न्यायशास्त्र और धर्म के महान विद्वान थ,े लेकिन वे सूफी कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए.

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मौलाना की कीर्ति सुनकर सेलजुक सुल्तान ने उन्हें बुलवाया और वह कोन्या के लिए रवाना हो गए. वह जीवन भर वहीं रहे. 30वर्षों तक निरंतर अध्यापन और सीखना जारी रहा. मौलाना रूमी कहते हैं, ‘यदि मेरा ज्ञान मुझे मनुष्य से प्रेम करना नहीं सिखाता, तो अज्ञानी व्यक्ति मुझसे हजार गुना अच्छा है.’

एक अनुमान के अनुसार, जलालुद्दीन रूमी ने 3500गजलें और 2000यात्राएंे और महाकाव्य कविताएं लिखीं. उनकी मसनवी को सबसे ज्यादा लोकप्रियता मिली. उपमहाद्वीप के एक प्रमुख कवि अल्लामा इकबाल मौलाना रूमी से बहुत अधिक प्रभावित थे. उन्हें पता चला था कि मौलाना कशफ-ओ-वजदान के माध्यम से उन्होंने सूफीवाद प्राप्त किया था, जो सच्चे प्रिय के सभी आदेशों का पालन करने वाले को दिया जाता है और यह एक सूफी की मानसिक पूर्ति का स्थान भी है.

अल्लामा इकबाल ने अपनी एक कविता में मौलाना रूमी की दो कविताओं का सारांश इस प्रकार दिया, ‘धर्म की जीत नहीं हुई, लेकिन दरवेशों की परंपराओं को सांस्कृतिक विरासत का दर्जा दिया गया.’

2005 में मौलाना रूमी की 800वीं जयंती के अवसर पर तुर्की के अनुरोध पर, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 2007 को रूमी के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया था. और तब से सूफी दरवेशों की परंपरा को मानवता की शाश्वत विरासत का दर्जा प्राप्त है.