साकिब सलीम
वली मुहम्मद को शायरी की दुनिया में नजीर अकबराबादी के नाम से जाना जाता है. वे यकीनन उर्दू के शुरुआती शायर थे. 1735में जन्मे नजीर ऐसे समय में रहते थे, जब मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था और विदेशी शासन भारत के माध्यम से अपने पंख फैला रहा था.
दमनकारी ब्रिटिश शासन भारतीयों को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने में जुटा हुआ था. नजीर ने विदेशी शासन के तहत अपने आसपास के गरीबों, किसानों और श्रमिकों की दुर्दशा देखी और उनके जीवन के बारे में लिखा था. उनके मुताबिक सभी समस्याओं का समाधान विदेशी शासन का जूआ उतार फेंकने में ही छिपा है.
नजीर समझ गए कि ब्रिटिश शासन को अपनी ताकत हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दुश्मनी से मिलती है. भारतीयों के दैनिक जीवन के बारे में लिखने वाले लोगों के शायर ने समकालिक संस्कृति के बारे में लिखा.
18वीं और 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, नजीर भारतीय संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए नज्में लिख रहे थे, जहाँ हिंदू और मुसलमान एक समुदाय के रूप में एक साथ रहते हैं. उन्होंने ‘हिंदू’ त्योहारों की प्रशंसा में कई नज्में और गजलें लिखीं. किसी भी राष्ट्रीय समस्या का उत्तर विभिन्न धर्मों के बीच एकता थी.
राखी एक ऐसी कविता है, जहां नजीर ने रक्षाबंधन की प्रशंसा में लिखा. यह एक ऐसा त्योहार जहाँ बहनें अपने भाइयों की कलाई पर धागा या कपड़ा बाँधती हैं. धागे / कपड़े को राखी कहा जाता है और यह प्रतीक है कि पुरुष हर परिस्थिति में उस बहन की रक्षा करेगा.
नजीर बाजार से खरीदी गई एक खूबसूरत राखी का रेखाचित्र बनाते हैं. राखी में सुनहरे, हरे, पीले और लाल रंग के रेशमी धागे होते हैं. इसकी सुंदरता ऐसी है कि अमीर लोग इसे अपनी सबसे बेशकीमती संपत्ति मानते हैं.
चली आती है अब तो हर कहीं बाजार की राखी,
सुनहरी सब रेशम जर्द और गुलनार की राखी,
बनी है गो कि नादिर खूब हर सरदार की राखी.
नजीर उन लोगों से अपनी ईर्ष्या दिखाते हैं, जिनकी कलाई पर राखी बंधी होती है. वे अपनी कलाई पर राखी बांधे हुए अच्छे लगते हैं और वह इस एक दिन के लिए ब्राह्मण (हिंदू) बनने की इच्छा रखते हैं.
मची है हर तरफ क्या-क्या सलोनो की बहार अब तो,
हर इक गुल-रू फिरे है राखी बांधे हाथ में खुश हो
हवस जो दिल में गुजरे है कहूं क्या आह मैं तुम को
यही आता है जी में बन के बाम्हन, आज तो यारो
इस लंबी कविता के अंत में, नजीर खुद को एक हिंदू के रूप में देखते हैं और खुद को राखी बांधकर उत्सव का हिस्सा बन जाते हैं. वह लिखते हैं,
पहन जुन्नार और कश्का लगा माथे ऊपर बारे
‘नजीर’ आया है बाह्मन बन के राखी बंधाने प्यारे
कविता, वास्तव में, भारतीय संस्कृति के लिए एक श्रद्धांजलि है और अंग्रेजों द्वारा प्रतिनिधित्व की जाने वाली विभाजनकारी राजनीति का मुकाबला करने का प्रयास है. दुख की बात है कि आज के भारत में उच्च साक्षरता और शिक्षा के प्रसार के साथ, अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई यह विभाजनकारी राजनीति अब भी कहीं-कहीं देखने को मिल जसती है और नजीर अकबराबादी द्वारा प्रस्तुत विचारों को आम भारतवासी भूलता जा रहा है.